वैश्विक परिप्रेक्ष्य मानव कहानियां

50 करोड़ लोगों को नहीं मिल पाता समुचित मेहनताना

म्याँमार के यांगून में धातु के एक ढाँचा निर्माण में काम करते हुए एक तकनीकी कामगार.
ILO/Marcel Crozet
म्याँमार के यांगून में धातु के एक ढाँचा निर्माण में काम करते हुए एक तकनीकी कामगार.

50 करोड़ लोगों को नहीं मिल पाता समुचित मेहनताना

आर्थिक विकास

दुनिया भर में 50 करोड़ से भी ज़्यादा ऐसे लोग हैं जिन्हें कामकाज करने के बदले धन मिलने वाली स्थिति में उतना काम नहीं मिल पाता जितना वो करना चाहते हैं या फिर उन्हें ऐसा समुचित कामकाज ही नहीं मिल पाता है जिसमें उन्हें काम के बदले धन मिल सके.

अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) की एक ताज़ा रिपोर्ट में ये आँकड़े सामने आए हैं जो सोमवार को जारी की गई.

विश्व रोज़गार और सामाजिक परिदृश्य: 2020 नामक ये रिपोर्ट दिखाती है कि वर्ष 2020 में बेराज़गारों की संख्या में लगभग 25 लाख का इज़ाफ़ा होगा.

वैश्विक स्तर पर बेरोज़गारी की दर पिछले नौ वर्षों के दौरान लगभग स्थिर रही है लेकिन मौजूदा समय में विश्व स्तर पर अर्थव्यवस्था की धीमी रफ़्तार का मतलब है कि श्रम बाज़ार में नए दाख़िल होने वाले लोगों के लिए समुचित संख्या में रोज़गार के अवसर नहीं बन पा रहे हैं, जबकि विश्व भर में कामकाज करने वालों की संख्या बढ़ रही है.

नेपाल को पोखरा में एक निर्माणाधीन स्थल पर दो कामगार
ILO/Marcel Crozet
नेपाल को पोखरा में एक निर्माणाधीन स्थल पर दो कामगार

आईएलओ के महानिदेशक गाय राइडर ने इस मौक़े पर कहा, “करोड़ों लोगों के लिए कामकाज के ज़रिए अपने जीवन को बेहतर बनाना लगातार कठिन होता जा रहा है. कामकाज में लगातार जारी और गहरी जड़ जमाए विषमताओं और कुछ लोगों को कामकाज से बाहर ही रखने देने के कारणों से इन करोड़ों लोगों को अच्छा कामकाज नहीं मिल पाता जिससे वो अपने भविष्य बेहतर नहीं बना सकते.”

“ये एक ऐसी अति गंभीर जानकारी सामने आई है जिसके सामाजिक एकरसता के लिए बहुत गहरे और चिंताजनक परिणाम हो सकते हैं.”

रिपोर्ट दिखाती है कि कामकाजी लोगों की संख्या और कामकाज की उपलब्धता के बीच अंतर दरअसल बेरोज़गारी से आगे जाकर कामकाजी लोगों के कौशल व उपलब्धता का भरपूर इस्तेमाल नहीं हो पाने के बिन्दु तक पहुँचता है.

ध्यान रहे कि विश्व भर में लगभग 18 करोड़ 80 लाख लोग बेरोज़गार हैं. इनके अलावा क़रीब 16 करोड़ 50 लाख लोग ऐसे हैं जिन्हें समुचित सवैतनिक कामकाज नहीं मिल पाता है. लगभग 12 करोड़ लोगों ने या तो कामकाज की तलाश ही बंद कर दी है या फिर श्रम बाज़ार तक उनकी पहुँच ही नहीं है. इस स्थिति से दुनिया भर में कुल लगभग 47 करोड़ लोग प्रभावित हैं.

रिपोर्ट में श्रम बाज़ार में व्याप्त विषमताओं का भी जायज़ा लिया गया है. रिपोर्ट में नए डेटा और नया आकलन करके दिखाया गया है कि वैश्विक स्तर पर आदमनी में असमानता पहले सोची गई दर से कहीं ज़्यादा है, विशेष रूप में विकासशील देशों में.

कामकाजी ग़रीबी

रिपोर्ट कहती है कि विश्व भर में श्रम बाज़ार में जाने वाली राष्ट्रीय आमदनी में वर्ष 2004 से 2017 के बीच काफ़ी कमी हुई है जो 54 प्रतिशत से कम हो कर 51 पर पहुँच गई है. ये महत्वपूर्ण आर्थिक गिरावट योरोप, मध्य एशिया और अमेरिकी देशों में ज़्यादा देखी गई है. ये पहले लगाए गए अनुमानों से कहीं ज़्यादा है.

विकासशील देशों में कामकाजी ग़रीबी में वर्ष 2020-21 के दौरान औसत से लेकर अत्यधिक बढ़ोत्तरी होने का अनुमान लगाया गया है.

ऐसे हालात में टिकाऊ विकास लक्ष्यों में लक्ष्य संख्या-1 को हासिल करने में बाधाएँ बढेंगी. इसमें दुनिया भर वर्ष 2030 तक ग़रीबी को दूर करने का लक्ष्य रखा गया है.

कम गुणवत्ता वाला कामकाज और कामकाज करने के योग्य व उपलब्ध लोगों के श्रम का सदुपयोग नहीं हो पाने का मतलब है कि हमारी अर्थव्यवस्थाएँ और समाज मानवीय प्रतिभा के बहुत बड़े ख़ज़ाने का भरपूर फ़ायदा नहीं उठा पा रही हैं.

फिलहाल कामकाजी ग़रीबी को ऐसी स्थिति परिभाषित किया गया है जिसमें प्रतिदिन 3 डॉलर 20 सेंट से कम आमदनी हो. इस कामकाजी ग़रीबी से दुनिया भर में लगभग 63 करोड़ लोग प्रभावित हैं यानी वैश्विक कामकाजी आबादी के लगभग 20 प्रतिशत लोग प्रतिदिन 3 डॉलर 20 सेंट से भी कम अर्जित कर पाते हैं.  

रिपोर्ट दिखाती है कि अन्य महत्वपूर्ण विषमताओं में लिंग, उम्र और भौगोलिक परिस्थितियों के आधार पर भेदभाव भी मौजूदा श्रम बाज़ार में अड़ियल असमानताओं के रूप में बनी हुई हैं. इससे व्यक्तियों को निजी रूप में अवसरों का लाभ नहीं मिलता और व्यापक स्तर पर आर्थिक विकास प्रभावित होता है.

विशेष रूप से 15 से 24 वर्ष की उम्र के लगभग 26 करोड़ 70 लाख युवा रोज़गार से बाहर हैं, ना तो कोई शिक्षा हासिल कर रहे हैं और ना ही किसी तरह का प्रशिक्षण ले रहे हैं. और बहुत से युवा तो ऐसे घटिया दर्जे के कामकाजी हालात में काम कर रहे हैं जिनमें बेहतरी नहीं आ रही है.

रिपोर्ट आगाह करती है कि बढ़ते व्यापार प्रतिबंधों और संरक्षणवाद के कारण रोज़गार क्षेत्र पर, प्रत्यक्ष और परोक्ष दोनों ही रूपों में महत्वपूर्ण असर पड़ सकता है.

रिपोर्ट में आर्थिक वृद्धि के बारे में कहा गया कि मौजूदा वृदधि की रफ़्तार और रूप से कम आय वाले देशों में ग़रीबी कम करने और कामकाज के हालात बेहतर बनाने के प्रयासों में बाधाएँ आ रही हैं.

रोज़गार और सामाजिक परिदृष्य के प्रमुख लेखक स्तेफ़ान कुहन का कहना है, “कम गुणवत्ता वाला कामकाज और कामकाज करने के योग्य व उपलब्ध लोगों के श्रम का सदुपयोग नहीं हो पाने का मतलब है कि हमारी अर्थव्यवस्थाएँ और समाज मानवीय प्रतिभा के बहुत बड़े ख़ज़ाने का भरपूर फ़ायदा नहीं उठा पा रही हैं.”

“हम विकास का टिकाऊ व समावेशी रास्ता तभी बना सकते हैं जब हम श्रम बाज़ार में मौजूद विषमताओं और अच्छी गुणवत्ता वाले कामकाज की उपलब्धता की कमी की समस्याओं से निपट लें.”   

अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन की वार्षिक विश्व आर्थिक व सामाजिक परिदृश्य रिपोर्ट दुनिया भर में श्रम बाज़ार के मुद्दों का आकलन और विश्लेषण करती है.

इनमें बेरोज़गारी, मानव संसाधन का भरपूर उपयोग नहीं कर पाना, कामकाज में ग़रीबी, आमदनी में विषमता, श्रम बाज़ार की आमदनी का हिस्सा और ऐसे कारक शामिल होते हैं जो लोगों को सम्मान व समुचित धन के लिए काम करने के अवसरों से वंचित करते हैं.