शौचालय दिवस: सभी को सुरक्षित व स्वास्थ्यप्रद स्वच्छता पक्की करने की पुकार
संयुक्त राष्ट्र दुनिया भर में स्वच्छता, साफ़-सफ़ाई व स्वस्थ आदतों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के इरादे से 19 नवम्बर को विश्व शौचालय दिवस मना रहा है ताकि सभी लोगों को स्वच्छता व साफ़-सफ़ाई के साधनों की आसान उपलब्धता सुनिश्चितता की जा सके. दुनिया की कुल आबादी का लगभग एक चौथाई हिस्सा, यानि लगभग 25 प्रतिशत आबादी को बुनियादी सुविधाएँ हासिल नहीं हैं.
तीन अरब से ज़्यादा लोग ऐसे घरों में रहते हैं जहाँ हाथ धोने की ज़रूरी सुविधाएँ भी मौजूद नहीं हैं जिनमें साबुन और पानी का अभाव शामिल है.
More than one quarter of the global population still lack basic sanitation. This is unacceptable - from a moral, economic & health standpoint.We must ensure everyone, everywhere has access to safe & hygienic sanitation services that provide privacy and dignity. #WorldToiletDay pic.twitter.com/XKhLaZ4jd5
antonioguterres
संयुक्त राष्ट्र प्रमुख एंतोनियो गुटेरेश ने इस स्थिति को नैतिक, आर्थिक व स्वास्थ्य नज़रिये से अस्वीकार्य बताया है, “हमें ये सुनिश्चित करना होगा कि सभी इनसानों को उनकी निजता व गरिमा का सम्मान करने वाली, सुरक्षित और स्वास्थ्यप्रद स्वच्छता सेवाएएँ उपलब्ध हों.
विश्व शौचालय दिवस हर वर्ष 19 नवम्बर को मनाया जाता है.
ये दिवस संयुक्त राष्ट्र सभा ने, विकास के लिये स्वच्छता की महत्ता और पर्यावरण पर इसके प्रभावों को पहचान देते हुए वर्ष 2013 में घोषित किया था.
सभी इनसानों को स्वच्छ शौचालयों की सुरक्षित उपलब्धता टिकाऊ विकास लक्ष्य – 6 के उप-लक्ष्य 6.2 को हासिल करने के लिये अति महत्वपूर्ण है.
इसमें सभी लोगों के लिये स्वास्थ्यप्रद स्वच्छता समान तरीक़े से मुहैया कराने का आहवान किया गया है.
इस लक्ष्य में, खुले स्थानों में शौच करने के चलन या मजबूरी को ख़त्म करने, महिलाओं व लड़कियों और नाज़ुक परिस्थितियों में रहने को मजबूर लोगों की विशेष आवश्यकताओं का ख़ास ध्यान रखने का भी आहवान किया गया है.
स्वच्छता व जलवायु परिवर्तन
इस वर्ष विश्व शौचालय दिवस टिकाऊ स्वच्छता और जलवायु परिवर्तन थीम के अन्दर मनाया जा रहा है.
इसके तहत बाढ़, सूखा और बढ़ते समुद्री जल स्तर जैसे जलवायु परिवर्तन प्रभावों के स्वच्छता प्रणालियों पर पड़ने वाले असर की तरफ़ ध्यान आकर्षित किया गया है.
इस तरह की परिस्थितियों में शौचालयों, सैप्टिक टैंकों और जल प्रसंस्करण कारख़ानों की क्षमताओं पर नुक़सानदेह असर पड़ सकता है, जिसके फलस्वरूप पीने के पानी के साधन दूषित हो सकते हैं.
मानव मल व अन्य व्यर्थ पदार्थ समुदायों फ़सलों के खेतों में फैल सकते हैं, जिनसे अनेक तरह की बीमारियाँ फैल सकती हैं.
जलवायु परिवर्तन का मुक़ाबला करने में सक्षम टिकाऊ स्वच्छता कोरोनावायरस जैसी महामारी के सन्दर्भ में भी बहुत अहम है.
क्योंकि शौचालय, स्वच्छ जल और अच्छी स्वच्छता, कोविड-19 और भविष्य में भी इस तरह की बीमारियों के ख़िलाफ़ मज़बूत सुरक्षा कवच मुहैया कराते हैं.
जल और स्वच्छता – एक मानवाधिकार
संयुक्त राष्ट्र के स्वतन्त्र मानवाधिकार विशेषज्ञों ने भी तमाम देशों की सरकारों से एक संयुक्त अपील जारी करके कहा है कि किसी भी व्यक्ति को पानी और अन्य बुनियादी सेवाओं की उपलब्धता से वंचित ना रखा जाए, और पानी और साफ़-सफ़ाई की सार्वभौमिक उपलब्धता को एक मानवाधिकार के रूप में प्राथमिकता दी जाए.
इस वर्ष तो ये ज़रूरत और भी ज़्यादा स्पष्ट है क्योंकि कोरोनावायरस महामारी ने दुनिया भर में समुदायों को प्रभावित किया है.
ये सच्चाई भी किसी से छुपी नहीं है कि कोविड-19 का असरदार मुक़ाबला करने के प्रमुख औज़ारों में साबुन से हाथ धोकर स्वच्छता बनाए रखना भी है, जबकि ये सुविधा करोड़ों लोगों को अच्छी तरह से हासिल नहीं है.
मानवाधिकार विशेषज्ञों के संयुक्त बयान में कहा गया है, “हम इस अवसर पर दुनिया भर के देशों की सरकारों से अपनी अपील दोहराते हुए ऐसी नीतियाँ लागू करने का आहवान करते हैं जिनमें पानी व अन्य ज़रूरी आपूर्ति की कटौती करना बन्द किया जाए."
"और जो लोग वित्तीय अभाव के कारण बुनियादी सेवाओं की आपूर्ति व उपलब्धता के दाम नहीं चुका पाते हैं, उन्हें न्यूनतम पानी की मात्रा और अन्य ज़रूरी सेवाएँ सुनिश्चित की जाएँ.”
उन्होंने कहा, “हम दोहराते हुए कहते हैं कि पानी व साफ़-सफ़ाई की न्यूनतम मात्रा हर समय और हर तरह की परिस्थितियों में, एक मानवाधिकार के रूप में सुनिश्चित की जाए.”
विशेष रैपोर्टेयर, स्वतन्त्र मानवाधिकार विशेषज्ञ और कार्यकारी समूह संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद की विशेष प्रक्रिया का हिस्सा होते हैं. ये विशेषज्ञ स्वैच्छिक रूप में काम करते हैं, ये संयुक्त राष्ट्र के कर्मचारी नहीं होते और ना ही उन्हें उनके इस काम के लिये कोई वेतन मिलता है. ये विशेषज्ञ किसी सरकार या संगठन से स्वतन्त्र होते हैं और वो अपनी निजी हैसियत में काम करते हैं.