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कोविड-19 के दौर में आदिवासी लोगों की सहनशीलता की तरफ़ ध्यान

मलेशिया में आदिवासी समुदाय इस दक्षिण-पूर्वी एशियाई देश में प्राकृतिक वातावरण के काफ़ी पुराने समय से संरक्षक रहे हैं.
Sarawak Biodiversity Centre
मलेशिया में आदिवासी समुदाय इस दक्षिण-पूर्वी एशियाई देश में प्राकृतिक वातावरण के काफ़ी पुराने समय से संरक्षक रहे हैं.

कोविड-19 के दौर में आदिवासी लोगों की सहनशीलता की तरफ़ ध्यान

मानवाधिकार

संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने कहा है कि कोविड-19 महामारी का मुक़ाबला करने के प्रयासों में दुनिया भर में रह रहे लगभग 47 करोड़ 60 लाख आदिवासी लोगों कों शामिल करना और उनकी भागीदारी सुनिश्चित करना  बहुत ज़रूरी है. 

महासचिव ने ये बात विश्व के आदिवासी लोगों के लिये अन्तरराष्ट्रीय दिवस के अवसर पर कही है. ये दिवस, रविवार, 9 अगस्त को मनाया गया.

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महासचिव ने इस अवसर पर दुनिया भर में आदिवासी लोगों पर कोविड-19 के घातक असर की तरफ़ ध्यान दिलाया.

उन्होंने कहा कि पूरे इतिहास के दौरान आदिवासी लोगों को ऐसी बीमारियों की घातकता का सामना करना पड़ा है कहीं और से आईं, और उन बीमारियों के लिये उनके भीतर रोग प्रतिरोधी क्षमता नहीं थी.

उन्होंने कहा कि वैसे तो आदिवासी लोग कोविड-19 महामारी शुरू होने से पहले से ही गहरी जड़ जमाए असमाताओं, कंलक की मानसिकता और भेदभाव का सामना करते रहे हैं, मगर मौजूदा महामारी ने स्वास्थ्य सेवाओं, स्वच्छ जल और स्वच्छता की अपर्याप्त उपलब्धता के कारण उनका स्थिति और भी कमज़ोर बना दी है.

महासचिवन  कहा कि आदिवासी लोगों के परम्परागत अनुष्ठान और ज्ञान ऐसे समाधान प्रस्तुत करते हैं जिन्हें अन्य स्थानों पर भी प्रयोग में लाया जा सकता है.

मसलन, थाईलैण्ड के कैरेन लोगों ने कोविड-19 महामारी का मुक़ाबला करने के लिये क्रोह यी नामक प्राचीन प्रथा फिर से शुरू की जिसका अर्था होता – गाँव की चौबन्दी.

अन्य एशियाई व लातीनी अमेरिकी देशों में भी कुछ इसी तरह की रणनीतियाँ अपनाई गईं जहाँ समुदायों ने अपने क्षेत्रों में बाहरी लोगों का प्रवेश प्रतिबन्धित कर दिया.

आदिवासी लोगों की असाधारण सहनशीलता

यूएन प्रमुख ने अपने सन्देश में आदिवासी लोगों द्वारा अनेक तरह की चुनौतियों के माहौल में दिखाई जा रही असाधारण सहनशीलता की तरफ़ भी ध्यान दिलाया है. 

बहुत से आदिवासी लोगों के परम्परागत पेशों, अनौपचारिक क्षेत्रों और टिकाऊ अर्थव्यवस्थाओं में रोज़गार ख़त्म हो गए हैं. हस्तकलाओं, उत्पादों व अन्य सामान के बाज़ार बन्द होने से आदिवासी महिलाएँ विशेष रूप से रूप से प्रभावित हुई हैं. 

ग़ौरतलब है कि ये महिलाएँ ही अपने परिवारों के लिये खाद्य और पोषण की मुख्य प्रदाता होती हैं. इसी तरह बच्चे भी बड़े पैमाने पर प्रभावित हुए हैं क्योंकि उनकी शिक्षा ठप हो गई है और वर्चुअल शिक्षण माध्यम उनके लिये उपलब्ध नहीं हैं.

इसके अतिरिक्त आदिवासी लोग धमकियों और हिंसा के भी शिकार रहे हैं. अवैध खदानकर्ताओं द्वारा आदिवासी लोगों की ज़मीनों पर क़ब्ज़ा करने के बढ़ते मामलों के कारण बहुत से आदिवासी लोगों की जान भी चली गई है. ख़ासतौर से कोविड-19 महामारी के समय में पर्यावरण संरक्षण ठोस तरीक़े से लागू नहीं होने के कारण उन्हें इस कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है.

महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने कहा कि इन चुनौतियों के बावजूद आदिवासी लोगों ने असाधारण सहनशीलता और लचीलेपन का प्रदर्शन किया है. उन्होंने तमाम देशों से आग्रह किया कि वो आदिवासी लोगों के योगदान व अधिकारों का सम्मान करें.

महामारी से उबरने के प्रयासों में आदिवासी लोगों की राय भी शामिल होनी चाहिये. तमाम यूएन एजेंसियाँ आदिवासी लोगों के अधिकारों को वज़न देने के लिये हमेशा ही काम करती रही हैं.

उन्होंने कहा, “पूरी यूएन व्यवस्था आदिवासी लोगों के अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र के सार्वभौम घोषणा-पत्र को धरातल पर लागू करने के लिये हमेशा ही प्रतिबद्ध रही है.”

अन्तरराष्ट्रीय दिवस

जिनीवा में 1982 में यूएन आदिवासी आबादी कार्यसमूह की पहली बैठक हुई थी जिसकी याद में 9 अगस्त को आदिवासी लोगों का अन्तरराष्ट्रीय दिवस मनाया जाता है.

इस वर्ष इस दिवस की थीम थी कोविड-19 महामारी और आदिवासी लोगों की सहनशीलता. इस अवसर अनेक गतिविधियाँ आयोजित हुईं जिनमें ज़्यादातर वर्चुअल माध्यमों पर.

इनमें आदिवासी लोगों के विभिन्न संगठनों, यूएन एजेंसियों, संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों, सिविल सोसायटी और अन्य साझीदारों ने शिरकत की.