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अफ़्रीका में जलवायु परिवर्तन, समुदायों व अर्थव्यवस्थाओं के लिये ख़तरा

अफ़्रीकी आबादी के केवल 40 फ़ीसदी हिस्से के पास ही, चरम मौसम और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के विरुद्ध, समय पूर्व चेतावनी प्रणाली की सुलभता है.
IOM/Amanda Nero
अफ़्रीकी आबादी के केवल 40 फ़ीसदी हिस्से के पास ही, चरम मौसम और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के विरुद्ध, समय पूर्व चेतावनी प्रणाली की सुलभता है.

अफ़्रीका में जलवायु परिवर्तन, समुदायों व अर्थव्यवस्थाओं के लिये ख़तरा

जलवायु और पर्यावरण

विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) ने गुरूवार को प्रकाशित अपनी एक नई रिपोर्ट में सचेत किया है कि विनाशकारी बाढ़, सूखे समेत अन्य जोखिमों से अफ़्रीकी समुदायों, अर्थव्यवस्थाओं और पारिस्थितिकी तंत्रों के समक्ष गम्भीर चुनौती पैदा हो रही है.

अफ़्रीका में जलवायु हालात से अवगत कराने वाली ‘The State of the Climate in Africa 2021’ रिपोर्ट के अनुसार वर्षा रुझानों में व्यवधान आया है, हिमनद ग़ायब हो रहे हैं और महत्वपूर्ण झीलों का आकार सिकुड़ रहा है. 

जल की मांग बढ़ने मगर आपूर्ति सीमित होने की वजह से संघर्ष और विस्थापन जैसी चुनौतियाँ और गम्भीर हो सकती हैं. 

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यूएन मौसम विज्ञान एजेंसी के महासचिव पेटेरी टालस ने कहा, “सूखा-पीड़ित हॉर्न ऑफ़ अफ़्रीका क्षेत्र में बद से बदतर होता संकट और मंडराता अकाल, दर्शाता है कि जलवायु परिवर्तन किस तरह जल सम्बन्धी जोखिमों को और गहरा कर रही है.”

“इससे लाखों लोगों की ज़िन्दगियों के लिये ख़तरे उत्पन्न हुए हैं और समुदायों, देशों व पूर्ण क्षेत्रों के लिये अस्थिरता पनपी है.”

तापमान के रुझान

रिपोर्ट दर्शाती है कि किस तरह चरम मौसम और जलवायु परिवर्तन, मानव स्वास्थ्य व सुरक्षा, भोजन व जल सुरक्षा, और सामाजिक-आर्थिक विकास के लिये समस्याएँ खड़ी हुई हैं.

अफ़्रीकी महाद्वीप, कुल वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जनों में से केवल दो से तीन फ़ीसदी के लिये ही ज़िम्मेदार है, लेकिन अफ़्रीकी देशों को उसके प्रभावों को विषमतापूर्ण ढँग से झेलना पड़ता है. 

यूएन एजेंसी की रिपोर्ट में जल पर विशेष रूप से ध्यान केन्द्रित किया गया है. तथ्य दर्शाते हैं कि जल आपूर्ति का दबाव बढ़ने से महाद्वीप पर 25 करोड़ लोगों पर असर होने की आशंका है.

वर्ष 2030 तक 70 करोड़ लोग विस्थापन का शिकार हो सकते हैं. 

एक अनुमान के अनुसार, हर पाँच में से चार अफ़्रीकी देश, वर्ष 2030 तक जल संसाधनों का टिकाऊ प्रबन्धन करने में सक्षम नहीं होंगे. 

महासचिव टालस ने सचेत किया कि, “पूर्व औद्योगिक काल के बाद से, अफ़्रीका की जलवायु, वैश्विक औसत से कहीं अधिक गर्म हुई है.”

अफ़्रीकी तट रेखाओं पर समुद्री जल स्तर में वृद्धि वैश्विक औसत से कहीं ज़्यादा तेज़ी से बढ़ी है.

उन्होंने ध्यान दिलाया कि इससे तटीय बाढ़ व क्षरण की आवृत्ति और गहनता बढ़ेगी, और निचले इलाक़ों में स्थित शहरों के जल में खारापन भी.

यूएन एजेंसी प्रमुख ने स्पष्ट किया कि महाद्वीपीय जल निकायों (water bodies) में हो रहे बदलावों का कृषि सैक्टर, पारिस्थितिकी तंत्रों, जैवविविधता पर व्यापक असर होगा.

बदलाव की ओर

फ़िलहाल, अफ़्रीकी आबादी के केवल 40 फ़ीसदी हिस्से के पास ही, चरम मौसम और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के विरुद्ध, समय पूर्व चेतावनी प्रणाली की सुलभता है.

यूएन महासचिव एंतोनियो गुटेरेश के अनुरोध पर, विश्व मौसम विज्ञान संगठन ने अगले पाँच वर्षों में चेतावनी प्रणालियों की सार्वभौमिक सुलभता के लिये एक मुहिम की बागडोर सम्भाली है.

साथ ही, जलवायु कार्रवाई भी रफ़्तार पकड़ रही है.

40 से अधिक अफ़्रीकी देशों ने अपनी राष्ट्रीय जलवायु योजनाओं को ज़्यादा महत्वाकाँक्षी बनाने के लिये बदलाव किये हैं. 

रिपोर्ट में अनेक सिफ़ारिशें भी प्रस्तुत की गई हैं, जिनमें समय पूर्व चेतावनी प्रणालियों को मज़बूती प्रदान करना, और पार-सीमा सहयोग, डेटा व ज्ञान के आदान-प्रदान को बढ़ावा देना है. 

साथ ही, जलवायु अनुकूलन प्रयासों और एकीकृत जल संसाधन प्रबन्धन में अतिरिक्त निवेश किये जाने की पुकार लगाई गई है.