समाजों में विकलाँग व्यक्तियों के और ज़्यादा समावेश की पुकार

संयुक्त राष्ट्र प्रमुख एंतोनियो गुटेरेश ने कहा है कि एक ऐसी दुनिया हासिल करना, जहाँ सभी लोगों को समान अवसर हासिल हों, एक ऐसा लक्ष्य है जिसके लिये जद्दोजहद करना सार्थक है. उन्होंने सोमवार को एक सन्देश में, समाज में विकलाँग व्यक्तियों के और ज़्यादा समावेश का आहवान किया, जिनमें कोविड-19 से निपटने और पुनर्बहली उपाय भी शामिल हैं.
यूएन महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने उन देशों को सम्बोधित करते हुए ये बात कही, जो 2006 में वजूद में आए, विकलाँग व्यक्तियों के अधिकारों पर कन्वेन्शन के पक्ष हैं.
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UNDESA
उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि ये कन्वेन्शन तभी पूरी तरह लागू किया जा सकता है जब ऐसी बाधाएँ, अन्याय और भेदभाव को समाप्त कर दिया जाए, जिनका सामना विकलाँग व्यक्तियों को करना पड़ता है.
यूएन प्रमुख ने एक न्यायसंगत और टिकाऊ विश्व की स्थापना के लिये वैश्विक कार्रवाई योजना का ज़िक्र करते हुए कहा, “विकलाँग व्यक्तियों के अधिकारों को वास्तविक बनाना, असल में, 2030 एजेण्डा का एक प्रमुख लक्ष्य है: किसी को भी पीछे ना छोड़ा जाए.”
“हमारे तमाम कार्यों और गतिविधियों में, हमारा ध्येय स्पष्ट है: एक ऐसी दुनिया का निर्माण, जहाँ सभी लोग समान अवसरों का आनन्द उठा सकें, निर्णय प्रक्रिया में शिरकत कर सकें, और आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक और सांस्कृतिक जीवन से भरपूर तरीक़े से लाभान्वित हो सकें."
"इस लक्ष्य के लिये जद्दोजहद करना सार्थक व सन्तोषजनक है.”
विकलाँग व्यक्तियों का अधिकार दिवस 3 दिसम्बर को मनाया जाता है. इसी सन्दर्भ में विकलाँग व्यक्तियों के अधिकारों पर कन्वेन्शन का 13वाँ सत्र (COSP13) आयोजित किया गया है.
इस वर्ष संयुक्त राष्ट्र की अन्य गतिविधियों व कार्यक्रमों की ही तरह, ये सत्र भी कोविड-19 महामारी की छाया में आयोजत किया गया है, जिसमें प्रतिभागियों ने निजी रूप से, और ऑनलाइन माध्यमों से शिरकत की है.
महासचिव ने कहा कि महामारी ने पहले से ही मौजूद, असमानताओं को और ज़्यादा गहरा बना दिया है, जिनका सामना दुनिया के लगभग एक अरब विकलाँग लोगों को करना पड़ता है. यहाँ तक कि, सामान्य हालात में भी, विकलाँग व्यक्तियों को शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाएँ और रोज़गार वाले कामकाज, और अपने समुदायों में शामिल होने के अवसर कम ही उपलब्ध थे.
विकलाँग व्यक्तियों के अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र की समिति के अध्यक्ष ने दनलामी उमारू बशारू ने भी यूएन प्रमुख के विचारों से सहमति व्यक्त करते हुए कहा कि स्वास्थ्य संकट के दौरान बुनियादी ढाँचागत बाधाएँ, बहिष्करण और भेदभाव और भी ज़्यादा भीषण हो गया है.
उन्होंने एक वीडियो सन्देश में कहा, “ये एक स्वागतयोग्य बात है कि इस कन्वेन्शन के अब 182 पक्ष देश हैं, स्वास्थ्य महामारी ने ये विदित कर दिया है कि कन्वेन्शन में विकलाँगता के मानवाधिकार मॉडल को अभी पूरी तरह समझने के लिये अभी बहुत लम्बा रास्ता तय करना है, तभी इस कन्वेन्शन के प्रावधान पूरी तरह से लागू किया जा सकेंगे.”
यूएन प्रमुख एंतोनियो गुटेरेश ने मई 2020 में एक नीति-पत्र जारी किया था जिसमें विकलाँग व्यक्तियों पर कोविड-19 के बहुत ज़्यादा प्रभाव की तरफ़ ध्यान दिलाया गया था.
महासचिव ने महामारी का मुक़ाबला करने और उसके बाद पुनर्बहाली प्रयासों को विकलाँग व्यक्तियों के लिये समावेशी बनाने का आहवान किया है, और इसकी शुरुआत विकलाँग व्यक्तियों के मानवाधिकारों को पहचान देने और उनका सम्मान करने के साथ की जानी चाहिये.
उन्होंने कहा, “हमें ये सुनिश्चित करना होगा कि कोविड-19 के बाद की दुनिया में, विकलाँग व्यक्तियों के सपने और आकाँक्षाएँ भी शामिल किये जाएँ, उनके लिये दुनिया को समावेशी, टिकाऊ और विभिन्न सुविधाएँ व अवसरों की उपलब्धता वाली बनाया जाए.”
महासचिव ने ज़ोर देकर कहा कि संयुक्त राष्ट्र द्वारा निर्धारित मूल्यों और सिद्धान्तों को बरक़रार रखने के लिये, ज़रूरी है कि विकलाँग व्यक्तियों के अधिकार सुरक्षित किये जाएँ.
यूएन प्रमुख ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र संगठन में विकलाँग व्यक्तियों के समावेश के लिये वर्ष 2019 में एक रणनीति शुरू की थी, जिसका मक़सद पूरे संगठन और उसके कार्यकलापों में परिवर्तनशील व दीर्घकालीन बदलाव लाना है.
उन्होंने कहा कि इस रणनीति में ये भी दिखाया गया है कि संयुक्त राष्ट्र किस तरह, उदाहरण पेश करके यानि ख़ुद अमल करके बदलाव लाने की रणनीति पर काम कर रहा है, क्योंकि ये वैश्विक संगठन विकलाँग व्यक्तियों के लिए एक आदर्श कार्यस्थल के रूप में बनकर दिखाना चाहता है.