विकास वित्त में 'निवारण के अधिकार' को शामिल करना ज़रूरी
संयुक्त राष्ट्र की मानवाधिकार उच्चायुक्त मिशेल बाशेलेट ने बुधवार को, वाशिंगटन डीसी में, “विकास वित्त में निवारण” नामक रिपोर्ट जारी करते हुए कहा है कि उपचार के मानवाधिकार सिद्धान्त और वास्तविक स्थिति के बीच, विकास वित्त के सन्दर्भ में, अक्सर व्यापक अन्तराल देखा गया है.
यह महत्वपूर्ण रिपोर्ट विकास वित्त संस्थानों को ये सुनिश्चित करने के लिये दिशा-निर्देश देती है कि वो जिन परियोजनाओं के लिये धन मुहैया कराते हैं, वो लोगों को नुक़सान ना पहुँचाएँ, और किन्हीं सम्भावित पीड़ितों को, प्रभावशाली निवारण भी तत्परता से उपलब्ध हो.
New UN Human Rights Office report gives guidance to development finance institutions to ensure the projects they finance do not harm people, and that effective remedy is readily available for any potential victims.👉 https://t.co/a0dmG6FeFh pic.twitter.com/CPi5cHU2AL
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मिशेल बाशेलेट ने ध्यान दिलाया कि विकास वित्त संस्थान, तमाम परिणामों के लिये ज़िम्मेदार नहीं हैं और ना ही हो सकते हैं, मगर उनकी अपनी प्रक्रियाओं में, जोखिम का आकलन करने, पूर्ण सतर्कता बरतने और विपरीत परिणामों का सामना करने के लिये प्रक्रियाएँ मौजूद होती हैं.
उन्होंने कहा कि एक तरफ़ तो ग्राहक, परियोजना क्रियान्वयन के लिये ज़िम्मेदार हैं और देश, अन्तरराष्ट्रीय मानवाधिकार क़ानून के मुख्य लेखक व अभिभाषक हैं, तो सभी पक्ष, मानवाधिकारों का सम्मान करने के लिये बाध्य हैं... इन सभी को अपनी-अपनी ज़िम्मेदारियों के अनुरूप, योगदान करना होगा, और... निवारण पारिस्थितिकी को मज़बूत करने में अपनी-अपनी भूमिका निभानी होगी.
मिशेल बाशेलेट ने कहा, “सीधे शब्दों में कहें तो: अगर नुक़सान में आपका योगदान है तो, आप ही निवारण में भी योगदान करें.”
निवारण पारिस्थितिकी
यूएन मानवाधिकार प्रमुख ने कहा कि वैसे तो दैनिक विकास कार्य में मानवाधिकारों का उल्लंघन नहीं होता है, मगर, कभी-कभी ऐसा भी होता है, जिसमें लोगों को जबरन उनके स्थानों से हटाया जाना, बाल मज़दूरी, और लिंग आधारित हिंसा के मामले भी शामिल होते हैं.
उन्होंने कहा, “पर्यावरण और मानवाधिकार पैरोकारों पर हमलों में बढ़ोत्तरी हो रही है. बुरी नीतियों से, आर्थिक व सामाजिक अधिकारों का ह्रास हो सकता है. डिजिटल टैक्नॉलॉजी जैसे नए जोखिम उजागर हो रहे हैं.”
मिशेल बाशेलेट ने इस बैठक में शिरकत करने वालों को बताया कि विकास वित्त संस्थानों और अग्रणी बहुपक्षीय विकास बैंकों ने, सततता व जवाबदेही पर, लगातार नए वैश्विक मानक स्थापित किये हैं.
“अब निवारण के मुद्दे पर उनके नेतृत्व, और उदाहरण पेश करने की उनकी शक्ति की, अभूतपूर्व ज़रूरत है ताकि लोगों की ज़िन्दगियों में वास्तविक परिणाम मिल सकें.”
निजी अनुभव व उदाहरण
यूएन मानवाधिकार उच्चायुक्त के लिये, आर्थिक व सामाजिक विषमताओं का निवारण, एक “बेहद निजी” मामला है.
वो बताती हैं, “1973 में, जब मेरी उम्र 22 वर्ष थी, एक सैन्य तानाशाही ने मेरे अपने देश चिले में, सत्ता पर क़ब्ज़ा कर लिया. मेरे पिता ईमानदारी और सच्चाई वाले एक सैनिक जनरल थे: उन्हें बन्दी बना लिया गया और लगभग हर दिन उन्हें प्रताड़ित किया गया, महीनों तक. उस उत्पीड़न के कारण उनकी मौत हो गई.”
“मेरी माँ और मुझे भी कई सप्ताहों तक बन्दी बनाकर रखा गया, और हमारे बहुत से मित्रों का भी अपहरण किया गया, वो लापता हो गए, और कुछ मारे भी गए. 1975 में, मुझे अपना देश छोड़ने और शरणार्थी बनने के लिये मजबूर होना पड़ा.”
मानवाधिकार उच्चायुक्त ने आगे बताया कि 28 वर्ष की उम्र होने पर, वो अपने देश चिले में वापिस लौट सकीं, जहाँ उन्होंने लोकतंत्र को बहाल करने के लिये सक्रिय विभिन्न संगठनों के साथ काम किया.
‘क्षतिपूर्ति की ताक़त’
उन्होंने कहा, “मैंने ख़ुद को, सुलह प्रक्रिया, तथ्यों की पड़ताल और सत्य कहने के लिये, और संवाद के लिये स्थान को व्यापक करने के लिये समर्पित कर दिया, ताकि अन्यायों की पहचान हो सके और उन्हें दूर किया जा सके.”
मिशेल बाशेलेट ने एक फ़िजिशियन के रूप में, एक ऐसे संगठन के साथ काम किया जो ऐसे बच्चों की सामाजिक ज़रूरतें पूरी करता था, जिनके अभिभावक और माता-पिता, तानाशाही के शिकार हुए थे.
उन्होंने बताया, “इस अनुभव ने ना केवल अनेक पीढ़ियों पर मानवाधिकार उल्लंघन के प्रभाव को दिखाया बल्कि क्षतिपूर्ति की ताक़त को भी उजागर किया, जिसने भुक्तभोगियों, परिवारों और समुदायों के ज़ख़्म भरने में मदद की, और जो सम्मान के साथ, एक व्यापक समाज का हिस्सा बन सके.”