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'स्टैन स्वामी की हिरासत में मौत, भारत के मानवाधिकार रिकॉर्ड पर एक धब्बा'

भारत: 84 वर्षीय मानवाधिकार पैरोकार स्टैन स्वामी को अक्टूबर 2020 में, आतंकवादी गतिविधियों में शामिल होने के आरोपों में हिरासत में लिया गया था. (फ़ाइल फ़िटो)
Unsplash/R.D. Smith
भारत: 84 वर्षीय मानवाधिकार पैरोकार स्टैन स्वामी को अक्टूबर 2020 में, आतंकवादी गतिविधियों में शामिल होने के आरोपों में हिरासत में लिया गया था. (फ़ाइल फ़िटो)

'स्टैन स्वामी की हिरासत में मौत, भारत के मानवाधिकार रिकॉर्ड पर एक धब्बा'

मानवाधिकार

संयुक्त राष्ट्र की एक मानवाधिकार विशेषज्ञ मैरी लॉलॉर ने बृहस्पतिवार को कहा है कि भारत में एक मानवाधिकार पैरोकार फ़ादर स्टैन स्वामी की मृत्यु सरकारी हिरासत में होना, देश के मानवाधिकार रिकॉर्ड पर हमेशा के लिये एक धब्बा रहेगा.

84 वर्षीय मानवाधिकार पैरोकार स्टैन स्वामी का 5 जुलाई को मुम्बई की एक जेल में निधन हो गया था. स्टैन स्वामी लगभग 40 वर्षों तक, मानवाधिकार पैरोकार और सामाजिक न्याय के हिमायती रहे.

मानवाधिकार पैरोकारों की स्थिति पर संयुक्त राष्ट्र की विशेष रैपोर्टेयर मैरी लॉलॉर ने कहा है कि स्टैन स्वामी को परकिन्सन बीमारी थी और उन्हें अक्टूबर 2020 में, आतंकवाद के मनगढ़न्त आरोपों में गिरफ़्तार करके जेल में बन्द रखा गया था. इस दौरान उन्हें प्रताड़ित किया गया और बार-बार गहन पूछताछ की गई.

उन्होंने कहा, “मुझे ये सुनकर बहुत सदमा लगा कि आदिवासी लोगों व हाशिये पर धकेल दिये गए समूहों के अधिकारों के लिये दशकों तक काम करने वाले एक कैथलिक पादरी फ़ादर स्टैन स्वामी का, सरकारी हिरासत में 5 जुलाई को निधन हो गया. बावजूद इसके कि उनकी रिहाई के लिये अनेक बार अनुरोध किये गए और जेल में उनका स्वास्थ्य लगातार ख़राब हो रहा था.”

“नवम्बर 2020 के आरम्भ में संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार विशेषज्ञों ने मेरे साथ मिलकर, ये मामला भारत सरकार के साथ उठाया था और उन्हें देश की अन्तरराष्ट्रीय मानवाधिकार ज़िम्मेदारियों के बारे में याद दिलाया था. हम एक बार फिर ये पूछते हैं कि स्टैन स्वामी को रिहा क्यों नहीं किया गया, और हिरासत में उनकी मौत क्यों हुई.”

स्टैन स्वामी को परकिन्सन बीमारी होने के कारण उनके दोनों हाथों में बहुत तेज़ हरकत होती रहती थी, और खाने-पीने, स्नान करने व साफ़-सफ़ाई वाले रोज़मर्रा के काम करने में भी भारी मुश्किल होती थी. 

उन्हें सुनाई भी कम देता था और दोनों कानों में, सुनवाई में मदद करने वाले उपकरण लगाने पड़ते थे. 

नवम्बर 2020 में, उन्होंने तरल पदार्थ पीने के लिये एक नलिका और गर्म कपड़े मुहैया कराने की अर्ज़ी दाख़िल की थी मगर उनका ये अनुरोध नामंज़ूर कर दिया गया था. उन्हें जेल में ही कोविड-19 का संक्रमण हो गया था.

विशेष मानवाधिकार रैपोर्टेयर मैरी लॉलॉर ने कहा, “किसी मानवाधिकार पैरोकार को आतंकवादी का ठप्पा लगाकर बदनाम करने के लिये, कोई भी वजह या बहाना क़तई जायज़ या सही नहीं हो सकता, और कोई भी वजह नहीं है कि उन्हें फ़ादर स्टैन स्वामी की तरह मौत का शिकार होना पड़े, अभियुक्त के तौर पर व हिरासत में, और अधिकारों से वंचित.”

फ़ादर स्टैन स्वामी भारत के झारखण्ड प्रान्त में जमशेदपुर के निवासी थे. उन्होंने राँची में एक सामाजिक शोध और प्रशिक्षण केन्द्र की स्थापना की थी जिसका नाम था – बगाइचा. 

स्टैन स्वामी दशकों से आदिवासी अल्पसंख्यक समूहों और दलित अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा के लिये काम कर रहे थे. उन्होंने ख़ासतौर से जबरन विस्थापन और लोगों की ज़मीनों पर अवैध क़ब्ज़ा किये जाने से होने वाले मानवाधिकार हनन के ख़िलाफ़ विशेष काम किया.

मैरी लॉलॉर ने कहा, “हम जानते हैं कि पर्यावरण, भूमि और आदिवासी लोगों के अधिकारों से जुड़े मुद्दों पर काम करने वाले मानवाधिकार पैरोकार, निशाना बनाए जाने के लिये बेहद कमज़ोर हालात का सामना करते हैं.”

यूएन मानवाधिकार विशेषज्ञ ने कहा कि फ़ादर स्टैन स्वामी का मामला, तमाम देशों को यह याद दिलाने का मौक़ा होना चाहिये कि सभी मानवाधिकार पैरोकार, और जिन्हें पर्याप्त क़ानूनी आधारों के अभाव में गिरफ़्तार किया गया है, उन सभी को रिहा कर दिया जाए.

मैरी लॉलर की इस पुकार का, अल्पसंख्यक मुद्दों पर विशेष रैपोर्टेयर फ़र्नाण्ड डी वैरेनेस और शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य के अधिकार पर विशेष रैपोर्टेयर त्लालेंग मोफ़ोकेन्ग ने भी समर्थन किया है.