वैश्विक परिप्रेक्ष्य मानव कहानियां

भारत: विकास के नए द्वार खोलती राजस्थान की सड़कें

2004 से, विश्व बैंक राजस्थान के दूर-दराज़ के गांवों को सड़कों के माध्यम से जोड़ने में मदद कर रहा है. यह विश्व बैंक द्वारा व्यापक रूप से समर्थित राष्ट्रव्यापी प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना (पीएमजीएसवाई) का हिस्सा है.
World Bank/Hemant Mehta
2004 से, विश्व बैंक राजस्थान के दूर-दराज़ के गांवों को सड़कों के माध्यम से जोड़ने में मदद कर रहा है. यह विश्व बैंक द्वारा व्यापक रूप से समर्थित राष्ट्रव्यापी प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना (पीएमजीएसवाई) का हिस्सा है.

भारत: विकास के नए द्वार खोलती राजस्थान की सड़कें

महिलाएँ

विश्व बैंक, भारत के राजस्थान प्रदेश में वर्ष 2004 से, दूर-दराज़ के गाँवों को सड़कों के माध्यम से जोड़ने में मदद कर रहा है. यह विश्व बैंक द्वारा व्यापक रूप से समर्थित राष्ट्रव्यापी प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना (पीएमजीएसवाई) का हिस्सा है. इन सड़कों ने लोगों की स्कूलों, अस्पतालों तक पहुँच को आसान बनाने के साथ-साथ, उन्हें बेहतर रोज़गार के अवसर भी मुहैया कराए हैं.

राजस्थान के सीकर ज़िले के आसपास की बस्तियों में रहने वाले ज़्यादातर पुरुष, अनेक पीढ़ियों से चरवाहे रहे हैं. रेतीले और चट्टानी इलाके के कारण यहाँ कृषि लायक परिस्थितियां नहीं हैं, इसलिए यहाँ के निवासी पशुपालन करते हैं और फिर उन्हें बेचकर गुज़ारे लायक आजीविका अर्जित करते हैं.

बलदेव गुर्जर जैसे चरवाहों के लिए, कुछ साल पहले तक कालाखेत गाँव से होकर जाने के लिए कच्ची सड़क को पार करना किसी बुरे सपने से कम नहीं था. उन्हें रोज़ाना अपने मवेशियों को चराने के लिए ले जाना होता था.

बलदेव बताते हैं, "यहाँ तक कि केवल तीन से चार किलोमीटर दूर जाने में भी घंटों लगते थे. हमें झाड़ियों और रेतीले स्थानों को पार करना पड़ता था और मानसून के दौरान तो ये कच्चे रास्ते भी बन्द हो जाते थे. बारिश और खेतों से बहकर आने वाला पानी यहाँ भर जाता था."

2013 में एक ऑल वेदर रोड के निर्माण के साथ ही यहाँ के हालात अब पूरी तरह बदल गए हैं. बलदेव गुर्जर अब अपने मवेशियों के साथ सुबह ही निकल जाते हैं. जब वो अपनी पिक-अप वैन में जानवरों को चढ़ाते हैं, तो उनका चेहरा गर्व से चमकता दिखाई देता है.

अस्पतालों और स्कूलों तक पहुँच

ग्रामीण सड़क परियोजनाओं ने राजस्थान के कई दूरस्थ इलाकों और बस्तियों को देश की मुख्य सड़कों से जोड़ दिया है.
World Bank/Hemant Mehta

नई सड़कों ने लोगों की ज़िन्दगियों को किस तरह से बदल कर रख दिया है, इसे अलवर जिले के मन्धा गाँव की एक स्कूल-शिक्षिका शिखा रानी के अनुभवों से समझा जा सकता है.

शिखा रानी के पास कला वर्ग में परास्नातक की उपाधि है, वो अपने और अन्य लड़कियों की शिक्षा में आने वाली बाधाओं का ज़िक्र करते हुए बताती हैं कि किस तरह से उनके गाँव से जाने वाली कच्ची सड़क पानी से भर जाती थी.

वो आठ साल पहले के हालात के बारे में बताती हैं, "ख़ासतौर पर लड़कियाँ हमारे गाँव में स्कूल नहीं जा पाती थीं." पहले, गाँव के सबसे क़रीबी स्कूल तक जाने के लिए बच्चों को कई किलोमीटर पैदल चलना पड़ता था और उनकी सुरक्षा के लिए उनके साथ वयस्कों को भी जाना पड़ता था.

अब, स्कूल की बसें गाँव तक आती हैं; लड़कियाँ अकेले या समूहों में साइकिल चलाकर स्कूल जाती हैं, और पास के अलवर या सीकर ज़िलों के कॉलेजों में जाकर पढ़ना अब कोई दूर का सपना नहीं है.

भागवा गाँव की भागुरी देवी दो बेटों की माँ हैं, और उनके दोनों बच्चे, सीकर और उदयपुरवाटी के कॉलेजों में शिक्षा हासिल कर रहे हैं. वो स्वयं एक आंगनवाड़ी कार्यकर्ता हैं और वो इस समय दसवीं की परीक्षाओं की तैयारी कर रही हैं.

वो याद करते हुए बताती हैं कि कैसे गर्भवती महिलाओं को खाटों या ऊँट गाड़ियों पर लिटाकर पास के अस्पतालों में जाया जाता था और अक्सर रास्ते में ही उनकी मौत हो जाती थी.

अब कोई भी जन, किसी बीमार को ले जाने के लिए एम्बुलेंस या प्राइवेट गाड़ियों को बुला सकता है. अब गाँव में महिलाओं और बच्चों के लिए दवाएँ, टीकाकरण और अन्य स्वास्थ्य सुविधाएँ आसानी से उपलब्ध हैं. 

वो बताती हैं, "हमारा गाँव अब आगे बढ़ रहा है. हमारे बच्चे स्कूल जा पा रहे हैं. उनका भविष्य अब सुरक्षित है."

ये विश्व बैंक के ग्रामीण सड़क परियोजना-II की लाभार्थी हैं, जो केन्द्र सरकार के प्रमुख कार्यक्रम प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना (पीएमजीएसवाई आरआरपी-II) का समर्थन करती है. 

विश्व बैंक ने राजस्थान में इस परियोजना के तहत  2800 करोड़ रुपए से अधिक का निवेश किया है, जिसके सहयोग से 3600 से ज्यादा सड़कों का निर्माण सम्भव हुआ है. 

इन सड़कों का जाल दस हज़ार किमी की दूरी तक फैला हुआ है और इस परियोजना से कुल 3 हज़ार 677 गाँव सड़क-मार्ग से जुड़कर लाभान्वित हुए हैं.

इन सड़कों ने लोगों की स्कूलों, अस्पतालों तक पहुँच को आसान बनाने के साथ ही ग्रामीणों को रोज़गार के बेहतर अवसर भी मुहैया कराए हैं.
World Bank

रूपरेखा निर्माण और क्रियान्वयन में विश्व बैंक के मानक

विश्व द्वारा भारत की ग्रामीण सड़क परियोजना में किए गए सहयोगात्मक हस्तक्षेप ने परियोजना-निर्माण (रूपरेखा, नियोजन और क्रियान्वयन) के क्षेत्र में वैश्विक मानक स्थापित किए हैं और इसके साथ ही मौजूदा प्रणालियों को सुदृढ़ करते हुए कई नवाचारों को जन्म दिया है.

उदाहरण के लिए, सड़क-निर्माण के लिए योजना बनाने से पहले समुदायों से विस्तृत चर्चा की गई, यहाँ तक कि समुदाय के सदस्यों ने 'ट्रांज़ेक्ट वॉक' प्रक्रिया के माध्यम से सड़क-मार्ग निर्धारित किए.

इस प्रक्रिया में परियोजना निर्माता, स्थानीय लोगों एवं प्राधिकारियों की सहायता से किसी भौगोलिक क्षेत्र की विशिष्टताओं को देखते हुए मूलभूत सुविधाओं जैसा शिक्षा, स्वास्थ्य और स्वच्छता आदि की अवस्थितियों का एक नक्शा बनाते हैं और लोगों की समस्याओं को सुनकर, देखकर, परियोजना से जुड़े जोखिमों (और सामाजिक लागतों) की पड़ताल करके, आख़िरकार एक रूपरेखा का निर्माण करते हैं. इसमें औरतों, अल्पसंख्यक समुदायों और परियोजना से प्रभावित होने वाले लोगों को शामिल किया गया था. ग्रामीणों ने सड़क-निर्माण के लिए स्वेच्छा से अपनी ज़मीनों का दान किया.

महिला स्वयं सहायता समूहों सहित स्थानीय समुदायों ने भी विशेष रूप से तैयार टूलकिट की मदद से, सड़कों के निर्माण और रखरखाव की निगरानी की. काम की गुणवत्ता के आधार पर अनुबन्ध तैयार किए गए. इस परियोजना के दौरान ये पाया गया कि जब आम लोग सड़क-निर्माण के विभिन्न चरणों की निगरानी करते हैं, तो जवाबदेही में अनुकूल परिवर्तन आने के साथ-साथ समस्याओं की जल्दी ही पहचान सम्भव हो पाती है और सड़कों की गुणवत्ता में भी सुधार आता है.

प्राकृतिक संसाधनों की कमी को ध्यान में रखते हुए इस कार्यक्रम में एक अनिवार्य प्रावधान रखा गया है, जिसके अनुसार, सड़क-निर्माण के दौरान उसकी स्वीकृत लम्बाई का 15 प्रतिशत हिस्सा कचरे और पुनर्चक्रण योग्य सामग्री का उपयोग करके बनाया जाएगा. एक ऑनलाइन निगरानी, प्रबन्धन और लेखा प्रणाली की स्थापना ने निर्माण सामग्रियों की ख़रीद को और अधिक पारदर्शी व बेहतर बना दिया है, जिसके कारण इसमें लगने वाला समय (3 महीने से) घटकर 45 से 60 दिन रह गया है.

रोज़गार के बढ़ते अवसर

आत्म-निर्भर होने की कहानियाँ, आज इन गाँवों के हर एक घर से सुनने को मिलती हैं.
World Bank/Hemant Mehta
आत्म-निर्भर होने की कहानियाँ, आज इन गाँवों के हर एक घर से सुनने को मिलती हैं.

बुधराम गुर्जर एक सड़क के किनारे अपनी एक चाय की दुकान (गुरु कृपा होटल) चलाते हैं. 15 किमी की दूरी तक जाने वाली ये सड़क सांगरवा गाँव से होकर गुज़रती है.

बुधराम पहले एक ट्रक चालक थे, और तमिलनाडु से लेकर पश्चिम बंगाल तक, देश भर में ट्रक चलाते थे. लेकिन घर से दूर रहते-रहते वो थक गए और उन्होंने ये काम छोड़ दिया. वो वापिस अपने गाँव आए और 2013 में अपनी चाय की दुकान को एक स्थाई होटल में बदल दिया.

पिछले पाँच सालों में उन्होंने इस होटल में यात्रियों के लिए चार विश्राम-कक्ष बनवाए हैं. वो बताते हैं कि उन्हें सड़क किनारे बनाई चाय की अपनी दुकान से रोज़ाना 300 से 500 रुपये की आमदनी होती है, जो त्यौहारों के दिन बढ़कर प्रति दिन 1500 रुपये तक हो जाती है.

उस दौरान लोग शाकुम्भरी माता के मन्दिर दर्शन के लिए आते हैं.

उन्होंने अपनी सबसे बड़ी बेटी का विवाह दो साल पहले ही किया है, क्योंकि पहले पास गाँवों से उसके लिए रिश्ता बड़ी मुश्किल से आता था. "लोग अपनी बेटियों का रिश्ता हमारे बेटों से तय नहीं करना चाहते थे, क्योंकि हमारे गाँव में पक्की सड़कें नहीं थीं."

राजस्थान के झुंझुनू ज़िले के कायस्थपुरा गाँव में, एक नई सड़क बन जाने के कारण दूध-विक्रेता राम निवास सैनी के व्यापार में दस गुना उछाल आ गया है.

पहले वो एक दिन में केवल 20-30 लीटर दूध बेच पाते थे लेकिन अब हर रोज़ लगभग 300 लीटर दूध की बिक्री कर रहे हैं.

राम निवास सैनी बताते हैं, "सड़क के बनने से पहले तक हम अपनी पीठ पर दूध लादकर ले जाते थे, और थोड़ी दूर जाने में ही हमें घंटों लग जाते थे."

अपनी बढ़ी हुई कमाई से उन्होंने एक बड़ा घर बनवा लिया है, जिसमें शौचालय सुविधाएँ भी हैं. गाँव के अनेक लोगों के पास अब मोटरसाइकिल हैं और यहाँ तक कि कुछ लोगों ने चारपहिया वाहन भी ख़रीद लिए हैं.

उनकी बेटी कंचन घर से क़रीब चार किलोमीटर दूर बगड़ के एक कॉलेज में पढ़ती है. अपने दोपहिया वाहन को दिखाते हुए वो कहती है, "मैं अपनी स्कूटी से कॉलेज जाती हूँ. जहाँ तक दोस्तों के साथ कहीं बाहर घूमने की बात आती है, तो हमारे माता-पिता ने हम पर कोई पाबन्दी नहीं लगाई है."

कंचन कहती हैं कि वो आगे पढ़ाई करेंगी या फिर कोई वेतनभोगी काम करेंगी. कंचन के पिता भी उसके लिए यही सपना देखते हैं. जब उनसे उनकी बेटी की शादी को लेकर सवाल पूछा गया तो उन्होंने उस बात को खारिज़ करते हुए कहा कि उनकी पहली प्राथमिकता उसे आत्मनिर्भर बनाना है.

सभी का कहना है कि राजस्थान की ग्रामीण सड़कों ने लोगों के लिए न सिर्फ़ शिक्षा, स्वास्थ्य और रोज़गार के अवसरों में इज़ाफा किया है, बल्कि ग्रामीणों का ये भी कहना है कि इन सड़कों ने उनके गुमनाम गाँवों को शहरों से जोड़कर, उसे महत्त्वपूर्ण स्थानों में बदल दिया है.

आत्म-निर्भर होने और भारत के विकास में भागीदार होने से जुड़ी कहानियाँ आज इन गाँवों के हर एक घर से सुनने को मिलती.

योजना का असर

41 अरब डॉलर के वित्त पोषण वाली प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना ने, 2004 से 2021 तक ग्रामीण भारत की 3 लाख 23 हज़ार बस्तियों को लाभ पहुँचाया है. जिसके तहत नई सड़कों का निर्माण किया गया है और पुरानी सड़कों की मरम्मत की गई है.

विश्व बैंक ने इस कार्यक्रम में अब तक कुल 2 अरब 10 करोड़ अरब डॉलर का निवेश किया है. 2020 तक, विश्व बैंक द्वारा वित्त पोषित ग्रामीण सड़क परियोजना के तहत 48 हज़ार किमी लम्बी सड़कों का निर्माण किया गया है, जिन्हें अब यातायात के लिए खोल दिया गया है. इन सड़कों ने प्रत्यक्ष रूप से लगभग 19 हजार बस्तियों को लाभ पहुँचाया है.

यह लेख पहले यहाँ प्रकाशित हुआ.