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भारत: झारखंड की रानी मिस्त्रियाँ तोड़ रही हैं रूढ़िवादी मानसिकता

भारत में, चिनाई का काम एक विशेष कौशल है जो आमतौर पर पुरुषों का वर्चस्व है. लेकिन झारखंड की रानी मिस्त्रियाँ अब इन लैंगिक पूर्वाग्रहों को तोड़ चुकी हैं.
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भारत में, चिनाई का काम एक विशेष कौशल है जो आमतौर पर पुरुषों का वर्चस्व है. लेकिन झारखंड की रानी मिस्त्रियाँ अब इन लैंगिक पूर्वाग्रहों को तोड़ चुकी हैं.

भारत: झारखंड की रानी मिस्त्रियाँ तोड़ रही हैं रूढ़िवादी मानसिकता

महिलाएँ

विश्व बैंक, भारत के झारखंड प्रदेश में, सरकार की स्वच्छ भारत योजना के लिए तकनीकी सहायता प्रदान कर रहा है, जिसके तहत गाँव-गाँव में शौचालय निर्माण के लिए, अनेक राज मिस्त्रियों को प्रशिक्षित किया गया.  ख़ास बात यह थी कि आमतौर पर पुरुषों के वर्चस्व वाले चिनाई के काम में, कई महिला राजमिस्त्रियों ने भी भाग लिया.

दो बच्चों की माँ छत्तीस वर्षीय निशात जहाँ, ईंटों की एक क़तार पर झुकी हुई ध्यान से जाँच रही है कि ईंटें सीधी रेखा में हैं या नहीं. सुबह के 9:30 बजे हैं और वह अब तक एक शौचालय की आधी दीवार बना चुकी है. उनके काम करने की रफ़्तार देखकर ग्रामीणों को आश्चर्य होता है.

उनसे कुछ ही दूर, उनकी सहेली और सहकर्मी 42 वर्षीया ऊषा रानी, 4 फुट गहरे गड्ढे के अन्दर खड़ी हैं और ईंट व सीमेंट से, बड़ी सफ़ाई से उसे पक्का कर रही हैं. निशात और ऊषा, झारखंड की राजधानी राँची से लगभग 70 किलोमीटर दूर हज़ारीबाग ब्लॉक के सिलबर खुर्द गाँव में एक घर में शौचालय का निर्माण कर रही हैं.

निशात ने गर्व से दावा किया कि "मैं इस शौचालय की दीवारों का निर्माण एक दिन में पूरा कर लूंगी." आमतौर पर 3 से 4 महिलाओं के समूह को दो गड्ढों वाले शौचालय का निर्माण करने में, 3 से 4 दिन लगते हैं जिसे इन दो महिलाओं ने आधे समय में पूरा करने की योजना बनाई है.

लैंगिक भेदभाव तोड़ने की शुरुआत

लेकिन यह इतना आसान नहीं था. शुरुआत में, ग्रामीण समुदाय, विशेष रूप से महिलाओं ने उन्हें सिरे से ख़ारिज कर दिया. रानी मिस्त्रियों में से एक पूनम देवी याद करती हैं कि कैसे उनकी सास उनके राजगीर - मिस्त्री का काम सीखने के ख़िलाफ़ थीं. लेकिन, अपने पति के मज़बूत समर्थन से वह शुरुआत करने में सक्षम हुईं.

उन्होंने कहा कि ‘जब उन्होंने हमें आर्थिक रूप से स्वतंत्र होते देखा, तो हमें ख़ारिज करने वाले बहुत से लोगों ने चोरी-छिपे पूछना शुरू किया कि वे भी यह काम कैसे सीख सकते हैं. महिलाएँ जब एक साथ खड़ी हो गईं, तो समुदाय भी नरम पड़ गया.’

महिलाओं ने एक और वर्जना भी तोड़ी है. वो इससे पहले काम करने के लिए अपने गाँवों से बाहर जाने के बारे में कभी सोच भी नहीं सकती थीं. महिलाओं ने या तो घर पर या खेत मजदूर के रूप में काम किया था. लेकिन अब हालात बदल गए हैं.

“शौचालय बनाने का अनुरोध किए जाने पर हम अब अन्य गाँवों की यात्रा करते हैं. हम लोग वहाँ के घर की महिलाओं से हमारी मदद करने के लिए कहते है. जब हम लौटने लगते हैं, तो उनमें से कुछ महिलाएँ कहती हैं कि वे भी हमारी तरह बनना चाहती हैं.”

अन्य महिलाओं के साथ, निशात ने शौचालय निर्माण की तकनीक पर राँची शहर में प्रशिक्षण लिया था. सप्ताह भर चलने वाले मॉड्यूल में उन्हें सिखाया गया कि कैसे एक स्थल का निरीक्षण किया जाए और शौचालय निर्माण के लिए सबसे अच्छी जगह का आकलन किया जाए. उन्होंने सोख़्ता गड्ढों और जुड़वाँ गड्ढों के पीछे की तकनीक भी जानी और उन्हें निर्माण तकनीक पर व्यावहारिक प्रशिक्षण दिया गया. उन्होंने एक सप्ताह के बाद, अपना ख़ुद का काम शुरू करने से पहले, एक वरिष्ठ राजमिस्त्री से काम सीखा.

उषा रानी अपनी बेटी शीतल छैया के साथ झारखंड के हज़ारीबाग ब्लॉक में. उषा अब अपना कौशल बढ़ाने के लिए प्लम्बिंग का काम सीखना चाहती हैं.
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अब जब महिलाएँ काम करने के लिए बाहर जाती हैं, तो वे हमेशा परिवार को अपने घर के आंगन में शौचालय बनवाने की सलाह देती हैं. ऊषा रानी कहती हैं, “पारम्परिक सोच लोगों को घर के भीतर शौचालय बनाने से रोकती है. लेकिन हमें लगता है कि शौचालय परिसर के भीतर ही होना चाहिए ताकि रात में महिलाओं के लिए आसानी हो. हमें हमारे समुदाय की महिलाओं के लिए कुछ करने की ज़रूरत है और शौचालय पर ज़ोर देना हमारे हित में है.”

रानी मिस्त्री के रूप में उन्होंने निर्माण मज़दूर के रूप में होने वाली अपनी कमाई से दोगुनी आय अर्जित की. निशात का पति बेरोज़गार है इसलिए वो अपनी नई आमदनी से और भी ज़्यादा उत्साहित हैं. “मैं अपनी आय अपने बच्चों की शिक्षा के लिए बचा लेती हूँ. यहाँ तक कि ख़ुद पर ख़र्च करने के लिए भी अब मेरे पास नक़दी बच जाती है.”’

ऊषा रानी, निशात में भरे नए विश्वास की पुष्टि करती हैं, “हमने जो कौशल सीखा है, उससे हमें बहुत गर्व होता है. मुझमें अब ज्य़ादा आत्मविश्वास है और अपने होने की सार्थकता महसूस होती है.”

अधिक करने के लिए उत्सुक

रानी मिस्त्रियाँ, अपने काम की सफलता को देखते हुए अब दूसरे काम भी सीखना चाहती हैं, विशेषकर इसलिए क्योंकि राज्य में शौचालय निर्माण का काम अब काफ़ी हद तक पूरा हो गया है. ऊषा ने कहा कि “हमने सभी घरों में पीने का पानी उपलब्ध कराने के लिए सरकार के जल जीवन कार्यक्रम के बारे में सुना है. अब हम नल मिस्त्री के रूप में प्रशिक्षित होना चाहेंगे.”

महिलाओं की सक्रियता पर सरकारी अधिकारी चकित हैं. “सीखने के लिए उनका उत्साह हमें भी उत्साहित करता है. वे नल मिस्त्री बनना चाहती हैं और ठोस एवं तरल अपशिष्ट प्रबन्धन तकनीकों और वर्षा जलसंग्रह पर और अधिक हुनर सीखना चाहती हैं.”

महिलाओं की सफलता उनकी बेटियों को गौरवान्वित कर रही है, और उनकी ख़ुद की महत्वाकांक्षाओं को पर दे रही है. ऊषा की बेटी शीतल छाया भारतीय पुलिस सेवा में शामिल होना चाहती हैं. वह पूरे विश्वास के साथ कहती है, ‘यह महत्वपूर्ण है कि महिलाएँ काम करें. अर्थव्यवस्था में सुधार का यही एकमात्र तरीक़ा है.”’

यह लेख पहले यहाँ प्रकाशित हुआ.