पारम्परिक औषधि के लिये वैश्विक केंद्र की स्थापना, भारत और WHO में समझौता
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) और भारत सरकार ने आधुनिक विज्ञान एवं टैक्नॉलॉजी के ज़रिये, पारम्परिक औषधि में निहित सम्भावनाओं को साकार करने के इरादे से एक वैश्विक केंद्र स्थापित किये जाने के समझौते पर हस्ताक्षर किये हैं. भारत के गुजरात राज्य के जामनगर शहर में बनाए जाने वाले इस केंद्र की मदद से आमजन की सेहत में बेहतरी लाने और विश्व के हर क्षेत्र में सम्पर्क व लाभ सुनिश्चित किये जाने की योजना है.
एक अनुमान के अनुसार, दुनिया भर में 80 फ़ीसदी आबादी द्वारा पारम्परिक औषधि व चिकित्सा पद्धति का इस्तेमाल किया जाता है.
For millions of people around the world, traditional medicine is the first port of call to treat many diseases. This is why I am glad that @WHO and the Government of #India have signed an agreement to establish the WHO Global Centre for Traditional Medicine. https://t.co/6WPbxvC1OD pic.twitter.com/9k3xIVyspo
DrTedros
यूएन स्वास्थ्य एजेंसी के 194 में से 170 सदस्य देशों ने पारम्परिक औषधि का इस्तेमाल करने के सम्बन्ध में जानकारी दी है.
इन देशों की सरकारों ने, विश्व स्वास्थ्य संगठन से समर्थन प्रदान करने का आग्रह किया है ताकि पारम्परिक चिकित्सा, तौर-तरीक़ों और उत्पादों के सम्बन्ध में विश्वसनीय तथ्यों व आँकड़ों को जुटाया जा सके.
यूएन एजेंसी के महानिदेशक टैड्रॉस एडहेनॉम घेबरेयेसस ने कहा, “सभी लोगों के लिये सुरक्षित व कारगर उपचार को सुनिश्चित करना, WHO के मिशन का एक अति-महत्वपूर्ण हिस्सा है, और इस नए केंद्र से विज्ञान की शक्ति को संवारने में मदद मिलेगी ताकि पारम्परिक चिकित्सा के लिये तथ्यों के आधार को मज़बूती प्रदान की जा सके.”
भारत सरकार ने इस केंद्र की स्थापना में निवेश के लिये 25 करोड़ डॉलर का वित्तीय समर्थन दिया है.
भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा, “आयुष मंत्रालय और विश्व स्वास्थ्य संगठन के बीच, गुजरात के जामनगर में WHO-GCTM स्थापित करने पर समझौता एक सराहनीय पहल है.”
उन्होंने उम्मीद जताई है कि जामनगर में इस वैश्विक केंद्र के ज़रिये सर्वोत्तम स्वास्थ्य देखभाल समाधान प्रदान करने में मदद मिलेगी.
पारम्परिक चिकित्सा पद्धति
पारम्परिक औषधि व चिकित्सा से तात्पर्य आदिवासी समुदायों व अन्य संस्कृतियों द्वारा सहेजे गए ज्ञान, कौशल व प्रथाओं के उन भण्डार से है, जिनका उपयोग तन्दरुस्ती बनाए रखने और शारीरिक व मानसिक बीमारी की रोकथाम, निदान व उपचार में किया जाता है.
पारम्परिक औषधि के अन्तर्गत एक्यूपंचर, आयुर्वेदिक औषधि व जड़ी-बूटी के मिश्रण और आधुनिक दवाओं का इस्तेमाल किया जाता है.
मगर, फ़िलहाल राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्रणालियों और रणनीतियों में पारम्परिक औषधि के लाखों स्वास्थ्यकर्मियों, मान्यता प्राप्त पाठ्यक्रमों, स्वास्थ्य केंद्रों और स्वास्थ्य व्यय को एकीकृत नहीं किया गया है.
यूएन एजेंसी के मुताबिक़ आधुनिक विज्ञान जगत में पारम्परिक औषधि की अहमियत बढ़ रही है.
फ़िलहाल इस्तेमाल में लाए जा रहे 40 फ़ीसदी स्वीकृति प्राप्त औषधि उत्पादों को प्राकृतिक पदार्थों के ज़रिये तैयार किया जाता है, जोकि जैवविविधता संरक्षण व सततता के महत्व को भी रेखांकित करता है.
उदाहरणस्वरूप, ऐस्प्रिन की खोज के लिये पारम्परिक औषधि के नुस्ख़ों, जैसे एक ख़ास पेड़ की छाल, गर्भनिरोधक गोली के लिये जंगली रतालू (yam) पौधे के तने, और बच्चों में कैंसर के उपचार के लिये एक प्रकार की गुलाबी वनस्पति का इस्तेमाल किया गया है.
मलेरिया नियंत्रण के लिये artemisinin दवा पर नोबेल पुरस्कार विजेता शोध, प्राचीन चीनी औषधि सम्बन्धी ज्ञान की समीक्षा से ही शुरू किया गया.
अहम क्षेत्रों पर ध्यान
नए केंद्र में मुख्य रूप से चार रणनैतिक क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा:
- तथ्य व सीख;
- आँकड़े व विश्लेषण;
- सततता व समता;
- और नवाचार व टैक्नॉलॉजी.
इनके ज़रिये, वैश्विक स्वास्थ्य और टिकाऊ विकास में पारम्परिक औषधि के योगदान को संवारने का प्रयास किया जाएगा.
पारम्परिक औषधि का अध्ययन किये जाने के तौर-तरीक़ों में भी तेज़ गति से आधुनिकीकरण हुआ है.
आर्टिफ़िशियल इंटैलीजेंस का इस्तेमाल पारम्परिक औषधि में रुझानों व तथ्यों का मिलान करने और प्राकृतिक उत्पादों की प्राथमिक जाँच में किया जाता है.
इसके अलावा, पारम्परिक चिकित्सा इस्तेमाल में मोबाइल फ़ोन ऐप, ऑनलाइन कक्षाओं और अन्य टैक्नॉलॉजी के ज़रिये ज़रूरी बदलाव किये गए हैं.