आपबीती: अफ़ग़ान महिलाओं को सदमों से उबरने में मदद का सिलसिला

*नजीबा, एक माँ हैं, एक काउंसलर हैं, विश्वविद्यालय में लैक्चरर रह चुकी हैं, वो अफ़ग़ानिस्तान में महिलाओं को सदमों से उबरने में मदद करती हैं...
“पिछले 20 वर्षों के दौरान मैंने, हिंसा की भुक्तभोगी महिलाओं को उनकी ताक़त और सहनक्षमता फिर से हासिल करने में मदद की है. हर बार जब मैंने किसी महिला की मदद की, मुझे अपनी जीत महसूस हुई. मैं हमेशा ही ज़्यादा से ज़्यादा प्रयास करने की चाहत रखी है और ज़्यादा महिलाओं की मदद करने की भी.
अब, मुझे महसूस होता है कि हर दिन नई बाधाएँ मेरे रास्ते में खड़ी हैं, अतीत की बाधाओं से कहीं ज़्यादा मज़बूत. मनोवैज्ञानिक मदद की ज़रूरतमन्द महिलाओं और लड़कियों की संख्या बढ़ रही है.
बहुत से परिवार, अपने लिये भरपेट भोजन का प्रबन्ध करने में हर दिन जद्दोजेहद कर रहे हैं और रोज़गार या आमदनी वाले कामकाज बिल्कुल भी नहीं हैं, जिनके कारण घरों में हिंसा उछाल पर है.
जो महिलाएँ अपने परिवारों की अकेली रोज़गार कमाने वाली थीं, उनके रोज़गार ख़त्म हो गए हैं – जिससे उनका मानसिक स्वास्थ्य प्रभावित हो रहा है.
लड़कियों के लिये स्कूल बन्द हैं; उन्हें ऐसा लगता है कि उनसे उनकी उम्मीदें ही छीन ली गई हैं.
महिलाओं को हानिकारक परम्पराओं और सामाजिक नियमों से संरक्षा मुहैया कराने के लिये, समुदायों में पुरुषों के साथ सम्वाद स्थापित करना और भी कठिन साबित हो रहा है.
इन सब हालात की वजह से, परिवारों को, हर दिन की कठिनाइयों का सामना करने के लिये, हानिकारक तरीक़े अपनाने पड़ रहे हैं. उनमें छोटी उम्र में लड़कियों की शादियों और जबरन शादियों का चलन बढ़ रहा है.
मैं इस क्षेत्र में क़रीब 20 वर्षों से काम कर रही हूँ. मेरे प्रान्त में परिवार मुझे जानते हैं. महिलाएँ, अपनी मानसिक देखभाल के लिये जितनी जानकारी साझा करने की ज़रूरत होती है, उससे कहीं ज़्यादा मुझे बताने में सुरक्षित महसूस करती हैं.
मैं रोज़ उनकी बातें सुनती हूँ और वो मुझे अपने सपनों के बारे में बताती हैं – जहाँ वो काम करती थीं, करना चाहती थीं, वो कहाँ स्कूली शिक्षा हासिल करने के लिये जाना चाहती थीं.
वो सीखने की उत्सुक हैं, और वो महिलाओं के लिये ऐसे और ज़्यादा स्थानों की मांग कर रही हैं जहाँ वो मुक्त महसूस कर सकें, सीख सकें और अपने अनुभव बाँट सकें.
रोज़ सुबह, जब मैं अपने काम के लिये घर से निकलती हूँ, मैं हमेशा ख़ुद से कहती हूँ कि मैं एक काउंसलर से कहीं ज़्यादा हूँ. मैं जिन महिलाओं के साथ काम करती हूँ, मैं उनके लिये उनकी एक दर्द निवारक हूँ और मैं अपने समुदाय के लिये काम करती हूँ.
मैं महिलाओं को सदमों से उबारने में मदद कर रही हूँ, मगर उससे भी ज़्यादा, मैं उनमें वो उम्मीद फिर से भरने में मदद कर रही हूँ, जो वो खो चुकी हैं, और वो नए व ज़्यादा उज्ज्वल इरादे बनाएँ.
हर दिन, मैं महिलाओं को साक्षरता और व्यवासियक प्रशिक्षण कक्षाओं में नाम दर्ज कराने में मदद करती हूँ, ताकि उनका सीखना जारी रहे.
मेरे काम ने जो मुझे सिखाया है वो ये है कि महिलाओं को सदमों से उबरने के इस सफ़र में, आपसी मदद करने के लिये एक दूसरों की ज़रूरत है.
हमें अपने आसपास की महिलाओं और लड़कियों को, उनकी सीखने की यात्रा में मदद करना जारी रखना होगा, सीखने का यही एक मात्र रास्ता है, उनका उपचार होता रहे, वो स्वस्थ रहें, और इस ऊबड़-खाबड़ रास्ते पर उनका सफ़र जारी रखने में उनकी उम्मीद भी क़ायम रहे. हमारे स्याह दिनों को रौशन करने की शक्ति हमें से हर एक में मौजूद है.”
*इस लेख में, अफ़ग़ान महिला मानवाधिकार पैरोकार की सुरक्षा सुनिश्चित करने की ख़ातिर, नाम, स्थान, और घटनाओं का क्रम बदल दिया गया है.
अफ़ग़ानिस्तान में UN Women की कार्रवाई और तालेबान के अधिग्रहण के एक साल बाद, देश में महिलाओं की स्थिति के बारे में और अधिक जानकारी प्राप्त करने के लिये यहाँ क्लिक करें.