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म्याँमार: सैन्य नेतृत्व की वैधता नकारे जाने का आग्रह, समन्वित कार्रवाई पर बल

म्याँमार में सैन्य तख़्तापलट के विरोध में जन प्रदर्शन
Unsplash/Pyae Sone Htun
म्याँमार में सैन्य तख़्तापलट के विरोध में जन प्रदर्शन

म्याँमार: सैन्य नेतृत्व की वैधता नकारे जाने का आग्रह, समन्वित कार्रवाई पर बल

मानवाधिकार

संयुक्त राष्ट्र द्वारा नियुक्त स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञ ने अन्तरराष्ट्रीय समुदाय से, म्याँमार में सैन्य नेतृत्व की वैधता को तुरन्त नकारने का आग्रह किया है. म्याँमार में मानवाधिकारों की स्थिति पर विशेष रैपोर्टेयर टॉम एंड्रयूज़ ने, देश में सैन्य तख़्तापलट की घटना के तीसरे साल में प्रवेश करने पर, मंगलवार को न्यूयॉर्क में यूएन मुख्यालय एक महत्वपूर्ण रिपोर्ट भी जारी की है.

विशेष रैपोर्टेयर टॉम एंड्रयूज़ ने अपनी रिपोर्ट, ‘Illegal and Illegitimate: Examining the Myanmar Military’s Claim as the Government of Myanmar and the International Response’ को प्रस्तुत करते हुए, म्याँमार में ‘राज्यसत्ता प्रशासन परिषद’ को ग़ैरक़ानूनी और नाजायज़ क़रार दिया.

उन्होंने अन्तरराष्ट्रीय समुदाय से आग्रह किया कि सैन्य शासन के विरुद्ध मज़बूती से खड़ा होना होगा, सदस्य देशों के गठबन्धन को मज़बूत, समन्वित ढंग से प्रतिबन्ध लगाने होंगे और देश में लोकतांत्रिक राष्ट्रीय एकता सरकार को समर्थन देना होगा.  

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उन्होंने कहा कि सेना ने 1 फ़रवरी 2021 को लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित सरकार को एक असंवैधानिक तख़्तापलट से अपदस्थ कर दिया था.

उन्होंने क्षोभ प्रकट किया कि इसके बाद, म्याँमार की जनता को जिस तरह से निरन्तर हिंसा झेलनी पड़ी है, उससे व्यापक पैमाने पर मानवाधिकार, मानव कल्याण, और आर्थिक संकट उपजा है, जिसके विरोध में राष्ट्रव्यापी विरोध में नई स्फूर्ति आई है.

टॉम एंड्रयूज़ के अनुसार, निष्कर्ष स्पष्ट है कि ‘राज्यसत्ता प्रशासन परिषद’ का सैन्य तख़्तापलट अवैध था और उसका म्याँमार की सरकार होने का दावा करना नाजायज़ है.

उन्होंने कहा कि दिखावटी चुनावों की तैयारियों से पहले, मौजूदा संकट का अन्तरराष्ट्रीय समुदाय द्वारा समन्वित ढंग से जवाब दिया जाना अनिवार्य है.

विशेष रैपोर्टेयर ने सभी सदस्य देशों से राज्यसत्ता प्रशासन परिषद पर मज़बूत, समन्वित आर्थिक व हथियार प्रतिबन्ध लगाने के लिए रणनैतिक ढंग से आगे बढ़ने का आग्रह किया, विशेष रूप से उन देशों को, जिन्होंने पहले से ही सैन्य नेतृत्व पर क़ीमतें थोपी हैं.

इसके समानान्तर, लाखों ज़रूरतमन्द लोगों तक मानवीय राहत पहुँचाई जानी होगी.

लोकतंत्र व निर्वाचन सहायता एजेंसी (IDEA) ने इस मौक़े पर अपना नवीनतम नीतिपत्र, ‘Elections at a crossing point: Considerations for electoral design in post-coup Myanmar’ जारी किया है.

इस नीतिपत्र में नए, उभरते संवैधानिक सन्दर्भ में प्रामाणिक लोकतांत्रिक चुनाव करने के लिए अहम बिन्दुओं को ध्यान में रखने की बात कही गई है. इनमें निर्वाचन प्रक्रिया का सम्पूर्ण क़ानूनी फ़्रेमवर्क, मतदाता पंजीकरण, और निर्वाचन सम्बन्धी विवादों के निपटान उपाय शामिल हैं.

देश में विकट हालात

म्याँमार पर महासचिव की विशेष दूत नोएलीन हेज़ेर ने यूएन न्यूज़ के साथ एक विशेष बातचीत में देश में ज़मीनी हालात पर जानकारी साझा की है.

उन्होंने बताया कि वर्ष 2023 में एक करोड़ 75 लाख लोगों को मानवीय सहायता की आवश्यकता होगी, जबकि सैन्य तख़्तापलट से यह संख्या 10 लाख थी.

विशेष दूत के अनुसार, “देश और स्थानीय जनता पर इसका असर विनाशकारी साबित हुआ है. ज़मीन पर मौजूद लोगों का स्पष्ट मत है कि राजनैतिक संकट की वजह से मानवीय संकट उपजा है.”

विश्व बैंक का कहना है कि देश में लगभग 40 प्रतिशत से अधिक आबादी निर्धनता रेखा से नीचे जीवन गुज़ार रही है. इसके अलावा, एक करोड़ 52 लाख लोग फ़िलहाल खाद्य असुरक्षा से पीड़ित हैं और पिछले दो सालों में 34 हज़ार से अधिक नागरिक प्रतिष्ठान जलाए गए हैं.

विशेष दूत नोएलीन हेज़ेर ने कॉक्सेस बाज़ार में एक सामुदायिक केन्द्र में महिलाओं के साथ मुलाक़ात की.
OSE-Myanmar

तत्काल कार्रवाई की पुकार

नोएलीन हेज़ेर ने कहा कि मानव पीड़ा के नज़रिये से यह विनाशकारी है, जिसके क्षेत्रीय व अन्तरराष्ट्रीय दुष्परिणाम होने की आशंका है.

विशेष दूत ने अन्तरराष्ट्रीय समुदाय से तीन अहम क्षेत्रों में पहले से अधिक एकजुटता व प्रतिबद्धता का आग्रह किया है:

- साझीदार संगठनों के साथ राहत प्रयासों का दायरा व स्तर बढ़ाना

- सम्भावित चुनावों के विषय में एकजुट रुख़ अपनाना

- नागरिक संरक्षण उपाय लागू करना

विशेष दूत ने कहा कि यह समझ से परे है कि अपने ही नागरिकों को नुक़सान पहुँचा रहे लोग, किसी भी प्रकार से शान्तिपूर्ण व लोकतांत्रिक दिशा में बढ़ने की शुरुआत कर सकते हैं.

उन्होंने कहा कि नागरिक प्रतिष्ठानों को जलाए जाने व हवाई बमबारी समेत हिंसा को रोका जाना होगा. इसके साथ ही, सैन्य नेतृत्व द्वारा राजनैतिक नेताओं, नागरिक समाज कार्यकर्ताओं व पत्रकारों की गिरफ़्तारी को रोका जाना होगा.