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म्याँमार: रोहिंज्या ज़िन्दगियों को बचाने के लिए, अन्तरराष्ट्रीय क़दम की पुकार

यूएन के विशेष रैपोर्टेयर के अनुसार, म्याँमार में सैन्य तख़्तापलट के बाद हालात बद से बदतर हुए हैं. (फ़ाइल फ़ोटो)
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यूएन के विशेष रैपोर्टेयर के अनुसार, म्याँमार में सैन्य तख़्तापलट के बाद हालात बद से बदतर हुए हैं. (फ़ाइल फ़ोटो)

म्याँमार: रोहिंज्या ज़िन्दगियों को बचाने के लिए, अन्तरराष्ट्रीय क़दम की पुकार

मानवाधिकार

संयुक्त राष्ट्र के एक स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञ ने आगाह किया है कि म्याँमार के राख़ीन प्रान्त में रोहिंज्या समुदाय के एक और रक्तपात के ख़तरनाक संकेत दिखाई दे रहे हैं और यदि अन्तरराष्ट्रीय समुदाय कार्रवाई करने में विफल रहा तो हज़ारों मासूम ज़िन्दगियाँ ख़त्म हो जाएंगी.

उन्होंने कहा कि इस भयावह स्थिति में आगे बढ़कर क़दम उठाने या उससे पीछे हट जाने का ये निर्णय देशों को लेना है, जोकि अनगिनत रोहिंज्या के लिए जीवन-मृत्यु का विषय बन गया है. 

म्याँमार में मानवाधिकारों की स्थिति पर यूएन के विशेष रैपोर्टेयर टॉम एंड्रयूज़ ने गुरूवार को जारी अपने एक वक्तव्य में राख़ीन प्रान्त में बिगड़ती स्थिति पर गहरी चिन्ता व्यक्त की है. 

बौद्ध बहुल देश म्याँमार में राख़ीन सबसे निर्धन क्षेत्रों में है और इसी प्रान्त में अधिकतर रोहिंज्या आबादी रहती है. 

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पिछले कुछ हफ्तों में राख़ीन प्रान्त में म्याँमार की सशस्त्र सेना और अलगाववादी गुट ‘अराकान आर्मी’ के बीच लड़ाई तेज़ हुई है, जिसमें सैकड़ों लोग हताहत और हज़ारों विस्थापित होने के लिए मजबूर हुए हैं.

साथ ही, आम लोगों को बढ़ते अन्तर-सामुदायिक तनाव और युद्धरत पक्षों द्वारा जबरन सैनिक के रूप में भर्ती किए जाने का सामना करना पड़ रहा है.

यूएन विशेषज्ञ ने कहा कि राख़ीन प्रान्त में स्थानीय समुदायों और रोहिंज्या समुदाय के बीच नफ़रत को भड़काने में सेना की भूमिका स्पष्ट है. “जातीय तनाव उकसाने के लिए प्रोपेगेंडा से लेकर युवा रोहिंज्या पुरुषों की सेना में जबरन भर्ती तक.”

“म्याँमार के राख़ीन प्रान्त में वास्तविक समय में नफ़रत से प्रेरित एक अस्वाभाविक आपदा घटित हो रही है.”

उन्होंने क्षोभ जताया कि ऐसा प्रतीत होता है कि दुनिया एक बार फिर से इन हताश लोगों की संकट की घड़ी में उन्हें मदद देने में विफल साबित हो रही है.

चिन्ताजनक घटनाक्रम

विशेष रैपोर्टेयर के अनुसार, सेना ने इंटरनैट पर पाबन्दी थोपी हुई है, जिससे उत्तरी राख़ीन प्रान्त से सूचना जुटना और अधिक चुनौतीपूर्ण हो गया है. 

इसके बावजूद, लोगों को जान से मार दिए जाने, जबरन ग़ायब होने और बड़े पैमाने पर आगज़नी की घटनाओं में विश्वसनीय रिपोर्ट प्राप्त हो रही हैं.

सैटेलाइट से प्राप्त तस्वीरें दर्शाती हैं कि बुथीदाउंग टाउनशिप के अनेक हिस्सों को जला दिया गया है और हज़ारों रोहिंज्या विस्थापित होने के लिए मजबूर हुए हैं.

“उत्तरी राख़ीन प्रान्त से जो जानकारी उभर करके सामने आई है, उसके मद्देनज़र अन्तरराष्ट्रीय समुदाय द्वारा तत्काल, एक आपात प्रतिक्रिया ज़रूरी है.”

टॉम एंड्रयूज़ ने बताया कि राख़ीन प्रान्त में कई हथियारबन्द गुट सक्रिय हैं, जिनमें म्याँमार की सशस्त्र सेना, अलगाववादी अराकान आर्मी, और अराकान रोहिंज्या मुक्ति आर्मी समेत रोहिंज्या समूह हैं. 

इस पृष्ठभूमि में, उन्होंने सभी पक्षों से अन्तरराष्ट्रीय मानवतावादी क़ानून का अनुपालन करने और धर्म या जातीयता की परवाह किए बग़ैर मासूम ज़िन्दगियों की रक्षा करने के लिए हरसम्भव प्रयास करने की पुकार लगाई है. साथ ही, सच्चाई का पता लगाने व न्याय के लिए एक जाँच के ज़रिये दोषियों की जवाबदेही तय की जानी होगी. 

टॉम एंड्रयूज़ ने कहा कि आपात मानवीय सहायता को राख़ीन में ज़रूरतमन्द आबादी तक पहुँचाने के लिए व्यवस्था को तुरन्त स्थापित किया जाना होगा.

बांग्लादेश से उम्मीद

उन्होंने ध्यान दिलाया कि वर्ष 2017 में बांग्लादेश ने जनसंहार हमलों से जान बचाने के लिए विस्थापित हुए रोहिंज्या समुदाय के लिए अपनी सीमाओं को खोल दिया था.

“एक बार फिर से, बांग्लादेश की उदारता ही उनकी एकमात्र आशा हो सकती है. रोहिंज्या लोगों के बड़े समूह जबरन विस्थापित हैं और सीमा की ओर बढ़ रहे हैं. मैं बांग्लादेश सरकार से उसकी बन्द सीमा नीति को तत्काल पलटने और रोहिंज्या के लिए फिर से मानवतावादी समर्थन दर्शाने की अपील करता हूँ.”

विशेष रैपोर्टेयर ने चेतावनी जारी की है कि बांग्लादेश के पास इस संकट से उपजी ज़रूरतों को पूरा करने की क्षमता नहीं है. और इसलिए आपात हस्तक्षेप और अन्तरराष्ट्रीय समुदाय के समर्थन की आवश्यकता होगी.

बांग्लादेश में शरण पाने वाले रोहिंज्या शरणार्थियों के राशन में कटौती हुई है, बुनियादी ढाँचा अपर्याप्त है, और रोहिंज्या चरमपंथी समूहों द्वारा उन्हें जबरन भर्ती किया जा रहा है.

इससे देश में रोहिंज्या शरणार्थियों पर असर हो रहा है, जिसके मद्देनज़र, हताश परिवारों के लिए वित्तीय समर्थन की व्यवस्था अहम है ताकि शरणार्थी शिविरों में मौजूदा स्थिति में बेहतरी लाई जा सके.