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साक्षात्कार: 'गाम्बिया में हर दूसरी युवती, महिला ख़तना (FGM) की शिकार’

गाम्बिया में महिला जननांग विकृति के पूर्व चिकित्सक
UNFPA
गाम्बिया में महिला जननांग विकृति के पूर्व चिकित्सक

साक्षात्कार: 'गाम्बिया में हर दूसरी युवती, महिला ख़तना (FGM) की शिकार’

महिलाएँ

गाम्बिया में अधिकतम महिलाएँ, महिला जननांग विकृति (FGM), माहवारी के दौरान उपयुक्त उत्पादों तक पहुँच में बाधाओं और घरेलू हिंसा का सामना कर रही हैं. देश में संयुक्त राष्ट्र की यौन एवं प्रजनन एजेंसी (UNFPA) की प्रमुख ऐनडेई रोज़ सर्र ने, यूएन न्यूज़ के साथ एक साक्षात्कार में, इन चुनौतियों से निपटने के लिए संयुक्त राष्ट्र के प्रयासों को रेखांकित किया.

ऐनडेई रोज़ सर्र: जब किसी लड़की की माहवारी का समय आता है, तभी से ज़्यादातर समस्याएँ शुरू होती हैं. लड़की को दस साल की उम्र से ही ख़ुद से काफ़ी बड़ी उम्र के पुरूष के लिए सम्भावित दुल्हन के रूप में देखा जाने लगाता है. और अगर इस लड़की का उस समय तक ख़तना (FGM) नहीं हुआ है, तो उसके समुदाय में ऐसे लोग होते हैं जो यह सुनिश्चित करेंगे कि वो ऐसा करे.

गाम्बिया में 14 से 49 वर्ष की आयु सीमा में महिला जननांग विकृति (FGM)  की दर लगभग 76 प्रतिशत है, और 14 वर्ष की उम्र वाली लड़कियों के लिए ये संख्या क़रीब  51 प्रतिशत है. इसका मतलब है कि गाम्बिया में, औसतन हर दूसरी युवा लड़की इस यातना से गुज़र चुकी होती है. इस प्रक्रिया में, लड़की के जननांग के कुछ बाहरी हिस्से को, अचिकित्सीय कारणों से काटकर हटा दिया जाता है.

इस प्रथा का शिकार होने वाली लड़कियों और महिलाओं को, इसके गम्भीर शारीरिक व मानसिक परिणाम झेलने पड़ते हैं. ख़तना की शिकार हुई महिलाओं को, बच्चे को जन्म देते समय जटिलताओं का सामना करना पड़ सकता है. इनमें कुछ ऐसी गम्भीर समस्याएँ होती हैं जिनके कारण महिलाओं को समुदायों के बहिष्करण और पतियों द्वारा छोड़ देने जैसे हालात का सामना करना पड़ता है.

द गाम्बिया में महिला जननांग विकृति (FGM) को समाप्त करने के लिए बुलाए जाने वाला एक समारोह.
UNFPA

'महिलाएँ ही करती हैं महिलाओं का ख़तना'

महिला जननांग विकृति (FGM) जैसी प्रथा को आगे बढ़ाने के लिए महिलाएँ ही ज़िम्मेदार हैं. ज़्यादातर मामलों में, परिवार में सबसे बड़ी महिला – दादी या नानी ही इस क्रूर परम्परा को अंजाम देती है. देश से बाहर रहने वाले गाम्बिया के मूल नागरिक जन, अपने बच्चों को ख़तना के लिए ख़ासतौर पर देश वापिस लेकर आते हैं. और पुरुष आपको बताते हैं कि ये "महिलाओं का मामला" है.

इस प्रथा का अन्त करने के लिए पुरुषों व लड़कों को सामने आना होगा, उनकी साझेदारी बेहद अहम है. हम एक ऐसे समाज में हैं जहाँ निर्णय लेने वाले पुरुष हैं, वे पति हैं, पारम्परिक व धार्मिक नेता हैं जो समाज को दिशा निर्देश देते हैं कि क्या करना है और क्या नहीं करना है.

हम चाहते हैं कि देश का हर युवा, सभी पुरुष, चाहे वे पिता हों, पति हों या अपने समुदाय के पारम्परिक नेता हों, इस प्रथा को आगे बढ़ावा ना दें. अध्ययन बताते हैं कि जिन देशों में पुरुष इस प्रथा के ख़िलाफ़ खड़े हुए हैं, वहाँ ख़तना के मामलों में कमी आई है.

गैंबियन स्कूली छात्राओं ने प्रजनन और महावारी के बारे में जानकारी.
UNFPA

यूएन न्यूज़: देश में महिला ख़तना (FGM) का अन्त देखने के लिए हमें और कितना इन्तज़ार करना होगा?

ऐनडेई रोज़ सर्र:  महिला जननांग विकृति (FGM) वास्तव में वर्ष 2015 से अवैध क़रार दे दी गई थी. हालाँकि, तब से केवल दो मामले न्याय के दायरे में लाए गए हैं, जिसमें अब तक किसी को भी दोषी नहीं ठहराया गया है.

क़ानून में तत्काल बदलाव की आवश्यकता है. इस समस्या से निपटने के लिए तत्काल संसाधन निवेश के साथ कार्रवाई की भी दरकार है, लोगों में इसके प्रति जागरूकता बढ़ाने में और दोषियों के ख़िलाफ़ मुक़दमा चलाए जाने के लिए, सरकार की प्रतिबद्धता बेहद महत्वपूर्ण है.

हमें बड़े स्तर पर समुदाय को साथ लेकर चनला होगा. लड़कियों के लिए संस्कार महत्वपूर्ण हैं, लेकिन हमें महिला जननांग विकृति की चरम सीमा तक नहीं जाना है. हम इस अहम पड़ाव से गुज़रने के लिए नए तरीके खोज सकते हैं, ठीक वैसे ही जैसे लड़कों के लिए होते हैं. यह किसी के लिए हानिकारक नहीं होना चाहिए, और यह कुछ ऐसा नहीं हो, जो व्यक्ति की शारीरिक स्वायत्तता पर आक्रमण करे.

फ़िलहाल, शिशु भी इस क्रूर प्रथा की शिकार होते हैं. आप ये नहीं कह सकते कि एक बच्ची को ये मालूम होता है कि उसके साथ क्या हो रहा है या फिर वो अपनी सहमति देने के क़ाबिल होती है.

ग्रामीण गाम्बिया में UNFPA कार्यशाला में पुन: प्रयोग करने वाले सैनिटरी पैड का उत्पादन किया गया.
UNFPA

यूएन न्यूज़: माहवारी के दौरान स्वच्छता के लिए आवश्यक उत्पादों तक पहुँच न होना एक बड़ी समस्या है, इससे निपटने के लिए क्या क़दम उठाए जा सकते हैं?

ऐनडेई रोज़ सर्र: जी हाँ, समस्त गाम्बिया में ये एक व्यापक मुद्दा है लेकिन ग्रामीण इलाक़ों में ये स्थिति गम्भीर स्तर पर है. इन क्षेत्रों में अमूमन महिलाओं के पास सैनिटरी पैड तक पहुँच नहीं होती है.

माहवारी स्वच्छता के अभाव के कारण लड़कियों को लगभग पाँच दिनों तक स्कूल छोड़कर घर पर रहना पड़ता है. लड़कियाँ, कपड़ों पर दाग़ लगने और उस कथित शर्मिन्दगी से बचने के लिए ऐसा करने पर मजबूर होती हैं और ये साल में, स्कूल के 40 से 50 दिनों का नुक़सान होता है.

इसलिए लड़के लड़कियों की तुलना में आगे रहते हैं क्योंकि वे लगातार स्कूल जाते हैं.

इसलिए हमने ऊपरी नदी क्षेत्र बास्सी में, ऐसे सैनिटरी पैड बनाने की परियोजना विकसित की है जिससे उन्हें पुनः प्रयोग किया जा सके. इस तरह हम समुदाय में युवा महिलाओं को सशक्त बना सकते हैं. इन महिलाओं के पास अब एक सुरक्षित रोज़गार व कामकाज है, वे नए कौशल सीख रही हैं, और महिलाओं व लड़कियों की मासिक धर्म स्वच्छता में सुधार हो रहे हैं.

हम स्कूलों में पैड बाँटते हैं और जब हम वहाँ होते हैं, तो हमें शारीरिक स्वायत्तता और व्यापक स्वास्थ्य शिक्षा के बारे में बात करने का मौक़ा मिलता है. हमारी कोशिश रहती है कि लड़कियाँ अपने शरीर के बारे में अधिक जान सकें कि उनके शरीर के साथ क्या हो रहा है, क्या ठीक है और क्या ठीक नहीं है. मुझे लगता है कि हम बास्सी क्षेत्र में अच्छा काम कर रहे हैं.

हमें ये समझना होगा कि विश्व में ऐसी लड़कियाँ हैं जिनके पास माहवारी के दौरान स्वास्थ्य और स्वच्छता तक पहुँच नहीं है. और हमें इसे ख़त्म करना होगा.