वैश्विक परिप्रेक्ष्य मानव कहानियां

म्याँमार: विस्थापन के छह साल बाद भी, रोहिंज्या शरणार्थी न्याय की तलाश में

सितम्बर 2017 में, म्याँमार से भागकर, बंगाल की खाड़ी पार करके, बांग्लादेश के कॉक्सेस बाज़ार ज़िले में पहुँचे, रोहिंज्या शरणार्थी,
UNICEF/Patrick Brown
सितम्बर 2017 में, म्याँमार से भागकर, बंगाल की खाड़ी पार करके, बांग्लादेश के कॉक्सेस बाज़ार ज़िले में पहुँचे, रोहिंज्या शरणार्थी,

म्याँमार: विस्थापन के छह साल बाद भी, रोहिंज्या शरणार्थी न्याय की तलाश में

मानवाधिकार

संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त वोल्कर टर्क ने कहा है कि वर्ष 2017 में म्याँमार में सुरक्षा बलों के अभियान के दौरान, हज़ारों रोहिंज्या लोगों को उनके घरों से बेदख़ल करने के लिए ज़िम्मेदार लोगों की जवाबदेही तय की जानी होगी. रोहिंज्या समुदाय के विस्थापन को जातीय सफ़ाए के एक सटीक उदाहरण के रूप में परिभाषित किया गया है. 

Tweet URL

शुक्रवार, 25 अगस्त को, म्याँमार की सेना द्वारा देश के राख़ीन प्रान्त में मुख्यत: मुस्लिम अल्पसंख्यक समुदाय के विरुद्ध बड़े पैमाने पर छेड़ी गई कार्रवाई को छह साल पूरे हो रहे हैं. 

इस अभियान के दौरान लगभग दस हज़ार रोहिंज्या पुरुष, महिला, बच्चे और नवजात शिशु मारे गए, और 300 से अधिक गाँवों को जला कर राख कर दिया गया था. 

सात लाख लोगों ने अपनी जान बचाने के लिए म्याँमार से भागकर बांग्लादेश में शरण ली थी, जहाँ पहले से ही हज़ारों रोहिंज्या लोगों ने उत्पीड़न से बचने के लिए आश्रय लिया हुआ था. 

संयुक्त राष्ट्र के पूर्व मानवाधिकार उच्चायुक्त ज़ाएद राअद अल-हुसैन ने म्याँमार में रोहिंज्या समुदाय को उनके घरों से बेदख़ल किए जाने के इस बर्बर अभियान को, जातीय सफ़ाए का एक सटीक उदाहरण क़रार दिया था.

लगभग दस लाख से अधिक रोहिंज्या लोगों ने उत्पीड़न और व्यवस्थागत भेदभाव से बचने के लिए म्याँमार छोड़कर शरणार्थी संरक्षण के लिए बांग्लादेश का रुख़ किया. 

क़रीब छह लाख रोहिंज्या अभी भी राख़ीन प्रान्त में हैं, जहाँ उनके अधिकारों पर पाबन्दियाँ लगाई गई हैं और उनके विरुद्ध हिंसा का जोखिम है.

हताशा भरी परिस्थितियों में हज़ारों लोग अब भी शरण व बेहतर अवसरों की तलाश में अक्सर जोखिम भरे समुद्री मार्ग से यात्रा करने के लिए मजबूर होते हैं और त्रासदी का शिकार होते हैं.

मानवाधिकार उच्चायुक्त वोल्कर टर्क ने अपने एक वक्तव्य में इच्छा व्यक्त की है कि वह रोहिंज्या लोगों को सुरक्षा, गरिमा और आज़ादी के साथ अपने घरों को लौटते हुए देखना चाहते हैं. 

शरणार्थियों की वापसी पर बल

उन्हें म्याँमार के नागरिक के रूप में मान्यता देते हुए, उनके मानवाधिकारों की बिना किसी शर्त के रक्षा की जानी होगी. 

“राख़ीन प्रान्त में फ़िलहाल ख़तरनाक परिस्थितियों के कारण ऐसी स्थिति नहीं है. इसके अलावा, सेना ने रोहिंज्या के ख़िलाफ होने वाले व्यवस्थागत भेदभाव से निपटने की कोई इच्छा नहीं दिखाई है."

बांग्लादेश के कॉक्स बाज़ार में एक शरणार्थी शिविर में अपनी अस्थायी झोपड़ी में एक माँ और बेटी.
© UNICEF/Suman Paul Himu

यूएन मानवाधिकार उच्चायुक्त ने दोषियों की जवाबदेही के लिए अपनी अपील दोहराते हुए अन्तरराष्ट्रीय समुदाय से आग्रह किया कि बांग्लादेश में रोहिंज्या शरणार्थियों और उनके मेज़बान समुदायों के लिए समर्थन जारी रखना होगा.

ग़ौरतलब है कि रोहिंज्या शरणार्थियों और उनके मेज़बान समुदाय तक मानवीय सहायता पहुँचाने के लिए सहायता धनराशि की क़िल्लत है, जिसके कारण राहत कार्यक्रमों में कटौती के लिए मजबूर होना पड़ा है. 

वोल्कर टर्क ने कहा कि रोहिंज्या समुदाय का उत्पीड़न करने वाले अभियान बार-बार छेड़े जाने और देश को मानवाधिकार व मानवीय संकट में धकेलने के लिए सेना की जवाबदेही तय की जानी होगी. 

वोल्कर टर्क ने कहा कि रोहिंज्या के साथ-साथ अन्य समूहों के ख़िलाफ अतीत में और वर्तमान में अंजाम दिए गए अपराधों के लिए म्याँमार की सेना को छूट मिली हुई थी. इसके मद्देनज़र, उन्होंने देशों से अन्तरराष्ट्रीय जवाबदेही प्रयासों का पूरा समर्थन करने का आहवान किया है.