महिला जननांग विकृति (FGM) की ‘घिनौनी प्रथा’ को रोकें, गुटेरेश
संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने आगाह करते हुए कहा कि इस वर्ष लगभग 44 लाख लड़कियाँ, महिला जननांग विकृति (FGM) के ख़तरे का सामना कर रही हैं. उन्होंने "मौलिक मानवाधिकारों के इस गम्भीर उल्लंघन" को रोकने और इस कुप्रथा की पीड़िताओं की आवाज़ बुलन्द करने के लिए कार्रवाई की अपील भी की है.
यूएन प्रमुख एंतोनियो गुटेरेश ने हर साल, 6 फ़रवरी को मनाए जाने वाले 'महिला जननांग विकृति (FGM) के लिए, शून्य सहिष्णुता के अन्तरराष्ट्रीय दिवस' के अवसर पर अपने सन्देश में कहा है, "इस विकृति का एक मामला भी कहीं बहुत अधिक है."
संयुक्त राष्ट्र का अनुमान है कि विश्व स्तर पर, 20 करो महिलाओं और लड़कियों को, किसी न किसी रूप में महिला ख़तना यानि FGM का शिकार होना पड़ा है, जिसमें ग़ैर-चिकित्सीय कारणों के लिए, महिला जननांग के एक हिस्से को हटाना या उसे क्षति पहुँचाना शामिल है.
पितृसत्तात्मक मानदंडों को चुनौती दें
महासचिव ने सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) के अनुरूप, 2030 तक इस कुप्रथा का उन्मूलन करने के लिए तत्काल संसाधन निवेश की आवश्यकता पर बल दिया.
उन्होंने उन सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक मानदंडों से निपटने के लिए, निर्णायक कार्रवाई का आहवान किया जो महिलाओं और लड़कियों के ख़िलाफ़ भेदभाव को क़ायम रखते हैं, उनकी भागेदारी और नेतृत्व को सीमित करते हैं और शिक्षा व रोज़गार तक उनकी पहुँच को प्रतिबन्धित करते हैं.
उन्होंने कहा, "इसकी शुरुआत इस घृणित प्रथा की जड़ में मौजूद पितृसत्तात्मक सत्ता संरचनाओं और दृष्टिकोण को चुनौती देने से होती है."
पीड़िताओं के लिए सहायता
संयुक्त राष्ट्र प्रमुख ने देशों से, महिलाओं और लड़कियों के अधिकारों को बनाए रखने के लिए प्रयासों और निवेश को दोगुना करने व एफ़जीएम को सदैव के लिए निर्णायक रूप से समाप्त करने का आग्रह किया.
उन्होंने कहा, "और हमें पीड़िताओं की आवाज़ को बुलन्द करने और उनकी शारीरिक स्वायत्तता के आधार पर उनके जीवन पर उनके पुनः अधिकार की ख़ातिर, उनके प्रयासों का समर्थन करने की ज़रूरत है."
यमन में दुष्चक्र को तोड़ना
संयुक्त राष्ट्र की यौन और प्रजनन स्वास्थ्य एजेंसी - UNFPA, एफ़जीएम के इर्दगिर्द के मौजूद चक्र को तोड़ने में, समुदायों की मदद कर रही है.
यमन के हद्रामाउट के एक दूरदराज़ के गाँव की एक युवा महिला, जिसका नाम सफ़िया (उसका असली नाम नहीं) है, उन लोगों में से है जो इस कुप्रथा के विरुद्ध आवाज़ बुलन्द कर रही हैं.
साफ़िया की शादी, 21 साल की उम्र में हो गई थी और एक साल बाद वह गर्भवती हो गईं. दुनिया भर में भावी माताओं की तरह, उन्हें भी ढेर सारी सलाहें मिलीं - चाहे मांगी गई हो या नहीं. उसके बच्चे के जन्म के कुछ महीने पहले ही, उसकी सास ने, एफ़जीएम के बारे में बात करना शुरू कर दिया था.
साफ़िया ने यूएनएफ़पीए को बताया, "मेरी सास ने ज़ोर देकर कहा कि इससे मेरे बच्चे को नैतिक जीवन जीने का मौक़ा मिलेगा."
एक माँ की भारी क्षति
सफ़िया ने बच्चे को जन्म दिया और तीन दिन बाद, उसकी सास बच्ची का ख़तना करने के लिए, औज़ार लेकर पहुँच गई. दुर्भाग्य से, उनकी बेटी जीवित नहीं बची.
सफ़िया ने कहा, "उसकी मौत ने न केवल माँ बनने की मेरी ख़ुशी ख़त्म कर दी, बल्कि मुझे हज़ारों गुना ज़्यादा मार डाला."
यूएनएफ़पीए का कहना कि यमन में वर्ष 2013 में, 15 से 49 वर्ष की आयु की लगभग 20 प्रतिशत महिलाएँ और लड़कियाँ एफ़जीएम की भुक्तभोगी रह चुकी हैं. इनमें से अधिकांश के जननांग को, उनके जीवन के पहले सप्ताह के भीतर ही काट दिया गया.
पालन करने का दबाव
संयुक्त राष्ट्र एजेंसी ने कहा कि कई कारक इस प्रथा को आगे बढ़ा रहे हैं, जिनमें गहराई से अन्तर्निहित सांस्कृतिक मानदंडों का पालन करने का दबाव, ऐसा नहीं करने पर बहिष्कार का डर और इसके नुक़सान के बारे में सीमित जागरूकता शामिल है.
बहुत से लोगों का मानना है कि यह प्रक्रिया, धर्म के अनुसार आवश्यक है, जबकि इसके विपरीत प्रचुर सबूत मौजूद हैं. जो महिलाएँ एफ़जीएम से पीड़ित होती हैं वे अक्सर, इस परम्परा को जारी रखने का समर्थन करती हैं.
साफ़िया ख़ुद भी एफ़जीएम से पीड़ित है, लेकिन वह बहुत कुछ झेल चुकी थी. जब वह दोबारा गर्भवती हुईं तो उन्होंने कार्रवाई करने का फ़ैसला किया.
उन्होंने कहा, "मैंने अपनी बेटी को बचाने के लिए कुछ नहीं करने के लिए, ख़ुद को दोषी ठहराया और सवाल करना शुरू कर दिया कि लड़की होने के कारण उसे इस क्रूर तरीक़े से क्यों मार दिया गया."
जागरूकता जो जीवन बचाती है
इस बार, सफ़िया ने अपने पड़ोसियों की ओर रुख़ किया क्योंकि उन्होंने अपनी बेटियों का ख़तना कराने से परहेज़ किया था.
उसे एक महिला से मालूम हुआ कि यूएनएफ़पीए समर्थित युवा-अनुकूल सेवा केन्द्र का दौरा करने के बाद, उसके पति और ससुराल वालों - दोनों को इस प्रथा को छोड़ने के लिए राज़ी कर लिया गया था. सफ़िया के पति ने अपनी माँ से उनके साथ वहाँ जाने का आग्रह किया.
उन्होंने कहा, "हम तीनों ने महिला जननांग विकृति के शारीरिक, मानसिक और सामाजिक परिणामों के बारे में तीन घंटे से अधिक समय तक बात सुनी.”
“हम इस बात से अवगत हो गए कि यह प्रथा कितनी हानिकारक है और पूरी तरह आश्वस्त थे कि यह किसी बच्ची के साथ नहीं होना चाहिए."
2008 से, यूएनएफ़पीए ने संयुक्त राष्ट्र बाल कोष -यूनीसेफ़ के साथ मिलकर, एफ़जीएम उन्मूलन में तेज़ी लाने के लिए सबसे बड़े वैश्विक कार्यक्रम का नेतृत्व किया है.
सफ़िया ने कहा, "मैंने अपनी दूसरी बेटी की जान बचाई. इस जागरूकता के साथ, मुझे विश्वास है कि मैं कई निर्दोष लड़कियों की जान बचाने में मदद कर सकती हूँ."