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आदि भाषाओं को विलुप्त होने से बचाने की अपील

विएतनाम में आदिवासियों के एक समुदाय के बच्चे पढ़ाई करते हुए.
UNICEF/UNI10236/Estey
विएतनाम में आदिवासियों के एक समुदाय के बच्चे पढ़ाई करते हुए.

आदि भाषाओं को विलुप्त होने से बचाने की अपील

मानवाधिकार

विश्व भर में आज सात हज़ार से ज़्यादा आदि भाषाएं बोली जाती हैं लेकिन हर 10 में से चार भाषाओं पर विलुप्त होने का ख़तरा मंडरा रहा है. संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार विशेषज्ञों ने सदियों पुरानी बोलियों को विलुप्त होने से बचाने और भावी पीढ़ियों के लिए संरक्षित रखने की पुकार लगाई है.

संयुक्त राष्ट्र की ओर से नियुक्त विशेषज्ञों ने शुक्रवार, 9 अगस्त, को अंतरराष्ट्रीय आदिवासी जन समूह दिवस से ठीक पहले बुधवार को कहा कि आदि भाषाएं बोलने वाले लोगों के साथ जो भेदभाव जारी है उसके लिए ‘राष्ट्र निर्माण’ ज़िम्मेदार रहा है.

विशेषज्ञों ने आगाह करते हुए कहा कि, “समय के साथ, ऐसी नीतियां संस्कृति को कमज़ोर करती हैं और उसे बर्बाद भी कर देती हैं, यहां तक कि लोगों को भी.”

उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि आदि भाषाओं के ज़रिए अभिव्यक्ति की आज़ादी और विवेक आगे बढ़ता है जो लोगों की गरिमा, संस्कृति और राजनीतिक प्रतिनिधित्व के लिए आवश्यक है. 

आदि भाषाओं को बढ़ावा देने और उन्हें संरक्षित रखने के लिए अगले एक दशक तक प्रयासों पर ज़ोर देने की बात कही गई है.

उन्होंने कहा कि दस साल की अवधि होने से आदि भाषाओं को नष्ट होने से बचाने के लिए ज़रूरी समय और संसाधन मिल सकेंगे और इन भाषाओं को फिर से आदिवासियों और विश्व समुदाय के लिए के भविष्य के लिए सुरक्षित रखा जा सकेगा.

संयुक्त राष्ट्र की एक घोषणा के तहत हर स्थान पर आदिवासियों को अधिकार दिए गए हैं जिससे वे अपनी भाषाओं को फलने-फूलने, उपयोग में लाने, उसका विकास करने और भावी पीढ़ियों तक बढ़ा सकें.

संयुक्त राष्ट्र की ओर से नियुक्त विशेषज्ञों ने बताया कि इस घोषणा के तहत उनके पास शिक्षा, मीडिया और उसे संचालित करने वाली संस्थाएं स्थापित करने और नियंत्रित करने का अधिकार है.

“हम यूएन के सदस्य देशों से अपील करते हैं कि क़ानून, नीतियों और अन्य रणनीतियों के सहारे आदिवासियों के सहयोग से आदि भाषाओं को पहचाना जाए, उनका संरक्षण हो और उन्हें बढ़ावा मिले.”

इसके साथ-साथ द्विभाषिता और मातृभाषा में शिक्षा के लिए समर्थन को महत्वपूर्ण बताया गया है और स्वास्थ्य, रोज़गार, न्यायिक व अन्य सार्वजनिक सेवाओं तक आदि भाषाओं में पहुंच सुनिश्चित करने की ज़रूरत को रेखांकित किया गया है.