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दासता पर एक अभूतपूर्व प्रदर्शनी, नई पीढ़ी के लिए 'मानवता की उम्मीद’

 ऐम्स्टेर्डम के प्रसिद्ध रिज़्क्स संग्रहालय की दासता स्मरण प्रदर्शनी में डच औपनिवेशिक दासता की दस सच्ची कहानियों
© Richard Koek
ऐम्स्टेर्डम के प्रसिद्ध रिज़्क्स संग्रहालय की दासता स्मरण प्रदर्शनी में डच औपनिवेशिक दासता की दस सच्ची कहानियों

दासता पर एक अभूतपूर्व प्रदर्शनी, नई पीढ़ी के लिए 'मानवता की उम्मीद’

संस्कृति और शिक्षा

चावल का एक दाना, एक सुनहरा पट्टा, और टख़नों व गर्दन को फँसाने के लिए तीन मीटर लम्बी, लकड़ी की पट्टी. ये सब, दासता पर उस दर्द को बयान करने वाली एक अनूठी प्रदर्शनी का हिस्सा हैं, जो 23 फ़रवरी (2023) को, संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में शुरू हुई है.

इस तरह के अनगिनत उदाहरण इतिहास के कुछ सबसे काले पन्नों को उजागर करते हैं, और इसी के बारे में है ये – “दासता: डच औपनिवेशिक दासता की दस सच्ची कहानियाँ” नामक प्रदर्शनी.

ये प्रदर्शनी, ट्रांसअटलांटिक दास व्यापार और दासता पर संयुक्त राष्ट्र के जनसम्पर्क कार्यक्रम व संयुक्त राष्ट्र में किंगडम ऑफ़ नैदरलैंड्स के स्थाई मिशन के साथ मिलकर, ऐम्स्टेर्डम के कला व इतिहास के राष्ट्रीय संग्रहालय, रिज़्क्स म्यूज़ियम की एक संयुक्त पहल है.

मैक्सिको के कैनकून की 18 वर्षीय डेनिएला पेरेडेस भी अपने सहपाठियों के साथ इस प्रदर्शनी को देखने आई थीं. उन्होंने यूएन न्यूज़ को बताया, "यह मेरे लिए चौंकाने वाली बात है कि बहुत सारे देश अब भी ग़ुलामी को लेकर क्षमा याचना कर रहे हैं."

"सरकारें ग़ुलामी को अनदेखा नहीं कर रही हैं और मानती हैं के ये आज भी किस तरह मौजूद है. इससे मालूम होता है कि समाज के लिए अपनी ग़लतियों से सीखना सम्भव है. मुझे इससे मानवता की भलाई के लिए एक उम्मीद मिलती है.”

प्रदर्शनी एक ही कलाकृति के इर्द-गिर्द बुनी गई है - लकड़ी की एक भारी पट्टी, जिसे "ट्रोन्को" के रूप में जाना जाता है. ये शब्द पुर्तगाली भाषा से लिया गया है, जिसमें पेड़ के तने को “ट्रोन्को" कहा जाता है.

1700 और 1850 के बीच, इस भयावह यंत्र से ग़ुलामों नियंत्रित किया जाता था. ट्रोन्को को, वर्ष 1960 के दशक में नैदरलैंड्स के एक शहर ज़ीलैंड के एक खलिहान से बरामद किया गया था.

वालिका स्मयूल्डर्स, रिज़्क्स म्यूज़ियम में क्यूरेटर और इतिहास के प्रमुख, क्यूरेटरों में से एक हैं.
UN News/Eileen Travers

 वर्ष 2007 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने ट्रांसअटलांटिक दास व्यापार और दासता पर जनसम्पर्क कार्यक्रम शुरू किया था, जिसने इस प्रदर्शनी का आयोजन किया है. इस कार्यक्रम के अनुसार, ट्रोन्को एक ऐसा ठोस उदाहरण है जो ये याद दिलाता है कि एक करोड़ 50 लाख करोड़ पुरुष, महिलाएँ और बच्चे, सदियों से एक जघन्य क़ानूनी व्यवस्था के शिकार थे.

इस प्रदर्शनी में हिस्सा लेने वाले चार क्यूरेटरों में से एक और रिज़्क्स म्यूज़ियम में इतिहास की प्रमुख वालिका स्मूल्डर्स ने यूएन न्यूज़ को बताया, "संयुक्त राष्ट्र में इस प्रदर्शनी को आयोजित करना सब कुछ आपस में जोड़ता है."

"हमने सोचा कि यह महत्वपूर्ण होगा कि नैदरलैंड्स औपनिवेशिक इतिहास में अपनी प्रमुख भूमिका से अवगत हो और उसे स्वीकार करे. हम प्रदर्शनी को वास्तव में व्यक्तिगत बनाकर नैदरलैंड्स में हर किसी को उस बड़ी कहानी से जोड़ना चाहते थे.”

डेनिएला पेरेडेस की सहपाठी, 17 वर्षीय ऐलेक्सा बेजर, प्रदर्शनी के ज़रिए, विश्व के इस रूप को देखकर बेहद अचम्भित थी. उन्होंने कहा, "यह आश्चर्यजनक है कि सरकारें और देश खुलकर और सच्चाई से बात करने को तैयार हैं."

मुनाफ़ाख़ोरों से स्वतंत्रता सेनानियों तक

प्रदर्शनी में लगाए गए सूचनापट्ट, ट्रोन्को के इर्द-गिर्द, बांग्लादेश, ब्राज़ील, नैदरलैंड्स, दक्षिण अफ़्रीका, सूरीनाम व कैरीबियन और पश्चिम अफ़्रीकी क्षेत्रों से आए ऐसे लोगों की कहानियाँ बयान करते हैं, जिन्हें डच दास व्यापार में फँसा लिया गया था. उस दास व्यापार ने, 17वीं और 19वीं सदियों के बीच दुनिया भर में लगभग दस लाख लोगों को ग़ुलामी का शिकार बनाया था.

वालिका स्मूल्डर्स के अनुसार, “बार-बार छानबीन और जाँच” के बाद; इतिहासकारों, थिएटर निर्देशक, इंटीरियर डिज़ाइनर, कलाकारों और डीएनए विश्लेषण करने वाले एक जीव वैज्ञानिक सहित विशेषज्ञों के एक बड़े समूह ने ये कहानियाँ चुनी हैं.”

“दर्शक, हर सूचना पट्ट यानि पैनल पर दिए गए क्यूआर कोड को स्वाइप करने से, वंशजों और ऐसे अनेक लोगों की वर्तमान रिकॉर्डिंग तक पहुँच सकते हैं, जो मुनाफ़ाख़ोरों, पीड़ितों और स्वतंत्रता सेनानियों से जुड़े हुए हैं.”

स्मूल्डर्स का कहना है कि हालाँकि, क्यूरेटरों के लिए, दस लाख से अधिक कहानियों में से, केवल दस कहानियों को चुनना काफ़ी कठिन काम था.

उन्होंने कहा, "निश्चित रूप से लाखों कहानियाँ हैं, लेकिन हम चाहते थे कि हम इन दस कहानियों के ज़रिए, व्यवस्था के भीतर झाँकने का मौक़ा उपलब्ध कराएँ.

समृद्धि की जीवन शैली से लेकर स्वतंत्रता सेनानी बनने की उड़ान तक, यह प्रदर्शनी इंडोनेशिया के सुरपति की कहानी बताती है, जिन्होंने दासता से स्वतंत्रता सेनानी बनने तक का सफ़र तय किया. और दूसरी ओर, दासता से मुनाफ़ा कमाने वाले एक डच व्यापारी की पत्नी ऊपजेन की कहानी है, जिन्होंने अपना चित्र ख़ुद रैम्ब्रांट से बनवाया था.

फिर है बहादुर सपानी की कहानी जिन्होंने सूरीनाम जाने वाले एक जहाज़ पर बैठने के लिए मजबूर किए जाते समय, पश्चिमी अफ़्रीका के स्वदेशी चावल के छोटे-छोटे दाने, अपने गुँथे हुए बालों में छिपा लिए थे. जब उन्हें दास के रूप में काम करते हुए, एक खेत से मुक्ति के लिए भागना पड़ा, तो उन्होंने चावल के उन दानों को बीज के रूप में इस्तेमाल करके फ़सल उगाई, जो नव स्थापित समुदायों में एक महत्वपूर्ण खाद्य स्रोत बन गई, और कड़ी मेहनत से मिली आज़ादी की प्रतीक भी.

‘केवल इतिहास की बात नहीं’

यह प्रदर्शनी ऐसे समय में आई है जब विश्व के नेता औपनिवेशिक अतीत के बारे में बात कर रहे हैं, औपनिवेशिक युग में लूटी गई प्राचीन कलाकृतियों को घर वापस लाने के प्रयास कर रहे हैं.

डच प्रधान मंत्री मार्क रूटे ने दिसम्बर 2022 में दास व्यापार में देश की भूमिका के लिए एक औपचारिक माफ़ी भी जारी की थी.

वालिका स्मूल्डर्स कहती हैं, “यह केवल इतिहास के बारे में नहीं है, यह हमारे साझा भविष्य के बारे में भी है.”

“दासता की विरासत हर दिन हमारे बीच है. हमें इसके बारे में बात करनी होगी, विशेष रूप से सभी प्रकार के भेदभाव और नस्लवाद की, जो अब भी मौजूद हैं.”

उन्होंने कहा कि यहाँ संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में ऐसी प्रदर्शनी का होना "वास्तव में हमारे लिए महत्वपूर्ण है.”

स्मूल्डर्स ने ज़ोर देकर कहा, "समाधान का एक हिस्सा यह पहचानना है कि ये अतीत से जुड़ा हुआ है, और अतीत को समझकर हम आज के समाज को भी समझ सकते हैं.”

इस प्रदर्शनी के उद्घाटन पर, संयुक्त राष्ट्र के वैश्विक संचार विभाग (DGC) की प्रमुख मैलिसा फ़्लेमिंग ने कहा कि इस इतिहास को पढ़ाने, सीखने और समझने से, नस्लभेद व अन्याय को समाप्त करने के लिए हमारे काम, व सभी के लिए गरिमा और मानवाधिकारों पर आधारित समाजों के निर्माण में मदद मिलती है."