आदिवासी समुदायों के अधिकारों के विध्वंसकारी हनन को रोकना होगा, OHCHR प्रमुख
संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त वोल्कर टर्क ने कहा है कि आदिवासी लोगों के पास प्राचीन ज्ञान का भंडार है, जिससे मानवता को पृथ्वी के संसाधनों के टिकाऊ इस्तेमाल की दिशा में आगे बढ़ाया जा सकता है. इसके बावजूद, आदिवासी समुदायों के साथ भेदभाव होता है और उन्हें बहिष्करण का सामना करना पड़ता है.
मानवाधिकार उच्चायुक्त ने सोमवार को जिनीवा में आदिवासी लोगों के अधिकारों पर वार्षिक बैठक को सम्बोधित करते हुए यह बात कही है.
उन्होंने हाल के महीनों में कोलम्बिया, इक्वाडोर, वेनेज़ुएला और केनया की यात्राओं के दौरान आदिवासी लोगों के प्रतिनिधियों के साथ अपनी विस्तार से हुई बातचीत का उल्लेख किया.
वोल्कर टर्क ने कहा कि दोहनकारी उद्योगों का पर्यावरण और आदिवासी लोगों के अधिकारों पर विनाशकारी असर हुआ है. आदिवासियों को उनकी पैतृक भूमि से बेदख़ल किया जा रहा है और उनके क्षेत्रों का सैन्यीकरण बढ़ रहा है.
यूएन उच्चायुक्त के अनुसार, आदिवासियों ने बताया कि किस तरह जलवायु संकट का उनके समुदायों पर नकारात्मक प्रभाव हो रहा है और उन्हें व्यवस्थागत भेदभाव को झेलना पड़ रहा है.
“यह स्पष्ट है कि इन उल्लंघनों को रोका जाना होगा.”
निर्धनता का असन्तुलन
यूएन मानवाधिकार उच्चायुक्त ने कहा कि आदिवासी लोग, विश्व आबादी का केवल छह प्रतिशत हैं, कुल निर्धनों में उनकी संख्या लगभग 20 फ़ीसदी है.
वोल्कर टर्क ने ज़ोर देकर कहा कि उनकी आवाज़ों को हर प्रासंगिक राष्ट्रीय, क्षेत्रीय और वैश्विक चर्चाओं में शामिल किए जाने की आवश्यकता है. साथ ही, आदिवासी मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की हिंसा व बदले की भावना से कार्रवाई से रक्षा की जानी होगी.
उन्होंने बताया कि कोलम्बिया के वर्षावन में पिछले महीने वह चार हुईतोतो बच्चों से मिले, जिनकी माँ की एक विमान दुर्घटना में मौत हो गई.
इन बच्चों को 40 दिनों के बाद जीवित पाया गया, जिनमें एक बच्चे की आयु एक वर्ष है.
“बड़े बच्चे अपनी माँ और नानी के अतीत के सबक़ को ध्यान रखने में सक्षम थे. उन्हें पता था कि वर्षा वन को समझना और जोखिमों के बावजूद पशुओं व पौधों के साथ सह-अस्तित्व सम्भव है.”
वोल्कर टर्क ने कहा कि इस बात की सम्भावना सबसे अधिक है कि आदिवासी लोग ही संस्कृति की श्रृंखला को आगे ले जाएंगे.
आदिवासी समुदाय की भागीदारी
“हम जलवायु परिवर्तन के सन्दर्भ में इसे स्पष्टता से देखते हैं,” जिसका असमान असर हुआ है, और भूमि के सबसे नज़दीक रहने वाले लोगों को इसके बदतरीन प्रभावों से जूझना पड़ता है.
“यह विशेष रूप से आदिवासी महिलाओं के सच है, जिन पर जलवायु क्षति और विशाल परियोजनाओं के असैद्धान्तिक विकास का ग़ैर-आनुपातिक असर हुआ है.”
मानवाधिकार मामलों के लिए यूएन के शीर्ष अधिकारी ने पिछले सप्ताह 30 देशों के 45 आदिवासी नेताओं से मुलाक़ात की, और चर्चा के दौरान अक्सर जलवायु परिवर्तन पर बात हुई है.
एक प्रतिनिधि ने बताया कि जैसे-जैसे बर्फ़ पिघलती है, उनकी संस्कृति और जीवनशैली भी ख़त्म हो जाती है.
वोल्कर टर्क ने बताया कि उस व्यक्ति को आशा है कि संयुक्त राष्ट्र में, जिनीवा स्थित मानवाधिकार परिषद के साथ-साथ आदिवासी लोगों की भागीदारी के लिए और अधिक अवसर होंगे.