2020: प्रवासियों और शरणार्थियों पर, कोरोनावायरस की घातक मार
वर्ष 2020 के दौरान, कोविड-19 महामारी का प्रभाव शरणार्थियों और प्रवासियों पर भी बहुत व्यापक रूप में पड़ा; भीड़ भरे शिविरों में, वायरस की चपेट में आने के बहुत बड़े जोखिम से लेकर, यात्राओं पर लगी पाबन्दियों के कारण फँस जाने, और आपराधिक गुटों का निशाना बनने तक...
“हमें, अपनी ज़िन्दगियाँ बचाने की ख़ातिर, अपने घरों से भागना पड़ा, युद्ध से बचने के लिये, और अब हमें इस नए कोरोनावायरस का सामना करना पड़ रहा है.” ये कहना है रोज़हान का, जो एक इराक़ी शरणार्थी हैं, और वो एक बहुत लम्बी, थकाऊ और कठिन यात्रा करके, योरोपीय देश बोसनिया हरज़ेगोविना पहुँची हैं.
उनके शौहर इब्राहीम और उनके तीन बच्चे भी उनके साथ हैं. इस परिवार को, अपनी इस यात्रा के दौरान, अनेक स्थानों पर रोका गया, उनकी तलाशी ली गई और हिरासत में भी रखा गया, इनके अलावा कड़ाके की सर्दी और और ख़तरनाक शीत मौसम की मार भी झेलनी पड़ी.
अप्रैल तक, वो यूएन प्रवासन एजेंसी (IOM) द्वारा संचालित एक शिविर में आश्रय पाए हुए थे, जब उन्हें कोरोनावायरस के बार में मालूम हुआ. “हर कोई, उसी के बारे में बातें कर रहे थे, और इस बारे में पोस्टर भी दिखे, जिनमें ये बताया गया था कि हमें किस तरह ख़ुद को सुरक्षित रखना चाहिये.”
यूएन प्रवासन एजेंसी ने ख़ुद के शिविरों और केन्द्रों में रखे गए लोगों को कोविड-19 के फैलाव से सुरक्षित रखने के लिये बहुत मेहनत की, हाथ साफ़ रखने के स्टेशन बनाए, कर्मचारियों और निवासियों को सुरक्षा, हिफ़ाज़त के बारे में शिक्षित किया, और सामुदायिक किचन बन्द कर दिये, ताकि भीड़-भाड़ से बचा जा सके.
रोज़हान और उनका परिवार, इन ताज़ा बाधाओं के बावजूद, ये समझ सका कि ये नए उपाय क्यों ज़रूरी थे. “हम यहाँ सुरक्षित हैं.”
सतर्कता की घंटी
अलबत्ता, अन्य शिविरों और केन्द्रों में, सुरक्षा व स्वच्छता बनाए रखना, एक मुश्किल काम साबित हुआ है, विशेष रूप में, विकासशील देशों में. अप्रैल में, संयुक्त राष्ट्र ने, महामारी के दौरान शरणार्थियों, प्रवासियों और अन्य विस्थापित लोगों की स्थिति पर, सतर्कता की घंटी बजाई. विश्व संगठन ने चेतावनी जारी करते हुए कहा कि घनी बादी वाले शिविरों में कोविड-19 महामारी का संक्रमण बहुत बड़े पैमाने पर फैल सकता है.
अन्तरराष्ट्रीय प्रवासन संगठन और यूएन शरणार्थी एजेंसी सहित, संयुक्त राष्ट्र की प्रमुख एजेंसियों द्वारा संयुक्त रूप से जारी एक वक्तव्य में कहा गया कि बहुत से प्रवासी भीड़ भरे स्थानों – बस्तियों, अस्थाई आश्रयस्थलों या स्वागत केन्द्रों में रहे रहे थे, जहाँ उनके लिये समुचित स्वास्थ्य सेवाओं, साफ़ पानी और स्वच्छता साधनों का अभाव था.
बन्दीग्रहों में रखे गए शरणार्थियों और प्रवासियों के बारे में विशेष रूप से चिन्ता व्यक्त की गई, जिनमें बच्चे और उनके परिवार भी शामिल थे. इनमें ऐसे लोग भी थे जिन्हें समुचित क़ानूनी आधार के बिना ही हिरासत में रखा गया था.
वक्तव्य में कहा गया, “कोविड-19 महामारी के घातक परिणामों के मद्देनज़र, इन प्रवासियों व शरणार्थियों को बिना किसी देरी के रिहा कर दिया जाना चाहिये था. इस बीमारी पर तभी क़ाबू पाया जा सकता है, जब हर कोई ये समझे कि इसके लिये ऐसा समावेशी रुख़ अपनाया जाए जिसमें हर किसी व्यक्ति के जीवन व स्वास्थ्य अधिकार की रक्षा की जाए.”
असहाय, फँसे हुए
मई में, प्रवासन एजेंसी ने बताया कि उसकी टीमें, पश्चिमी, मध्य और पूर्वी अफ्रीका के रेगिस्तानी इलाक़ों में प्रवासियों को सहायता मुहैया करा रही थीं.
ये ऐसे लोग थे, जिन्हें, किन्हीं देशों ने, या तो समुचित क़ानूनी प्रक्रिया के बिना ही, जबरन निकाल दिया गया था, या फिर तस्करों ने बेसहारा छोड़ दिया था.
ये ऐसे प्रवासियों के दलों का उदाहरण था, जिन्हें महामारी का सामना करने के लिये लागू की गई तालाबन्दियों के दौरान लगीं विभिन्न तरह की पाबन्दियों का दंश झेलना पड़ा.
दुनिया भर में हज़ारों लोग, इन परिस्थितियों से प्रभावित हुए. बहुत से लोग सीमावर्ती इलाक़ों में फँस गए, जहाँ कोई स्वास्थ्य सुविधाएँ उपलब्ध नहीं थीं.
भारत में, अप्रैल में, लाखों प्रवासी कामकारों की ज़िन्दगी में उथल-पुथल मच गई, जब उन्हें, केवल कुछ ही घंटों की चेतावनी पर, अपने वो स्थान व शहर छोड़ने के लिये मजबूर होना पड़ा, जहाँ वो अक्सर, अपने परिवारों से दूर, अपनी आजीविकाएँ चलाने के लिये कामकाज करते थे.
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ऐसी ख़बरें और तस्वीरें भी सामने आईं जिनमें पुलिसकर्मी, एकान्तवास के नियम तोड़ने के लिये, आम लोगों को डंडों और लाठियों से पीटते हुए दिखे, इनमें प्रवासी भी शामिल थे. कुछ स्थानों पर तो, कथित रूप से पुलिस को, लोगों पर, कीटाणुनाशकों का छिड़काव करने की भी ख़बरें मिलीं.
कामकाज व रोज़गार छिन जाने और अपने पास कोई धन नहीं होने के साथ-साथ सार्वजनिक परिवहन बन्द हो जाने के हालात में, लाखों प्रवासियों को अपने गाँवों और घरों तक पहुँचने के लिये सैकड़ों मील का सफ़र करना पड़ा.
कुछ प्रवासी तो, इन यात्राओं के दौरान ही, मौत का शिकार हो गए.
उनके इन दिल दहला देने वाले हालात को देखकर, यूएन मानवाधिकार प्रमुख मिशेल बाशेलेट को, भारत सरकार से आग्रह करना पड़ा कि जब इस तरह के सख़्त प्रतिबन्ध लागू किये जाएँ तो प्रवासियों की सुरक्षा और अधिकारों का सम्मान किया जाए.
संगठित अपराध के शिकार
हाँडूरास, अल सल्वाडोर और ग्वाटाला में, कोविड-19 सम्बन्धित पाबन्दियाँ लागू होने के बाद, जबरन धन वसूली, मादक पदार्थों की तस्करी और यौन व लिंग आधारित हिंसा में बढ़ोत्तरी दर्ज की गई.
वर्ष 2019 में, क्षेत्र में हिंसा के कारण, लगभग 7 लाख 20 हज़ार लोगों को अपने घर छोड़ने पड़े थे. इनमें से लगभग आधे लोग, अपने ही देशों में विस्थापित थे.
मध्य अमेरिका में, जब कोविड-19 महामारी ने अपने पैर फैलाए, तो संगठित आपराधिक गुटों ने, अपनी पकड़ मज़बूत करने के लिये, तालाबन्दी उपायों का शोषण करना शुरू कर दिया. इनमें, स्थानीय आबादी को अपने सामने झुकाने के लिये, लोगों को जबरन ग़ायब कर देना, हत्याएँ, और हत्याओं की धमकियाँ दिये जाने जैसे उपाय शामिल थे.
अग्रिम मोर्चों पर वृहद भूमिका
ये वर्ष, ख़ासतौर पर उन लोगों के लिये बहुत कठिन रहा है, जिन्हें अपने घर, देश और परिवार छोडने के लिये मजबूर होना पड़ा. साल के अन्त में, 18 दिसम्बर को, अन्तरराष्ट्रीय प्रवासी दिवस मनाया गया, जिसे, दुनिया भर में, प्रवासियों और शरणारथियों द्वारा समाजों में रचनात्मक और सकारात्मक योगदान की तरफ़ ध्यान खींचने के लिये एक अवसर के रूप में इस्तेमाल किया गया.
सीरियाई मूल के एक पुरस्कृत फ़िल्म निर्माता और शरणार्थी – हसन अक्कड़ को अपने मेज़बान देश – ब्रिटेन में उल्लेखनीय योगदान करने के लिये सराहा गया.
हसन अक्कड़ ने, लन्दन के पूर्वी इलाक़े में रहते हुए, महामारी के दौरान, एक स्थानीय अस्पताल में स्वच्छताकर्मी बनकर मदद करने का फ़ैसला किया.
उन्होंने कहा, “मुझे ऐसा महसूस हुआ कि, ये काम करके, मैं अपने पड़ोसी लन्दन वासियों की बेहतरी में सीधा योगदान कर सकता हूँ. ये वो जगह है, जहाँ अगर मैं, मेरी साथी, या मेरे रास्ते पर कोई परिवार, बीमार हो जाएँ, तो सब यहीं पहुँचेंगे. मेरा ये तुच्छ योगदान करना, मेरे लिये बड़े सम्मान की बात है."
"वहाँ जिन लोगों से मेरी मुलाक़ात हुए, वो निसन्देह, बहुत विनम्र, कठिन परिश्रमी और समर्पित इनसान हैं, और मैंने, अपनी ज़िन्दगी में, ऐसे बहुत कम इनसान ही देखे हैं. वो दुनिया के हर कोने से हैं – घाना, इटली, पोलैंड, कैरीबियाई, स्पेन ईरान इत्यादि.”
यूएन प्रमुख एंतोनियो गुटेरेश ने अन्तरराष्ट्रीय प्रवासी दिवस पर कहा, “प्रवासियों ने संकट का मुक़ाबला करने के प्रयासों में, अग्रिम मोर्चों पर बहुत वृहद भूमिका अदा की है, बीमारों और वृद्धों की देखभाल करने से लेकर, प्रतिबन्धों के दौरान खाद्य आपूर्ति सुनिश्चित करने तक.”
“प्रवासी जन जिस तरह, हमारे समाजों का अभिन्न हिस्सा हैं, उसी तरह से, पुनर्बहाली उपायों में भी उन्हें प्रमुखता मिलनी चाहिये.”