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भारत: रूढ़िवादी धारणाएँ तोड़तीं, केरल की महिला इंजीनियर

केरल की महिला इंजीनियर.
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केरल की महिला इंजीनियर.

भारत: रूढ़िवादी धारणाएँ तोड़तीं, केरल की महिला इंजीनियर

महिलाएँ

भारत के दक्षिणी प्रदेश केरल के भूतथनकेट्टू और मलंकरा बान्ध, केरल के उन 16 बान्धों में से हैं, जिनकी मरम्मत विश्व बैंक समर्थित बान्ध पुनर्वास और सुधार परियोजना (DRIP) के तहत की जा रही है. परम्परागत रूप से पुरुषों के कार्यक्षेत्र के रूप में पहचाने जाते रहे बान्ध निर्माण क्षेत्र में, सिंचाई विभाग की महिला इंजीनियरों ने, बान्धों के प्रबन्धन एवं सिंचाई और घरेलू इस्तेमाल के लिए बनाई जा रही नहरों के निर्माण-कार्य व देख-रेख की ज़िम्मेदारी संभाल रखी है.

2018 में, मानसून के कारण भारत के दक्षिणी राज्य केरल में भारी तबाही आई थी. राज्य में लगातार हो रही मूसलाधार बारिश के कारण केवल दस दिनों में साल भर की बरसात जितना पानी इकट्ठा हो गया. सभी बान्ध और जलाशय तेज़ी से भर गए और ख़तरे के निशान को छूने लगे.

ऐलिज़ाबेथ कोराथ, पेरियार नदी पर बने भुथथंकेट्टू बान्ध की प्रभारी इंजीनियर थीं. पेरियार नदी राज्य की सबसे बड़ी नदी है, और कई मायनों में इसकी जीवनरेखा है.

ऐलिज़ाबेथ बताती हैं कि किस तरह से वह और उनकी सहकर्मी सुजाता एवं अन्य लोग त्रिवेन्द्रम में सिंचाई विभाग के मुख्यालय को लगातार हर घंटे बढ़ते जलते स्तर की सूचना दे रहे थे. लगातार हो रही बारिश के कारण हमने अतिरिक्त पानी छोड़ने के लिए बान्ध के सभी फाटक खोल दिए थे.

वह याद करती हैं, "जलाशय का पानी ख़तरे के निशान से काफ़ी अधिक बढ़ गया था, और बारिश नहीं थम रही थी. हम कई दिनों तक वहीं उसी जगह पर रुके रहे ताकि हर घंटे की रिपोर्ट जारी कर सकें. हमें चिन्ता थी कि कहीं जलाशय के पानी से पास के गाँवों में बाढ़ ना आ जाए. सौभाग्य से, ऐसा नहीं हुआ. बाढ़ के आने से पहले हमने बान्ध की मरम्मत का सारा काम पूरा कर लिया."

पास ही, मलंकारा बान्ध का प्रबन्धन करने वाली महिला इंजीनियर, उन तनावपूर्ण दिनों के बारे में बताती हैं, जब उन्हें जलाशय में बढ़ते जल स्तर की निगरानी के लिए वहीं बान्ध के पास शिविर बनाकर ठहरना पड़ा था. "पहली बार ऐसा दृश्य देखने को मिला था कि बान्ध के दोनों किनारों पर पानी का स्तर ख़तरे के निशान को छू रहा था."

सिंचाई विभाग की ये महिला इंजीनियर, बान्धों के प्रबन्धन के साथ-साथ नहरों के निर्माण और उनके रखरखाव के लिए भी ज़िम्मेदार हैं, और सिंचाई और घरेलू इस्तेमाल के लिए पानी के प्रवाह का नियंत्रण करती हैं.

हाल ही में मलंकरा बान्ध के प्रबन्धन की ज़िम्मेदारी उठाने वाली मंजू बताती हैं कि स्थानीय किसानों, पंचायतों (ग्राम परिषदों) की परस्पर विरोधी मांगों को पूरा करना आसान नहीं है. "सिंचाई और पेयजल की आपूर्ति जैसी परस्पर विरोधी मांगों के लिए बान्ध से पानी छोड़ने को कहा जाता है. उसी समय, मुझे ये भी सुनिश्चित करना पड़ता है कि भविष्य की ज़रूरतों के लिए भी जलाशय के पानी का स्तर बना रहे."

बान्ध सुरक्षा विभाग के साथ काम करते हुए मंजू अक्सर वरिष्ठ इंजीनियरों के साथ राज्य भर में चल रहे मरम्मत-कार्यों का निरीक्षण करने के लिए बान्ध स्थलों का दौरा करने जाती रहती हैं. वह अन्य महिला सहयोगियों के साथ काम करके बेहद गौर्वान्वित महसूस करती हैं. "राज्य में बान्ध परियोजनाओं पर काम कर रही महिला सहयोगियों के साथ बातचीत करके ख़ुशी होती है. हमें इस बात का गर्व होता है कि हमारा काम प्रदेश में रहने वाले लोगों के जीवन को प्रभावित करता है."

भुथथंकेट्टू और मलंकारा बान्ध, दोनों ही केरल के उन 16 बान्धों में से हैं, जिनकी मरम्मत विश्व बैंक समर्थित बान्ध पुनर्वास और सुधार परियोजना (डैम रिहैबिलिटेशन एंड इंप्रूवमेंट प्रोजेक्ट: ड्रिप) के तहत की जा रही है.

नहर-प्रणाली का प्रबन्धन

जया पी नायर अपनी टीम के साथ मलंकारा बांध की देखरेख करती हुईं.
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जया पी नायर 25 सालों से भी लम्बे समय से सिंचाई विभाग में सिविल इंजीनियर के तौर पर कार्यरत हैं. वह मुवत्तुपुझा घाटी सिंचाई परियोजना (एमवीआईपी) का प्रबन्धन करती हैं, जिसके अधीन मलंकारा बान्ध की देखरेख और उस क्षेत्र में सिंचाई और पेयजल आपूर्ति की ज़िम्मेदारी भी शामिल है.

जया के कार्यालय में, इस परियोजना पर काम कर रहे 32 कर्मचारियों में से महिला इंजीनियरों की संख्या दो तिहाई से अधिक है. जया कहती हैं कि इस नगरपालिका में महिला इंजीनियरों की संख्या सबसे ज़्यादा है. उनका कहना है, "ऐसा जानबूझकर नहीं किया गया. बस ऐसा हो गया!"

ये महिलाएं बान्ध स्थल पर जारी पुनर्वास-कार्यों की निगरानी करती हैं और मरम्मत और निर्माण सम्बन्धी तकनीकी जानकारियाँ देती हैं. वे निविदा प्रक्रियाओं के क्रियान्वन्य के साथ-साथ ठेकेदारों के साथ मिलकर काम करती हैं, जो उनके अनुसार उनके काम से जुड़ी सबसे कठिन चुनौती है.

इन महिला इंजीनियरों ने अपनी निगरानी में भूथथनकेट्टू बान्ध पर एक बान्ध का निर्माण करवाया है, जिससे बान्ध पर यातायात के दबाव को कम किया जा सकेगा. मलंकारा बान्ध के मरम्मत का काम बेहद कम समय में पूरा किया गया. इतना ही नहीं इस प्रक्रिया में धन की भी बचत हुई, जिसके निवेश से वे पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए और उसी क्रम में राजस्व बढ़ाने के लिए बान्धों का सुन्दरीकरण का काम आगे बढ़ाना चाहती हैं.

केरल की सबसे लम्बी नदी पर बना हुआ भुथथंकेट्टू बांध. सिंचाई नहरों के लिए जलस्तर को बनाए रखने के लिए फाटक खोले गए हैं.
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केरल में ऐसे ज़िम्मेदार पदों पर महिलाओं को नियुक्त किया जाना असामान्य नहीं है, जो परम्परागत रूप से पुरुषों के कार्यक्षेत्र के रूप में पहचाने जाते रहे हैं.

भारत के उच्च साक्षरता दर वाले राज्यों में से एक, केरल के सरकारी कॉलेजों द्वारा संचालित सिविल इंजीनियरिंग पाठ्यक्रमों में दाख़िला लेने के लिए, लड़कों की तरह लड़कियाँ भी कठिन प्रवेश परीक्षा में हिस्सा लेती हैं.

जया कहती हैं, ''आम तौर पर बहुत सी लड़कियाँ इंजीनियरिंग कोर्स में अच्छे अंकों के साथ उत्तीर्ण होती हैं. रोज़गार के लिए होने वाले इंटरव्यू के समय भी, हम लड़कियों को एकाग्रता और उत्साह के साथ शामिल होते देखते हैं. पुरुष अभ्यर्थी भी समान रूप से योग्य और अच्छे होते हैं, लेकिन कहीं न कहीं इस मामले में महिलाओं को बढ़त हासिल है.”

वह कहती हैं, "महिला होने के नाते, हमें काम और घर, दोनों को संभालने की जन्मजात क्षमता प्राप्त है. हम एक टीम के रूप में काम करते हैं और एक-दूसरे की परेशानियों व चिन्ताओं को समझते हैं और साथ खड़े होते हैं. शायद इसीलिए हम अच्छा काम कर पाते हैं, क्योंकि हम जो करते हैं उससे ख़ुश हैं."

राज्य में बान्ध पुनर्वास और नहरों से जुड़े अधिकांश कार्यों की पूर्ति के साथ, जया युवा इंजीनियरों के लिए उपयोगी सलाह देती हैं. "आगे चलकर, इन युवा इंजीनियरों को नदी बेसिन प्रबन्धन, जल बँटवारे आदि से जुड़े नए प्रस्ताव व परियोजनाएँ तैयार करनी चाहिए और इन्हें सरकार के समक्ष पेश करने के अवसरों की तलाश करनी चाहिए. इस तरह, वे अपने साथ-साथ राज्य के विकास में भी योगदान कर पाएंगे."

उनसे प्रेरित होकर, इंजीनियरिंग की दुनिया की एक नई प्रवेशी रीबा जोसेफ़, जल संरक्षण और वर्षा जल संचयन के क्षेत्र में क़दम रखने की इच्छुक हैं.

दिलचस्प बात यह है कि महिला इंजीनियर सिर्फ़ केरल में बान्धों और नहरों का प्रबन्धन ही नहीं संभाल रही हैं.

महिलाओं की एक 27-सदस्यीय टीम, कोचीन अन्तरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर फिर से 3 हज़ार 400 मीटर लम्बा रनवे बिछाने में जुटी हुई है. केरल की महिला इंजीनियरों के लिए यह एक और बड़ी उपलब्धि है.

यह लेख पहले यहाँ प्रकाशित हुआ.