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'आदिवासी जन के अधिकारों पर ऐतिहासिक घोषणापत्र को वास्तविकता में बदलना होगा'

ब्राज़ीली प्रतिनिधिमंडल की महिला सदस्य, दुबई में यूएन जलवायु सम्मेलन कॉप28 में, एक आदिवासी कार्यक्रम में शिरकत करते हुए.
COP28/Mahmoud Khaled
ब्राज़ीली प्रतिनिधिमंडल की महिला सदस्य, दुबई में यूएन जलवायु सम्मेलन कॉप28 में, एक आदिवासी कार्यक्रम में शिरकत करते हुए.

'आदिवासी जन के अधिकारों पर ऐतिहासिक घोषणापत्र को वास्तविकता में बदलना होगा'

मानवाधिकार

संयुक्त राष्ट्र महासभा अध्यक्ष डेनिस फ़्रांसिस ने कहा है कि पिछले एक दशक के दौरान आदिवासी जन के कल्याण को बढ़ावा देने, उनकी संस्कृति की रक्षा करने और यूएन में उनकी भागेदारी बढ़ाने के क्षेत्र में अहम प्रगति हुई है. लेकिन इसके बावजूद, वादों और ज़मीनी वास्तविकता के बीच विशाल खाई बरक़रार है, जिसे दूर किया जाना होगा. 

महासभा हॉल में विश्व नेताओं व प्रतिनिधियों की एक बैठक के दौरान महासभा अध्यक्ष, डेनिस फ़्रांसिस ने कहा, “इस कठिन दौर में, जब शान्ति गम्भीर ख़तरे में है और सम्वाद व कूटनीति समय की माँग बन चुके हैं – आइए, हम सभी आदिवासी समुदाय के लोगों के प्रति अपनी प्रतिबद्धताओं को पूरा करने के लिए एक सकारात्मक सम्वाद का उदाहरण पेश करें.  

यूएन के सदस्य देश बुधवार को आदिवासी जन पर विश्व सम्मेलन की 10वीं वर्षगाँठ के अवसर पर एकत्रित हुए, जहाँ देशों ने आदिवासी समुदायों के अधिकारों को बढ़ावा देने और उनकी रक्षा करने के लिए अपने संकल्प को दोहराया.

2007 में अपनाए गए निष्कर्ष दस्तावेज़ में, आदिवासी जन के अधिकारों पर ऐतिहासिक संयुक्त राष्ट्र घोषणा को लागू करने के लिए समर्थन व्यक्त किया गया था. इसके तहत इन अधिकारों की मान्यता, सुरक्षा व प्रचार के लिए न्यूनतम मानक निर्धारित किए गए थे.

ग़रीबी, असमानता और दुर्व्यवहार

डेनिस फ़्रांसिस ने, किसी को भी पीछे न छोड़ने पर लक्षित सतत विकास 2030 एजेंडा, और स्थानीय भाषाओं के अन्तरराष्ट्रीय दशक (2022-2032) जैसी संयुक्त राष्ट्र की उपलब्धियों का ज़िक्र किया, जिनका उद्देश्य इन भाषाओं तथा स्थानीय संस्कृतियों, परम्पराओं एवं ज्ञान को संरक्षित करना है.

उन्होंने कहा कि प्रगति के बावजूद आदिवासी लोगों को आज भी अत्यधिक निर्धनता में रहने, जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों का सामना करने, और पैतृक भूमि से बेदख़ल होने की आशंका है. 

साथ ही, अन्य समूहों की तुलना में स्वास्थ्य और शिक्षा तक उनकी पहुँच में असमानता बरक़रार है.

इसके अतिरिक्त, गैर-आदिवासी समकक्षों की तुलना में, आज भी स्थानीय समुदायों की महिलाओं को अपने जीवनकाल में यौन हिंसा का अनुभव करने की तीन गुना अधिक सम्भावना रहती है.

उन्होंने कहा, "हमें कार्रवाई में तेज़ी लाकर, 2007 के ऐतिहासिक संयुक्त राष्ट्र घोषणापत्र के संकल्पों को पूरा कर, ज़मीनी स्तर पर सार्थक बदलाव लाना होगा."

अधिकारों पर बल

संयुक्त राष्ट्र के आर्थिक और सामाजिक मामलों के विभाग की प्रमुख, ली जिन्हुआ ने कहा कि विकास प्रक्रियाओं में आदिवासी जन की प्रभावी भागेदारी की कमी, राष्ट्रीय स्तर पर प्रयासों को आगे बढ़ाने में एक बड़ी बाधा बनी हुई है.

हालाँकि, कई देशों की सरकारों ने संयुक्त राष्ट्र की मदद से, आदिवासी लोगों के अधिकारों पर ऐतिहासिक घोषणा को प्रभावी तरीक़े से लागू करने के लिए, राष्ट्रीय कार्य योजना व अन्य उपाय अपनाए हैं.

उन्होंने देशों से आत्मनिर्णय और स्वायत्तता के अधिकार के साथ-साथ, स्थानीय लोगों के समस्त आन्तरिक व सामूहिक अधिकारों को मान्यता देने के लिए ठोस क़दम उठाने का आग्रह किया. इसमें उनकी ऐतिहासिक सम्पत्ति एवं साँस्कृतिक अधिकार भी शामिल हैं.

'धरती माँ के लोग'

सबसे पहले, बोलीविया के उपराष्ट्रपति, डेविड चोकेहुआँका ने विश्व के आदिवासी जन के सामने मौजूद चुनौतियों पर प्रकाश डाला. उन्होंने कहा, “पहले तो, हमें यह स्वीकार करना होगा कि जाने-अनजाने हम आदिवासियों को इसी नाम से पुकारने लगे हैं. 

इसके बजाय हमें “पैतृक स्वदेशी लोग” और “धरती माँ के लोग” शब्दों को विकल्प के रूप में चुनना चाहिए.

एजेंडा 2030 की समय सीमा नज़दीक आती जा रही है.इसके मद्देनज़र, आदिवासी मुद्दों पर संयुक्त राष्ट्र के स्थाई मंच की अध्यक्ष, हिंडोउ ओउमारू इब्राहिम ने सतत विकास की दिशा में प्रगति पर स्वैच्छिक राष्ट्रीय समीक्षाओं में, स्थानीय लोगों को शामिल करने के महत्व पर बल दिया.

उन्होंने कहा, "आदिवासी महिलाएँ व लड़कियाँ, हमारी परम्पराओं की संरक्षक हैं और सतत जीवनयापन की अनुपम अंतर्दृष्टि पेश करती हैं. उन पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है."

हिंडोउ ओउमारू इब्राहिम ने स्थानीय नेतृत्व वाली पहलों को मान्यता देने का भी आहवान किया. इसमें नॉर्वे में 2013 का ऑल्टा सम्मेलन शामिल है, जिससे अगले वर्ष आयोजित होने वाले संयुक्त राष्ट्र विश्व सम्मेलन को आकार मिला था.

उन्होंने कहा, “ऑल्टा का आहवान दोहराते हुए हम अपनी पूर्ण भागेदारी सुनिश्चित करने के लिए, संयुक्त राष्ट्र में एक उचित प्रणाली स्थापित करने और आदिवासी जन के लिए एक अवर-महासचिव की तत्काल नियुक्ति का आग्रह करते हैं."

उन्होंने कहा कि स्थानीय समुदायों में, हर आवाज़ सुनी जाती है - बुद्धिमान बुज़ुर्गों से लेकर उन लोगों तक, जिन्होंने अभी बोलना शुरू ही किया है.

उन्होंने कहा, "इस समावेशन को संयुक्त राष्ट्रीय और बहुपक्षीय प्रक्रियाओं, तथा देशों के भीतर, सभी मंचों पर प्रतिबिंबित किया जाना होगा, जोकि आदिवासी परम्पराओं में निहित खुलेपन एवं आतिथ्य का प्रतीक है."