दुनिया के नगरों के भाग्य के साथ जुड़ा है - टिकाऊ विकास
संयुक्त राष्ट्र के वरिष्ठ पदाधिकारियों ने गुरूवार को आर्थिक व सामाजिक परिषद (ECOSOC) की एक विशेष बैठक में कहा है कि टिकाऊ विकास का भविष्य, शहरों के भाग्य के साथ जुड़ा हुआ है. साथ ही ये ज़ोर भी दिया गया है कि इस समय दुनिया की लगभग आधी से ज़्यादा आबादी, नगरीय वातावरण में रहती है और ये संख्या वर्ष 2050 तक, बढ़कर क़रीब 70 प्रतिशत होने का अनुमान है.
यूएन पर्यावास ऐसेम्बली की अध्यक्षा मार्था डेलगेडो का कहना था, “हम इस समय जो कार्रवाई करेंगे उससे...एक ऐसे नए सामाजिक एकीकरण का रास्ता निकलेगा जो समृद्धि, बदलाव, अनुकूलन, समता और मानवाधिकारों के लिये सम्मान के सिद्धान्तों पर आधारित होगा.”
उन्होंने नगरीकरण को आज के दौर का सबसे तेज़ और व्यापक चलन रेखांकित करते हुए, ऐसे सहनशील, टिकाऊ “स्मार्ट शहर” बनाए जाने की पुकार लगाई जो ज़्यादा समावेशी रूप में प्रशासित हों और भविष्य के झटकों व संकटों का सामना करने के लिये ज़्यादा बेहतर तरीक़े से तैयार हों.
नवीन नगरीय एजेण्डा
टिकाऊ नगरीकरण और नवीन नगरीय एजेण्डा के क्रियान्वयन पर गुरूवार को हुई इस विशेष बैठक की ही तरह, 28 अप्रैल को भी यूएन महासभा की एक उच्चस्तरीय बैठक होगी.
ये दोनों सत्र इस लक्ष्य के साथ आयोजित किये जा रहे हैं कि संयुक्त राष्ट्र, नवीन नगरीय एजेण्डा को लागू करने में, किस तरह देशों की मदद कर सकता है.
ये एजेण्डा दुनिया के नगरीय स्थानों के लिये एक ऐतिहासिक योजना है जो 2016 में संयुक्त राष्ट्र के आवास और टिकाऊ नगरीय विकास पर हुए सम्मेलन में पारित किया गया था.
यह एजेण्डा, नगरीय इलाक़ों के नियोजन, निर्माण, विकास, प्रबन्धन और बेहतरी के लिये, मानक और प्रतिबद्धताएँ आगे बढ़ाता है.
इसमें शहरों के लिये एक न्यायसंगत, सुरक्षित, स्वस्थ, पहुँच के भीतर और सुलभ स्थानों के रूप में ऐसा साझा नज़रिया भी पेश किया गया है जहाँ सभी निवासी बिना किसी भेदभाव रह सकें.
कोविड-19 विषमताएँ
यूएन आर्थिक व सामाजिक परिषद (ECOSOC) के अध्यक्ष कॉलेन विक्सेन केलापाइल ने गुरूवार की विशेष बैठक का आरम्भ करते हुए प्रतिभागियों से, नगरीय मुद्दों की पड़ताल, विषमता के चश्मे से करने का आग्रह किया, ख़ासतौर पर कोविड-19 महामारी द्वारा उजाकर की गई गहन विषमताओं के सन्दर्भ में.
उन्होंने कहा, “टिकाऊ विकास इस पर टिका होगा को कि हम नगरीकरण का प्रबन्धन किस तरह करते हैं.”
मौजूदा विचार-विमर्श कोविड-19 महामारी से उबरने और जलवायु संकट का सामना करने के इर्द-गिर्द केन्द्रित होने चाहिये.
कॉलेन विक्सेन केलापाइल ने ध्यान दिलाया कि वैश्विक दक्षिण में इस समय लगभग एक अरब 20 करोड़ लोग, अनौपचारिक बस्तियों व झुग्गी-झोंपड़ियों में रहते हैं. इन लोगों को बीमारियों का संक्रमण रोकने के लिये लम्बा संघर्ष करना पड़ता है, और अब उनमें कोविड-19 भी शामिल हो गया.
इस बीच वैश्विक उत्तर में यथाउपलब्ध - कल्याणकारी योजनाओं और कार्यक्रमों पर, कोविड-19 महामारी के काल में निर्भरता कई गुना बढ़ी और बहुत से लोग बेघर होने की श्रेणी में भी दाख़िल हो गए हैं.
सुधार, समावेशिता, हरित फैलाव
यूएन पर्यावास (UN Habitat) की प्रमुख मायमूनाह मोहम्मद शरीफ़ ने सहमति जताते हुए कहा कि विश्व के नगरों को, कोविड के अधिकतर सामाजिक आर्थिक प्रभाव झेलने पड़े हैं.
अलबत्ता, इन स्थितियों के परिणाम अक्सर राष्ट्रीय और स्थानीय सरकारों के दरम्यान निकट सहयोग के रूप में देखे गए हैं, जिसकी बदौलत ज़्यादा बुनर्बहाली, हरित फैलाव और सार्वजनिक स्थान के समावेशी प्रयोग में बढ़ोत्तरी हुई है.
मायमूनाह मोहम्मद शरीफ़ ने इन साझेदारियों को बुनियाद बनाने के नए अवसरों की ओर ध्यान दिलात हुए कहा कि बुनियादी सेवाएँ और ज़्यादा समान रूप में मुहैया कराई जा सकती हैं, जिनके तहत कामकाज के स्थलों पर जाने की ज़रूरत कम करके और ऊर्जा का ज़्यादा बुद्धिमान प्रयोग करके, कार्बन उत्सर्जन में कटौती में योगदान किया जा सकता है.
झुग्गी-झोंपड़ियों में सुधार करने और आवास को सुलभ बनाने के संकट, अब भी देशों के लिये उच्च प्राथमिकताओं वाली चुनौतियाँ बने हुए हैं.
प्रगति को तेज़ करना
यूएन महासभा के अध्यक्ष अब्दुल्ला शाहिद ने इस अवसर पर कहा कि नवीन नगरीय एजेण्डा प्राप्ति से, दुनिया भर में, मानव कल्याण और सुरक्षा पर हमारी प्रगति में तेज़ी आएगी.
उन्होंने अन्य वक्ताओं की इस बात से सहमति व्यक्त की कि नगरों का अगर उचित प्रबन्धन किया जाए तो, वो इनसानों के सर्वाधिक टिकाऊ आवास वातावरणों में प्रमुख हैं.
जलवायु मोर्चे पर भी, इस एजेण्डा का पालन करने से, वैश्विक तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने में मदद मिलेगी.