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ग़ुलामी

"ट्रोन्को" से व्यक्तियों को ग़ुलामों के रूप में नियंत्रित किया जाता था.
UN News/Eileen Travers

'डच औपनिवेशिक दासता की दस सच्ची कहानियाँ' प्रदर्शनी

"दासता: डच औपनिवेशिक दासता की दस सच्ची कहानियाँ" नामक एक प्रदर्शनी, यूएन मुख्यालय में 23 फ़रवरी 2023 को शुरू हुई है, जोकि ऐसे 10 लोगों की कहानियाँ प्रदर्शित करती है जो ग़ुलाम थे, उन लोगों की कहानियाँ जो ग़ुलामी की व्यवस्था से लाभान्वित हुए, और उनकी कहानियाँ जिन्होंने इस प्रथा के ख़िलाफ़ आवाज उठाई. एक महीने तक चलने वाली ये प्रदर्शनी, 17वीं से 19वीं सदी तक ब्राज़ील, सूरीनाम और कैरीबियाई के साथ-साथ दक्षिण अफ़्रीका, एशिया और नैदरलैंड्स में डच औपनिवेशिक युग में दासता पर केन्द्रित है. (वीडियो फ़ीचर)

 ऐम्स्टेर्डम के प्रसिद्ध रिज़्क्स संग्रहालय की दासता स्मरण प्रदर्शनी में डच औपनिवेशिक दासता की दस सच्ची कहानियों
© Richard Koek

दासता पर एक अभूतपूर्व प्रदर्शनी, नई पीढ़ी के लिए 'मानवता की उम्मीद’

चावल का एक दाना, एक सुनहरा पट्टा, और टख़नों व गर्दन को फँसाने के लिए तीन मीटर लम्बी, लकड़ी की पट्टी. ये सब, दासता पर उस दर्द को बयान करने वाली एक अनूठी प्रदर्शनी का हिस्सा हैं, जो 23 फ़रवरी (2023) को, संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में शुरू हुई है.

अफ़ग़ानिस्तान के ननगरहार प्रान्त में ईंट के एक भट्टे पर काम करता 7 साल का एक बच्चा. बाल मज़दूरी भी समाकालीन दासता का एक रूप है.
UNICEF/Noorani

'21वीं सदी की दुनिया में, दासता स्वीकार्य नहीं'

संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने दासता के समकालीन रूपों के प्रभावों की तरफ़ ध्यान आकर्षित करते हुए कहा है कि इस तरह की घिनौने चलन के लिये 21वीं सदी में कोई जगह नहीं हो सकती. महासचिव ने दासता के उन्मूलन के लिये अन्तरराष्ट्रीय दिवस के अवसर पर ये बात कही है, जोकि 2 दिसम्बर को मनाया जाता है.