तापमान में 'ख़तरनाक बढ़ोत्तरी' की ओर बढ़ती दुनिया - महत्वाकाँक्षी जलवायु कार्रवाई की पुकार
कोविड-19 महामारी के बावजूद जलवायु परिवर्तन की रफ़्तार में कोई कमी नहीं आई है. संयुक्त राष्ट्र की एक नई रिपोर्ट दर्शाती है कि विश्व भर में आर्थिक गतिविधियों में आए ठहराव के कारण, कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन की मात्रा में अस्थाई तौर पर कुछ कमी आई थी, मगर अब यह फिर तेज़ गति से बढ़ रही है. रिपोर्ट में चेतावनी जारी की गई है कि दुनिया आने वाले वर्षों में, तापमान में ख़तरनाक बढ़ोत्तरी की ओर बढ़ रही है.
As this @WMO report clearly states, time is running out.All countries must commit - now - to achieving net zero emissions, and to clear, credible #ClimateAction strategies to get there.#COP26 must be the turning point. Our future is at stake. https://t.co/iWdKIdY737 pic.twitter.com/fK3mQyE8dj
antonioguterres
संयुक्त राष्ट्र की विभिन्न एजेंसियों द्वारा गुरूवार को जारी रिपोर्ट, United in Science 2021, के मुताबिक वातावरण में ग्रीनहाउस गैसों की सघनता रिकॉर्ड स्तर पर है और कि इस बात के कोई संकेत नहीं हैं कि हम हरित पुनर्बहाली की ओर बढ़ रहे हैं.
वैश्विक तापमान में वृद्धि की वजह से विश्व भर में विनाशकारी चरम मौसम की घटनाएँ बढ़ रही हैं, जिसके अर्थव्यवस्थाओं और समाजों पर भीषण असर हो रहा है.
रिपोर्ट के मुताबिक वैश्विक तापमान में बढ़ोत्तरी के 1.5 डिग्री सेल्सियस की दहलीज को अगले पाँच सालों में पार कर जाने की आशंका है. दुनिया फ़िलहाल जलवायु परिवर्तन पर पैरिस समझौते के लक्ष्यों को हासिल कर पाने से बहुत दूर है.
यूएन महासचिव ने अपने एक वीडियो सन्देश में ध्यान दिलाया कि जलवायु कार्रवाई के लिये दुनिया अब एक बेहद अहम पड़ाव पर पहुँच गई है.
“हमारी जलवायु और हमारी पृथ्वी में आया व्यवधान, पहले ही हमारी आशंका से ज़्यादा ख़राब है और यह पूर्वानुमान से तेज़ गति से हो रहा है.”
“यह रिपोर्ट दर्शाती है कि हम रास्ते से कितना अधिक दूर हैं.”
बताया गया है कि अनेक सदियों से लेकर हज़ारों सालों तक जलवायु प्रणाली में आए बदलावों का स्तर अभूतपूर्व है.
महत्वाकाँक्षी जलवायु कार्रवाई के बाद भी समुद्री जलस्तर में वृद्धि के जारी रहने की आशंका है, जिससे निचले द्वीपों और तटीय आबादियों के लिये ख़तरा है.
विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) के महासचिव पेटेरी टालास ने रिपोर्ट पेश करते हुए एक प्रैस वार्ता को सम्बोधित किया.
“महामारी के दौरान हमने सुना है कि मानवता को एक ज़्यादा टिकाऊ रास्ते पर ले जाने और जलवायु परिवर्तन के समाज और अर्थव्यवस्थाओं पर बदतर प्रभावों से बचने के लिये हमें बेहतर पुनर्बहाली करनी होगी.”
“यह रिपोर्ट दर्शाती है कि 2021 में अब तक हम सही दिशा में नहीं जा रहे हैं.”
रिपोर्ट के कुछ अहम निष्कर्ष इस प्रकार हैं:
- वातावरण में प्रमुख ग्रीनहाउस गैसों – कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन, नाइट्रस ऑक्साइड - की सघनता का बढ़ना वर्ष 2020 और 2021 की पहली छमाही में जारी रहा
- यह स्पष्ट है कि मानवीय गतिविधियों से वातावरण, महासागरों और भूमि का तापमान बढ़ा है. मानव जनित जलवायु परिवर्तन से, हर क्षेत्र में चरम मौसम व जलवायु की घटनाओं की आवृत्ति और गहनता बढ़ रही है.
- वार्षिक वैश्विक औसत तापमान के आने वाले पाँच सालों में हर वर्ष, पूर्व-औद्योगिक स्तर की तुलना में कम से कम 1 डिग्री सेल्सियस ज़्यादा रहने की सम्भावना है. यह 0.9 डिग्री से 1.8 डिग्री के बीच रह सकता है.
- इस बात की सम्भावना 40 प्रतिशत है कि अगले पाँच वर्षों में औसत तापमान कम से कम पूर्व-औद्योगिक काल की तुलना में 1.5 डिग्री अधिक हो.
- मगर, 2021-2025 की अवधि में पाँच वर्ष के औसत तापमान के 1.5 डिग्री सेल्सियम की दहलीज को पार करने की सम्भावना नहीं है.
- जीवाश्म कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन – कोयला, तेल, गैस और सीमेंट – वर्ष 2019 में अपने सबसे ऊँचे स्तर (36.64 गीगाटन CO2) पर पहुँचा. 2020 में कोविड-19 के कारण इसमें 1.98 गीगाटन की गिरावट देखी गई
- तापमान में बढ़ोत्तरी से कामकाज में व्यवधान आता है और यह ताप-सम्बन्धी कारणों से मौत होने की वजह भी है
- कोविड-19 महामारी और ताप लहरों, जंगलों में आग और वायु की ख़राब गुणवत्ता जैसे जलवायु जोखिमों से मानव स्वास्थ्य को विश्व भर में ख़तरा है. इससे निर्बल समुदायों के लिये विशेष रूप से जोखिम है.
रिपोर्ट में ज़ोर देकर कहा गया है कि कोविड-19 से पुनर्बहाली प्रयासों को राष्ट्रीय जलवायु परिवर्तन और वायु गुणवत्ता रणनीतियों के अनुरूप बनाना होगा.
महासचिव गुटेरेश ने आगाह किया है कि महत्वाकाँक्षी जलवायु कार्रवाई के लिये समय भागा जा रहा है.
उन्होंने ध्यान दिलाया कि ग्लासगो में यूएन के वार्षिक जलवायु सम्मेलन (कॉप26) में मौजूदा दिशा बदलने के लिये, सभी देशों को वर्ष 2050 तक नैट शून्य उत्सर्जन का संकल्प लेना होगा और उसके समानान्तर ठोस दीर्घकालीनी रणनीतियों को अपनाना होगा.
इस क्रम में वर्ष 2010 के स्तर की तुलना में, वैश्विक उत्सर्जन में 2030 तक 45 प्रतिशत की कमी लानी होगी.
यूएन मौसम विज्ञान एजेंसी के समन्वय में तैयार इस रिपोर्ट के लिये संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP), विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO), जलवायु परिवर्तन पर अन्तरसरकारी पैनल (IPCC), वैश्विक कार्बन परियोजना (GCP), विश्व जलवायु शोध कार्यक्रम (WCRP) और ब्रिटेन के मौसम विज्ञान कार्यालय ने सहयोग दिया है.