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बुज़ुर्गों की बढ़ती आबादी की ज़रूरतें पूरी करना ज़रूरी

111 वर्षीय लायला एक कुर्दिश शरणार्थी हैं जो 2017 में सीरिया से ग्रीस पहुँचीं और उन्हें वहाँ असायलम यानी रहने की इजाज़त मिल गई. लेकिन लायला की ख़्वाहिश जर्मनी में रहने वाले अपने नाती-पोतों से मिलने की रही है.
UNHCR/Markel Redondo
111 वर्षीय लायला एक कुर्दिश शरणार्थी हैं जो 2017 में सीरिया से ग्रीस पहुँचीं और उन्हें वहाँ असायलम यानी रहने की इजाज़त मिल गई. लेकिन लायला की ख़्वाहिश जर्मनी में रहने वाले अपने नाती-पोतों से मिलने की रही है.

बुज़ुर्गों की बढ़ती आबादी की ज़रूरतें पूरी करना ज़रूरी

स्वास्थ्य

विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि दक्षिण पूर्वी एशियाई क्षेत्र में बुज़ुर्ग आबादी बढ़ रही है. इस क्षेत्र में मुख्य रूप से 11 देश शामिल हैं जिनके नाम हैं – भारत, नेपाल, बांग्लादेश, श्रीलंका, इंडोनेशिया, म्यांमार, मालदीव, भूटान, थाईलैंड, उत्तर कोरिया (डीपीआरके) और तिमोर लेस्टे.

इस क्षेत्र के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन की क्षेत्रीय निदेशक डॉक्टर पूनम खेत्रपाल सिंह द्वारा बुज़ुर्गों के अंतरराष्ट्रीय दिवस के मौक़े पर जारी एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है कि साल 2010 में इस क्षेत्र की कुल आबादी की 8 फ़ीसदी संख्या बुज़ुर्ग थी. बुज़ुर्गों का अंतरराष्ट्रीय दिवस 30 सितंबर को मनाया जाता है.

लेकिन 2017 में आते-आते बुज़ुर्गों की संख्या बढ़कर 9.8 प्रतिशत हो गई है. ये संख्या बढ़ने के अनुमान व्यक्त किए गए हैं.

वर्ष 2030 तक इस क्षेत्र में बुज़ुर्ग आबादी की संख्या कुल जनसंख्या का 13.7 प्रतिशत हो जाने का अनुमान है.

ये संख्या लगभग 28 करोड़ 90 लाख होगी. वर्ष 2050 तक बुज़ुर्गों की जनसंख्या बढ़कर 20.3 प्रतिशत होने का अनुमान है.

वैसे तो इस क्षेत्र में बुज़ुर्गों की संख्या वैश्विक स्तर से कम रहेगी लेकिन बुज़ुर्गों की संख्या में इस बढ़ोत्तरी से इस क्षेत्र में जनसंख्या के आकार में तेज़ी से बदलाव होने का अनुमान है.

प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है कि सभी बुज़ुर्गों को स्वास्थ्य सेवाओं का समुचित लाभ दिलाने के लिए ठोस कार्रवाई करने की सख़्त ज़रूरत है और उन्हें ज़रूरत पड़ने पर बिना किसी वित्तीय बाधा के स्वास्थ्य सेवाएं मिलनी चाहिए.

बुज़ुर्गों की स्वास्थ्य ज़रूरतें और चुनौतियाँ बहुत भिन्न होती हैं.

ग़ैर-संचारी बीमारियों में बढ़ोत्तरी होने के अलावा बुज़ुर्गों में मानसिक स्वास्थ्य (डिमेंशिया सहित) और शारीरिक क्षमता कम हो जाने की वजह से अयोग्यता व घायल होने के ज़्यादा मामले होने की संभावना होती है.

जैसे-जैसे बुज़ुर्गों की संख्या बढ़ रही है, उनकी स्वास्थ्य ज़रूरतों को पूरा करने की मांग भी बढ़ रही है.

इनमें बुज़ुर्गों के स्वास्थ्य की निगरानी, सटीक जाँच-पड़ताल और सटीक इलाज की माँग, ज़रूरतों के साथ इन पर खरा उतरने वाली स्वास्थ्य सेवाओं की ज़रूरतें भी बढ़ रही हैं.

ख़ासतौर से बढ़ते शहरीकरण व परिवारों के ढाँचे में आ रहे बदलावों की वजह से ये चलन बढ़ने की संभावना है.

क्षेत्र में यूनिवर्सल हैल्थ कवरेज (यूएचसी) के लक्ष्य हासिल करने के लिए बड़े पैमाने पर प्रयास किए जा रहे हैं. यूएचसी इस क्षेत्र में आठ प्रमुख कार्यक्रमों में से एक है और बुज़ुर्ग लोगों के लिए स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता तेज़ी से बढ़ाए जाने की ज़रूरत है.

प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है कि पहली प्राथमिकता तो ये होनी चाहिए कि बुज़ुर्ग लोगों की स्वास्थ्य ज़रूरतों को पूरा करने के लिए प्राइमरी स्वास्थ्य सेवाएँ एकीकृत तरीक़े से मुस्तैद हों. इसके लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन का एक विशेष कार्यक्रम चल रहा है जिसका नाम है इंटीग्रेटेड केयर फॉर ओल्डर पीपुल (ICOPE). इस कार्यक्रम के ट्रेनिंग मैनुअल में दिखाया गया है कि प्राइमरी स्वास्थ्य सेवाएँ बुज़ुर्गों से संबंधित बीमारियों की किस तरह सटीक जाँच-पड़ताल करके ठोस इलाज सुनिश्चित किया जा सकता है.

 

दूसरी बात, जब बुज़ुर्ग लोग गिर जाने, ग़ैर-संचारी बीमारियों, डिमेंशिया या पोषण संबंधी जटिताओं के कारण स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करते हैं तो विशेषीकृत स्वास्थ्य सेवाओं की ज़रूरत और उपलब्धता बहुत प्रासंगिक हो जाती है. मुख्य ज़ोर तो इसी पर होना चाहिए कि बुज़ुर्ग लोग अपने ही घरों में स्वतंत्र और स्वस्थ जीवन जी सकें, मगर उनकी दार्घकालीन चिकित्सा देखभाल भी उनके घर के नज़दीक ही होनी चाहिए और वो बिना किसी मुश्किल के ही उन्हें उपलब्ध भी होनी चाहिए.

और अंत में ये ख़ास बात कि वृद्धावस्था के दौरान बुज़ुर्गों का स्वास्थ्य बेहतर बनाए रखने के लिए पूरे क्षेत्र में जागरूकता अभियान चलाए जाने चाहिए. लोग जैसे-जैसे वृद्धावस्था में आगे बढ़ते जाते हैं उन्हें ये याद दिलाते रहना चाहिए कि समाज में अब भी उनका योगदान जारी रह सकता है. साथ ही वृद्धावस्था के अनुकूल माहौल बनाने के लिए बुनियादी ढाँचा विकसित करना भी ज़रूरी है और इसके लिए समुचित वित्तीय संसाधन मुहैया कराना भी ज़रूरी है.