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बुज़ुर्गों के अधिकारों की रक्षा, पहले से कहीं ज़्यादा ज़रूरी

दीर्घकालीन देखभाल प्रणालियों से, बुज़ुर्ग जन को समुचित सहारा और उनके बुनियादी अधिकारों के साथ स्वतंत्र रूप से जीवन जीने में मदद करती हैं.
© Unsplash/Raychan
दीर्घकालीन देखभाल प्रणालियों से, बुज़ुर्ग जन को समुचित सहारा और उनके बुनियादी अधिकारों के साथ स्वतंत्र रूप से जीवन जीने में मदद करती हैं.

बुज़ुर्गों के अधिकारों की रक्षा, पहले से कहीं ज़्यादा ज़रूरी

मानवाधिकार

संयुक्त राष्ट्र की मानवाधिकार प्रमुख मिशेल बाशेलेट ने कहा है कि आज के समय में, वृद्धजन के बुनियादी अधिकारों की हिफ़ाज़त सुनिश्चित करने की ज़रूरत पहले से कहीं ज़्यादा है, मगर मौजूदा क़ानूनी सुरक्षाएँ, बुज़ुर्गों को दरअसल “अदृश्य” बनाती हैं.

मिशेल बाशेलेट न्यूयॉर्क स्थित यूएन मुख्यालय में सोमवार को आयुवृद्धि पर एक कार्यकारी समूह की बैठक को सम्बोधित कर रही थीं, जिसने अपना कामकाज 2011 में शुरू किया था.

उन्होंने कहा कि आज वृद्धजन को पहले से कहीं ज़्यादा मज़बूत संरक्षण की आवश्यकता है ताकि वो अपने मानवाधिकारों का पूर्ण आनन्द उठा सकें.

“मगर वास्तविकता ये है कि अन्तरराष्ट्रीय क़ानूनी ढाँचे अब भी वृद्धजन को अदृश्य बनाते हैं जबकि उन ढाँचों को किसी भेदभाव के बिना ही हर एक व्यक्ति को हिफ़ाज़त मुहैया करानी चाहिये.”

आयुवृद्धि की दुनिया

मिशेल बाशेलेट ने कहा कि वर्ष 2050 तक 65 वर्ष और उससे ज़्यादा उम्र के व्यक्तियों की संख्या आज की तुलना में दोगुनी होगी और वो 15 से 24 वर्ष की उम्र के लोगों की संख्या से ज़्यादा होगी.

उन्होंने कहा, “हमें ख़ुद से पूछना चाहिये: उस समय तक हम किस तरह की दुनिया में रहना चाहते हैं. मैं एक ऐसी दुनिया की कल्पना करना चाहती हूँ जहाँ बुज़ुर्गों को हर स्थान पर एक गरिमापूर्ण जीवन, आर्थिक सुरक्षा के साथ जीने की गारण्टी हो.”

बोसनिया हरज़ेगोविना की राजधानी सरायेवो में एक बुज़ुर्ग व्यक्ति, ट्रैम की प्रतीक्षा करते हुए.
Photo: World Bank/Flore de Préneuf
बोसनिया हरज़ेगोविना की राजधानी सरायेवो में एक बुज़ुर्ग व्यक्ति, ट्रैम की प्रतीक्षा करते हुए.

“एक ऐसी दुनिया जहाँ वो अपना कामकाज जारी रख सकें और अपनी इच्छा व सामर्थ्य अनुसार, समाज में अपना योगदान कर सकें. जहाँ वो स्वतंत्र तरीक़े से जीवन जी सकें और अपने ख़ुद के निर्णय ले सकें.”

मिशेल बाशेलेट ने बुज़ुर्गों के साथ होने वाले दुर्व्यवहार, हिंसा और उनकी अनदेखी का ख़ात्मा करने के लिये कार्रवाई किये जाने और ऐसा माहौल बनाने की पुकार लगाई जहाँ उन्हें गुणवत्ता वाली स्वास्थ्य सेवाएँ आसानी से उपलब्ध हों जिनमें दीर्घकालीन देखभाल भी शामिल है.

उन्होंने कार्यकारी समूह की बैठक को सम्बोधित करते हुए कहा कि इस तरह के भविष्य में, बुज़ुर्गजन टिकाऊ विकास में सक्रिय भागीदारी और योगदान करने के योग्य हों, और आवश्यकता पड़ने पर उन्हें अपने मानवाधिकार उल्लंघन के मामलों में न्याय उपलब्ध हो.

दूरस्थ दृष्टि

यूएन मानवाधिकार उच्चायुक्त ने आगाह करते हुए कहा कि इस समय तो, वृद्ध पीढ़ी के लिये एक बेहतर भविष्य का ये सपना वास्तविकता से बहुत दूर है. उन्होंने ध्यान दिलाया कि कोविड-19 के कारण मौत का शिकार होने वालों में ज़्यादा संख्या बुज़ुर्गजन की ही है.

उन्होंने कहा कि स्वास्थ्य महामारी ने ये उजागर कर दिया है कि आयु के आधार पर भेदभाव किस तरह से निर्धनता उत्पन्न करता और बढ़ाता है, और ये किस तरह मानवाधिकार हनन के जोखिम भी बढ़ाता है.

“बुज़ुर्गजन को ऐसे समय में समाज के हाशिये पर छोड़ दिया गया है जबकि उन्हें सहायता व सहारे की सबसे ज़्यादा ज़रूरत है.”

जलवायु परिवर्तन ने भी उन्हें ज़्यादा स्वास्थ्य चुनौतियों का सामना करने, और खाद्य सामग्री, भूमि, पानी व स्वच्छता तक पहुँच कम होने के जोखिम बढ़ा दिये हैं. साथ ही, वृद्धावस्था में आजीविका के साधनों के लिये भी जोखिम उत्पन्न कर दिया है.