म्याँमार: सोशल मीडिया कम्पनियों से, ‘जुंटा’ के सामने खड़े होने की पुकार

म्याँमार पर संयुक्त राष्ट्र के स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञों ने, सोशल मीडिया कम्पनियों से, देश में सैन्य शासन – जुंटा के “ऑनलाइन आतंक अभियान” का प्रतिरोध करने के लिए, और ज़्यादा प्रयास करने का आग्रह किया है.
इन मानवाधिकार विशेषज्ञों ने इंटरनैट बातचीत (Chat) मंचों से सामग्री पर और कड़ी सावधानी के साथ निगरानी करने और इस उद्देश्य के लिए और ज़्यादा संसाधन आबंटित करने की अपील की है.
#Myanmar: Social media companies must stand up to military junta’s terror campaign-UN experts: Pro-junta accounts have taken advantage of Telegram's lax content mod rules &are posting violent +misogynistic content, causing women to retreat from public life
https://t.co/KGbqhadTXL https://t.co/hAa9YpdvyI
UN_SPExperts
मानवाधिकार विशेषज्ञों ने साथ ही चेतावनी भी दी है कि विशेष रूप से ‘टैलीग्राम’, सैन्य समर्थक गतिविधियों का एक बहुत प्रयोग किया जाने वाला मंच बन गया है.
मानवाधिकार विशेषज्ञों ने आगाह करते हुए कहा कि सैन्य शासन – जुंटा के हिंसक और स्त्रीद्वेष (महिलाओं के प्रति गहरी नफ़रत) से भरी सामग्री की तरफ़ लाखों लोगों का ध्यान पहुँचा है.
उन्होंने साथ ही ये भी ध्यान दिलाया कि महिलाओं पर अक्सर, मुस्लिम पुरुषों के साथ यौन सम्बन्ध बनाने या मुस्लिम आबादी का समर्थन के आरोप लगाए जाते हैं.
उन्होंने कहा कि ये, “म्याँमार में धुर-राष्ट्रवादी, भेदभावपूर्ण और इस्लामोफ़ोबिक (इस्लाम व मुसलमानों के ख़िलाफ़ द्वेष) का आम आख्यान या चलन है.”
मानवाधिकार विशेषज्ञों ने कहा कि महिलाओं को अक्सर Doxxing का भी निशाना बनाया जाता है जिसके अन्तर्गत उनके बारे में उनकी सहमति के बिना ही, बहुत निजी जानकारी सार्वजनिक मंचों पर प्रकाशित की जाती है, जिनमें उनके नाम, पते भी शामिल होते हैं.
इन मानवाधिकार विशेषज्ञों ने इस बारे में ध्यान दिलाए जाने के बाद, सोशल मीडिया मंच टैलीग्राम द्वारा, कम से कम 13 सैन्य समर्थक सोशल मीडिया खातों को ‘ब्लॉक’ कर देने के निर्णय का स्वागत किया है, अलबत्ता कम से कम एक ऐसा चैनल फिर से ऑनलाइन सक्रिय हो गया है, जो बहुत अपमानजनक और आक्रामक सामग्री फैला रहा है.
इन मानवाधिकार विशेषज्ञों में, म्याँमार के लिए संयुक्त राष्ट्र के विशेष रैपोर्टेयर टॉम एंड्रयूज़ भी शामिल हैं.
मानवाधिकार विशेषज्ञों का कहना है, “टैलीग्राम जब तक म्याँमार में सामग्री पर निगरानी रखने के तरीक़े में बुनियादी बदलाव नहीं करता है, तब तक ये बहुत सम्भावना है कि सैन्य समर्थक तत्व, नए खाते खोल लेंगे और उत्पीड़न का अपना अभियान जारी रखेंगे.”
इन मानवाधिकार विशेषज्ञों ने एक वक्तव्य में कहा है, “हर दिन, महिलाओं को ऑनलाइन मंचों पर यौन हिंसा की धमकियाँ दी जाती हैं क्योंकि वो मानवाधिकारों के लिए आवाज़ बुलन्द कर रही हैं, सेना के प्रयासित शासन का विरोध कर रही हैं, और एक लोकतांत्रिक मार्ग पर वापसी के लिए संघर्ष कर रही हैं.”
उन्होंने कहा, “Doxxing और ऑनलाइन उत्पीड़न के अन्य तरीक़े, उन अनेकानेक धमकियों का हिस्सा हैं जिनका सामना, म्याँमार में महिला कार्यकर्ताओं, मानवाधिकार पैरोकारों और स्वतंत्र संगठनों को, पहले से ही करना पड़ रहा है.”
स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञों ने टैलीग्राम व अन्य सोशल मीडिया कम्पनियों से, उनके मंचों पर हो रहे मानवाधिकार हनन के मामलों की पहचान, रोकथाम और उनका असर कम करने के लिए, अपनी ज़िम्मेदारियाँ निभाने का आग्रह किया है.
मानवाधिकार विशेषज्ञों ने कहा कि प्रौद्योगिकी कम्पनियों को ये सुनिश्चित करना होगा कि उनकी सेवाएँ मानवाधिकार उल्लंघन में सहायक ना बनें, जिनमें लैंगिक हिंसा और भेदभाव, मनमानी गिरफ़्तारी, निजता के अधिकार का उल्लंघन, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का दमन, शान्तिपूर्ण ढंग से सभा करने- ऑनलाइन व ऑफ़लाइन दोनों पर पाबन्दियाँ, और संगठन बनाने के अधिकार का हनन शामिल हैं.
उन्होंने सोशल मीडिया मंचों से, अपनी सेवाओं के प्रयोगकर्ताओं के मानवाधिकारों की संरक्षा करने के लिए, समुचित संसाधन आबंटित करने का आग्रह किया. इसमें महिलाओं को बर्मी भाषा व म्याँमार में अन्य स्थानीय भाषाओं में निशाना बनाने वाली सामग्री की निगरानी किया जाना भी शामिल है, जो स्थानीय संगठनों व कार्यकर्ताओं के साथ निकट सम्पर्क में किया जाए.
विशेष रैपोर्टेयर और यूएन मानवाधिकार परिषद द्वारा नियुक्त मानवाधिकार विशेषज्ञ, अपनी निजी व स्वैच्छिक हैसियत में काम करते हैं. वो यूएन स्टाफ़ नहीं होते हैं और उन्हें उनके कामकाज के लिए संयुक्त राष्ट्र से कोई वेतन भुगतान नहीं होता है. मानवाधिकार विशेषज्ञ, साथ ही किसी भी देश की सरकार या संगठन से स्वतंत्र होकर काम करते हैं.