ग्रीनहाउस गैसों की सतत निगरानी के लिए, यूएन मौसम विज्ञान एजेंसी की योजना

विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) ने कहा है कि जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए संयुक्त राष्ट्र के नेतृत्व में एक योजना पर देशों की सरकारें और अन्तरराष्ट्रीय वैज्ञानिक समुदाय गम्भीरतापूर्वक विचार कर रहे हैं. इस योजना से, वातावरण को प्रदूषित करने वाली ग्रीनहाउस गैसों का आकलन करने और स्थिति में बेहतरी लाने के उपायों को चिन्हित करने में मदद मिलने की आशा है.
विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) ने बुधवार को बताया कि इस पहल के ज़रिये ज़मीन-आधारित आकलन केन्द्रों का एक नैटवर्क स्थापित किया जाएगा.
इस नैटवर्क की मदद से, अगले पाँच वर्षों के भीतर वायु गुणवत्ता से सम्बन्धित चिन्ताजनक डेटा की पुष्टि कर पाना सम्भव होगा, जोकि सैटेलाइट और विमानों से प्राप्त होता है.
We're wrapping up WMO symposium on Global #GreenhouseGas Monitoring Infrastructure to coordinate surface and satellite observations and support #ClimateAction and #ParisAgreement.
"If we cant measure it, we can't mitigate and adapt."
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WMO
यूएन एजेंसी के अनुसार, फ़िलहाल धरती की सतह और अन्तरिक्ष-आधारित ग्रीनहाउस गैस पर्यवेक्षण व जानकारी को अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर साझा करने के लिए कोई व्यापक, सामयिक व्यवस्था नहीं है.
इसके मद्देनज़र, मौसम विज्ञान संगठन ने 2015 के पेरिस समझौते को मज़बूत करने के इरादे से, अन्तरराष्ट्रीय सहयोग में बेहतरी लाने और डेटा के आदान-प्रदान पर पर बल दिया है.
जलवायु परिवर्तन से निपटने के प्रयासों में पेरिस समझौता बेहद अहम है, जिसमें कार्बन उत्सर्जन में कटौती करने और जलवायु सहनक्षमता के विकास के लिए एक रोडमैप उपलब्ध है.
यूएन एजेंसी में वरिष्ठ वैज्ञानिक अधिकारी डॉक्टर ओक्साना तारासोवा ने कहा कि केवल मानव गतिविधियों से जनित उत्सर्जनों की ही निगरानी नहीं की जाएगी, बल्कि वन और महासागरों पर भी नज़र होगी.
“हमारे शमन प्रयासों को समर्थन देने के लिए हमें इस जानकारी की आवश्यकता है, चूँकि हमारे पास खोने के लिए समय नहीं है.”
डॉक्टर तारासोवा ने बताया कि वर्ष 2022 में मौसम विज्ञान संगठन ने मीथेन के स्तर में अब तक की सबसे बड़ी वृद्धि के बारे में जानकारी दी थी, जिसकी वजहों के पारे में अब भी जानकारी नहीं है.
उनके अनुसार, नए बुनियादी ढाँचे की मदद से पर्यवेक्षण सम्बन्धी ज्ञान व उनके इस्तेमाल में पसरी कमियों को भी दूर करने का प्रयास किया जाएगा,
यूएन एजेंसी ने ज़ोर देकर कहा है कि वैश्विक ग्रीनहाउस गैस निगरानी योजना को व्यवहार्य (viable) बनाने के लिए सरकारों, अन्तरराष्ट्रीय संगठनों और निजी सैक्टर के बीच सहयोग अति-आवश्यक होगा.
इसके साथ ही, ज़मीन-आधारित, वायुवाहित (airborne) और अन्तरिक्ष-आधारित पर्यवेक्षण नैटवर्क के बीच समन्वय की भी अहम भूमिका होगी.
यूएन एजेंसी का मानना है कि अधिक सटीक और दीर्घकालिक डेटा के ज़रिये, बदलते वातावरण के सम्बन्ध में बेहतर समझ विकसित की जा सकती है.
“हम ज़्यादा समझ-बूझ से निर्णय लेने में सक्षम होंगे और हम यह समझेंगे कि हमारे निर्णयों का वांछित असर हो रहा है या नहीं.”
कुछ देशों और अन्तरराष्ट्रीय संगठनों ने पहले से ही वातावरण की निगरानी करने, डेटा सैट की देखरेख करने का काम किया है, लेकिन समग्र तौर पर फ़िलहाल कोई ढाँचा उपलब्ध नहीं है, और शोध के लिए वित्त पोषण पर बहुत अधिक निर्भरता है.
इस विषय में एक इकलौती और अन्तरराष्ट्रीय समन्वय वाली वातावरण निगरानी संस्था के गठन का समर्थन करने की बात कही गई है.
पृथ्वी का वातावरण मुख्यत; नाइट्रोजन और ऑक्सीजन से बना है लेकिन कम मात्रा में अनेक अन्य प्रकार की गैस व कण मौजूद हैं, जिनका जीवन प्राकृतिक पर्यावरण पर बड़ा असर होता है.
औद्योगिकीकरण के बाद से ही, ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन ने वातावरण की संरचना को नाटकीय रूप से बदला है.
यूएन मौसम विज्ञान एजेंसी ने बार-बार सचेत किया है कि कार्बन डाइऑक्साइड और मीथेन जैसी ग्रीनहाउस गैसों का बढ़ता स्तर, वैश्विक तापमान में वृद्धि और जलवायु परिवर्तन की वजह बन रहा है.
इन गैसों व अन्य प्रदूषकों से वायु गुणवत्ता प्रभावित हो रही है, जिससे मनुष्य, कृषि और पारिस्थितिकी तंत्र प्रभावित होते हैं.
इसे ध्यान में रखते हुए, जलवायु वैज्ञानिकों का मानना है कि जिस हवा में हम साँस लेते हैं, उसका सटीक आकलन किया जाना बहुत अहम है, ताकि प्रदूषण के स्तर और वायुमंडलीय परिस्थितियों का बेहतर आकलन किया जा सके.
पर्यावरण, मानव स्वास्थ्य, जैवविविधता हानि, पारिस्थितिकी तंत्रों और जल गुणवत्ता पर इनके प्रभावों की समीक्षा करने और उनके दंश को कम करने के उपायों को चिन्हित करने के लिए यह अहम है.