कोविड-19: शरणार्थियों, प्रवासियों, विस्थापितों पर तिहरी गाज

संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने आशा व्यक्त करते हुए कहा है कोविड-19 संकट के कारण पूरी दुनिया इस मुद्दे पर पुनर्विचार कर सकेगी कि शरणार्थियों, प्रवासियों और देशों के ही भीतर विस्थापित लोगों को किस तरह से समर्थन दिया जाए.
महासचिव ने बुधवार को कोविड-19 महामारी के बारे में ताज़ा पॉलिसी ब्रीफ़ जारी किया जिसमें देशों को ऐसे लोगों की मदद करने की उनकी ज़िम्मेदारियों की तरफ़ ध्यान दिलाया गया है जिन्हें किन्हीं कारणों से अपने मूल स्थानों से हटना पड़ता है.
#COVID19 continues to devastate the lives of the most vulnerable - including refugees & internally displaced people.Here are ways we can reduce the impact of the virus among people on the move & recover better for the benefit of all: https://t.co/vCv1ZQTCBF pic.twitter.com/VekBQz1Hmb
antonioguterres
संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी एजेंसी (UNHCR) के आँकड़ों के अनुसार दुनिया भर में ऐसे लोगों की संख्या सात करोड़ से भी ज़्यादा है.
महासचिव ने एक वीडियो सन्देश में कहा, “कोई भी देश महामारी का मुक़ाबला अकेले नहीं कर सकता और ना ही प्रवासन स्थिति को पूरी तरह अकेले सम्भाल सकता है. लेकिन एकजुट होकर हम वायरस के फैलाव को रोक सकते हैं, सबसे निर्बल लोगों पर होने वाले असर को कम कर सकते हैं और बेहतर तरीक़े से उबर सकते हैं जिससे सभी का भला हो सके.”
निसन्देह कोविड-19 महामारी ने दुनिया भर में लोगों की ज़िन्दगियों और आजीविकाओं पर भारी तबाही बरपा कर दी है, लेकिन सबसे ज़्यादा प्रकोप सबसे निर्बल आबादी पर हो रहा है.
महासचिव ने कहा कि इस आबादी में शरणार्थी, देशों के ही भीतर विस्थापित लोग और ख़तरनाक हालात में रहने को मजबूर प्रवासी शामिल हैं. ये आबादी एक ऐसे संकट का सामना कर रहे हैं जिसकी तिहरी मार पड़ रही है.
कोविड-19 सर्वप्रथम एक स्वास्थ्य संकट, और अपने मूल स्थानों से विस्थापित लोगों को अपनी यात्रायों या निवास के दौरान भीड़भरी परिस्थितियों में वायरस का भी सामना करना पड़ सकता है जहाँ स्वास्थ्य देखभाल, पानी और स्वच्छता पूरी तरह उपलब्ध नहीं होते, साथ ही ऐसी परिस्थितियों में शारीरिक दूरियाँ बनाए रखना सम्भव नहीं हो सकता.
ये आबादी सामाजिक व आर्थिक संकट का भी सामना कर रहे हैं, विशेषरूप में वो लोग जो अनौपचारिक सैक्टर में कामकाज करते हैं, और वहाँ उनके संरक्षण व कल्याण के लिए कोई योजनाएँ या कार्यक्रम नहीं हैं.
महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने कहा कि इसके अतिरिक्त प्रवासियों द्वारा अपने परिवारों और मूल स्थानों को भेजी जाने वाली धनराशि में कोविड-19 के कारण लगभग 109 अरब डॉलर तक की कमी आ सकती है.
प्रवासियों द्वारा भेजी जाने वाली इस रक़म पर लगभग 80 करोड़ लोगों की ज़िन्दगी निर्भर होती है.
इस महामारी का अन्तिम संकट सुरक्षा और लोगों के कल्याण के इर्द-गिर्द मँडराया हुआ है.
150 से ज़्यादा देशों ने कोविड-19 महामारी के वायरस के फैलाव को रोकने के लिए अपने यहाँ सीमाओं पर कड़े प्रतिबन्ध लगा दिए हैं. इनमें से ज़्यादातर देश ऐसे हैं जिन्होंने शरण या पनाह माँगने वाले लोगों के लिए भी कोई ढील नहीं दी है.
“साथ ही, कोविड-19 के डर के कारण कुछ विशेष समुदायों के ख़िलाफ़ पूर्वाग्रह, भेदभाव, नस्लवाद और कलंकित करने की मानसिकता में भी बहुत ज़्यादा बढ़ोत्तरी देखी गई है.”
“और पहले से ही ख़तरनाक हालात का सामना कर रहीं महिलाओं और लड़कियों की परिस्थितियाँ और भी ज़्यादा जोखिम वाली हो गई हैं क्योंकि वो लैंगिक हिंसा पर आधारित और भी ज़्यादा हालात में रहने को मजबूर हैं जहाँ उनके साथ दुर्व्यवहार होता है और उनका शोषण होता है.”
महासचिव एंतोनियो गुटेरश कोविड-19 महामारी का मुक़ाबला करने के बीच एक अवसर भी देखते हैं जिसमें इंसानों के रहने, आवाजाही और आजीविका अर्जित करने के मामलों में नया नज़रिया अपनाया जाए.
हालाँकि, इसके लिए चार मुख्य बिन्दुओं पर गहराई से विचार करना होगा, जिनमें सबसे पहला तो ये स्वीकार करना होगा कि किसी भी वर्ग के लोगों को अलग-थलग रखना या उनका बहिष्कार करना बहुत महंगी सोच है.
महासचिव ने इस बारे में और जानकारी देते हुए बताया, “एक समावेशी सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यवस्था और सामाजिक-आर्थिक प्रतिक्रिया से वायरस पर क़ाबू पाने, अर्थव्यवस्थाओं में फिर से जान फूँकने और टिकाऊ विकास लक्ष्यों पर प्रगति को आगे बढ़ाने में मदद मिलेगी.”
यूएन प्रमुख ने स्वास्थ्य संकट के माहौल में मानवीय गरिमा को भी बनाए रखने की पुकार लगाई है. उन्होंने ये भी कहा कि उन देशों से सबक़ सीखा जा सकता है जिन्होंने अन्तरराष्ट्रीय यात्राओं और सीमाओं पर पाबन्दियाँ लागू की हैं मगर शरणार्थियों की सुरक्षा के लिए निर्धारित अन्तरराष्ट्रीय सिद्धान्तों का भी पूर्ण सम्मान किया है.
उन्होंने संकट के सम्बन्ध में एक महत्वपूर्ण सन्देश भी दोहराया: जब तक हर एक इन्सान सुरक्षित नहीं है, तब तक किसी की भी सुरक्षा पक्की नहीं है, और कोविड-19 की जाँच व इसके इलाज के लिए दवाइयाँ सभी लोगों को बिना किसी बाधा के उपलब्ध हों.
आख़िर में, उन्होंने कहा कि जिन लोगों को अपने मूल स्थानों से किसी अन्य स्थान के लिए जाना पड़ता है, या वहाँ रहना पड़ता है, वो सभी समाधान का हिस्सा हैं.
उन्होंने तमाम देशों का आहवान किया कि वो ऐसे उपाय तलाश करें जिनके ज़रिए प्रवासन को नियमित और वैध किया जाए, साथ ही, प्रवासियों द्वारा अपने परिवारों और मूल स्थानों को भेजी जाने वाली धनराशि पर आने वाली लागत को कम किया जाए.
यूएन प्रमुख एंतोनियो गुटेरेश ने कहा, “ये सुनिश्चित करने में हम सभी की भलाई है कि हम दुनिया भर के शरणार्थियों को सुरक्षा मुहैया कराने में बराबर की ज़िम्मेदारी उठाएँ ताकि इन्सानों की आवाजाही सुरक्षित व समावेशी रहे, और अन्तरराष्ट्रीय मानवाधिकार व शरणार्थियों सम्बन्धी क़ानूनों का भी सम्मान किया जाए.”