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रोहिंज्या संकट के पाँच साल: अन्तराष्ट्रीय समुदाय से पीड़ितों के लिये एकजुटता से काम जारी रखने की अपील

यौन हिंसा से बची रोहिंग्या शरणार्थी महिलाएं उन 800,000 से अधिक रोहिंग्याओं में सबसे अधिक हाशिए पर हैं, जिन्हें अगस्त के बाद से म्यांमार से बांग्लादेश भेज दिया गया था.
यूनिसेफ/ब्रायन सोकोली
यौन हिंसा से बची रोहिंग्या शरणार्थी महिलाएं उन 800,000 से अधिक रोहिंग्याओं में सबसे अधिक हाशिए पर हैं, जिन्हें अगस्त के बाद से म्यांमार से बांग्लादेश भेज दिया गया था.

रोहिंज्या संकट के पाँच साल: अन्तराष्ट्रीय समुदाय से पीड़ितों के लिये एकजुटता से काम जारी रखने की अपील

प्रवासी और शरणार्थी

संघर्षों की स्थितियों में यौन हिंसा पर यूएन प्रमुख की विशेष प्रतिनिधि प्रमिला पैटन ने रोहिंज्या संकट के पाँच वर्ष पूरे होने के अवसर पर अन्तराष्ट्रीय समुदाय से रोहिंज्या लोगों के साथ एकजुटता जारी रखने का आहवान किया है. उन्होंने साथ ही यौन हिंसा के पीड़ितों के लिये न्याय व जवाबदेही से सम्बन्धित प्रयासों का दायरा बढ़ाने का आग्रह भी किया है.

प्रमिला पैटन ने गुरूवार को एक वक्तव्य जारी करके कहा है कि रोहिंज्या शरणार्थी संकट, अपने पाँचवें वर्ष में अभूतपूर्व वैश्विक अशान्ति के समय में प्रवेश कर रहा है, और सशस्त्र संघर्षों व बढ़े हुए सैन्यकरण ने जीवन, स्वास्थ्य प्रणालियों, अर्थव्यवस्था और समुदायों को तबाह करके रख दिया है.

उन्होंने कहा है कि अन्तत: इस संकट का हल म्याँमार में है, देश फिर से एक और राजनैतिक उथल-पुथल के दौर से गुज़र रहा है, जो फ़रवरी 2021 में सैन्य नेतृत्व - तत्मादाव द्वारा सत्ता अधिग्रहण किये जाने से और बिगड़ गया, लिहाज़ा रोहिंज्या लोग एक बार फिर से अनिश्चितता में हैं.

विशेष प्रतिनिधि प्रमिला पैटन ने कहा, "मैं, शरणार्थी संकट के लिये सीमित संसाधनों के माहौल में, बांग्लादेश सरकार के अत्यन्त उदार योगदान के लिये उनका आभार प्रकट करती हूँ. मैं, इन परिस्थितियों में, अन्तरराष्ट्रीय समुदाय से कार्रवाई करने और गम्भीर अन्तरराष्ट्रीय अपराधों के भुक्तभोगी रोहिंज्या पीड़ितों के साथ एकजुटता से खड़े रहने का आग्रह करती हूँ, ताकि न्याय और निवारण तक पहुँच सुनिश्चित हो सके, जो कि शान्ति और सामान्य स्थिति की बहाली के लिये बुनियादी ज़रूरत है.”

न्याय की मांग

प्रमिला पैटन ने ये भी कहा, "मैंने, वर्ष 2017 और 2018 में बांग्लादेश के कॉक्सेस बाज़ार में शरणार्थी शिविरों का दौरा करने के दौरान, महिलाओं और लड़कियों पर यौन हिंसा के प्रत्यक्ष निशान देखे थे. जिन महिलाओं से मैंने बात की, उन्होंने कहा कि वे अपराधियों को दंडित होते देखना चाहती हैं. वे सभी - बिना किसी अपवाद के - न्याय की मांग करती हैं."

इसके अलावा, वर्ष 2019 में म्यांमार पर स्वतंत्र अन्तरराष्ट्रीय तथ्य-खोज मिशन ने निष्कर्ष निकाला कि "बलात्कार और यौन हिंसा, नागरिक आबादी को डराने, आतंकित करने या दंडित करने के लिए एक सोची-समझी रणनीति का हिस्सा हैं, और युद्ध की रणनीति के रूप में इस्तेमाल किये जाते हैं", और तत्मादाव के सैन्य अभियान भी इसके प्रबल उदाहरण थे.

मान्यता और सम्मान की आवश्यकता

 म्याँमार का समाज अब अपने नेताओं से रोहिंज्या लोगों को एक नस्लीय राष्ट्रीयता के रूप में मान्यता देने का आग्रह कर रहा है जिसमें उन्हें देश की नागरिकता दिया जाना भी शामिल हो. साथ ही अन्य सामूहिक और व्यक्तिगत अधिकारों को मान्यता देने और उनके ख़िलाफ़ किये गए अपराधों के लिये जवाबदेही और क्षतिपूर्ति सुनिश्चित करने का आग्रह भी किया जा रहा है.

विशेष प्रतिनिधि का ये भी कहना है, "हमें म्याँमार के लोगों के आग्रह पर ध्यान देना चाहिये और न्याय सुनिश्चित करने की दिशा में एकजुट हो कर काम करना चाहिये, जिसमें पहले ही विलम्ब हो चुका है."

"मैं अन्तरराष्ट्रीय समुदाय से, रोहिंज्या समुदाय की गरिमा और बेहतरी का समर्थन करने के लिये किये जा रहे प्रयासों का दायरा बढ़ाने की पुकार दोहराती हूँ."

उन्होंने साथ ही यह भी कहा कि अपराधियों की जवाबदेही निर्धारित करने और पीड़ितों को क्षतिपूर्ति और निवारण तक प्रभावी पहुँच सुनिश्चित करनी होगी. "मैं इस धरती पर सबसे अधिक सताए गए लोगों में शामिल इस समुदाय के लिये टिकाऊ समाधान की सामूहिक तलाश का आहवान करती हूँ."