म्याँमार: लोकतंत्र समर्थक चार कार्यकर्ताओं को मृत्यु दण्ड की तीखी निन्दा

म्याँमार के लिये, संयुक्त राष्ट्र के स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञ थॉमस एण्ड्रयूज़ ने म्याँमार में सैन्य शासकों द्वारा लोकतंत्र समर्थक चार कार्यकर्ताओं को मृत्यु दण्ड दिये जाने के बाद, सोमवार को शक्तिशाली अन्तरराष्ट्रीय कार्रवाई की पुकार लगाई है. यूएन मानवाधिकार प्रमुख मिशेल बाशेलेट ने भी एक वक्तव्य जारी करके कहा है कि वो ये देखकर बहुत निराश और हतोत्साहित हैं कि दुनिया भर की अपीलों के बावजूद, सैन्य नेतृत्व ने, अन्तरराष्ट्रीय मानवाधिकार क़ानून के लिये कोई सम्मान नहीं दिखाया है.
विशेष मानवाधिकार विशेषज्ञ थॉमस एण्ड्रयूज़ ने कहा कि दशकों के दौरान दक्षिण-पूर्वी एशियाई देशों में दशकों में पहली बार दिये गए इस तरह के मृत्यु दण्ड पर वो बहुत क्रोधित और सदमा महसूस कर रहे हैं.
I'm devastated by news that former parliamentarian Zeyar Thaw and longtime activist Ko Jimmy were executed with two others today. UN Member States must honor their lives by making this depraved act a turning point for the world's response to this crisis. My statement attached. pic.twitter.com/zhdBxFDXoo
RapporteurUn
जिन चार लोगों को मृत्यु दण्ड दिया गया है उनमें मानवाधिकार व लोकतंत्र समर्थक कार्यकर्ता - को जिमी और विधायक फ़्यो ज़ेया थाव भी शामिल हैं जिन्हें तथाकथित “आतंकवादी गतिविधियों” को अंजाम देने में मदद करने के आरोप में दोषी क़रार दिया गया.
यूएन मानवाधिकार उच्चायुक्त मिशेल बाशेलेट ने कहा है, “ये क्रूर और दमनात्मक कार्रवाई, सेना द्वारा अपने ही देश के लोगों के ख़िलाफ़ जारी दमनात्मक अभियान का एक विस्तार है.”
उन्होंने कहा, “मृत्यु दण्ड दिये जाने के ये मामले, जोकि म्याँमार में दशकों में पहली बार हुए हैं – जीवन, स्वतंत्रता और एक व्यक्ति की सुरक्षा के अधिकारों, व एक निष्पक्ष मुक़दमे की गारण्टी का क्रूर हनन हैं. सेना द्वारा मौतों का दायरा बढ़ाने से, उन संकटों में उसका उलझाव और ज़्यादा बढ़ेगा, जो उसने ख़ुद की उत्पन्न किये हैं.”
मिशेल बाशेलेट ने तमाम राजनैतिक बन्दियों और मनमाने तरीक़े से गिरफ़्तार किये गए अन्य लोगों की तुरन्त रिहाई की पुकार लगाई, और देश से मृत्यु दण्ड पर स्वैच्छिक रोक तुरन्त बहाल करने का आग्रह भी किया.
इन चारों लोगों पर बन्द कमरों में चलाए गए मुक़दमों में जनवरी और अप्रैल में मृत्यु दण्ड की सज़ा सुनाई गई थी और इन पर सेना के विरुद्ध लड़ने वाले विद्रोहियों की मदद करने के आरोप लगाए गए थे.
ध्यान रहे कि म्याँमार में सेना ने, 1 फ़रवरी 2021 को देश की सत्ता पर नियंत्रण कर लिया था, और उसके बाद से रक्तरंजित दमन का प्रयोग किया है जिसके कारण बड़े पैमाने पर अनेक अधिकारों का हनन हुआ है.
इन लोकतंत्र समर्थक चार कार्यकर्ताओं को, दया की विश्व व्यापी पुकार के बावजूद मृत्यु दण्ड दिया गया है.
म्याँमार के लिये विशेष मानवाधिकार विशेषज्ञ थॉमस एण्ड्रयूज़ ने जून में मृत्यु दण्ड की घोषणा पर ही, इन पर अमल किये जाने के फ़ैसले की निन्दा की थी.
उन्होंने एक वक्तव्य में कहा कि इन चारों व्यक्तियों को अपील का अधिकार दिये बिना ही उन पर मुक़दमा चलाया गया, उन्हें दोषी क़रार दिया गया और उन्हें मौत की सज़ा सुना दी गई, सम्भवतः क़ानूनी वकील मुहैया कराए बिना ही, जोकि अन्तरराष्ट्रीय मानवाधिकार क़ानून का उल्लंघन है.
उन्होंने संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों से, “प्रदर्शनकारियों की व्यापक और व्यवस्थागत तरीक़े से हत्याएँ किये जाने, सम्पूर्ण गाँवों के ख़िलाफ़ अन्धाधुन्ध और अब विपक्षी नेताओं को मृत्यु दण्ड दिये जाने के विरुद्ध” शक्तिशाली कार्रवाई करने की पुकार भी लगाई है.
उन्होंने कहा, “कोई अन्तरराष्ट्रीय कार्रवाई नहीं किये जाने की इस यथास्थिति को, मज़बूती से रद्द किया जाना होगा.”
यूएन महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने भी जून में, ऐसे लोगों को रिहा किये जाने की पुकार लगाई थी जिन्हें अपनी बुनियादी स्वतंत्रताएँ और अधिकारों का प्रयोग करने के सम्बन्ध में या तो गिरफ़्तार किया गया, या उन पर आरोप लगाए गए. उन्होंने साथ ही म्याँमार में तमाम राजनैतिक क़ैदियों की तुरन्त रिहाई का भी आहवान किया था.
संयुक्त राष्ट्र के विशेष रैपोर्टेयर और मानवाधिकार विशेषज्ञों को, जिनीवा स्थित मानवाधिकार परिषद द्वारा विशिष्ट विषयगत या देश के शासनादेश पर काम सौंपा जाता है, जहाँ वे तथ्य-खोज या निगरानी मिशन पर रिपोर्ट तैयार करके सौंपते हैं. ये पद मानवाधिकार परिषद के विशेष प्रक्रिया अनुभाग के अन्तर्गत मानद हैं और पदाधिकारियों को उनके काम के लिये संयुक्त राष्ट्र से कोई वेतन भुगतान नहीं किया जाता है.