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श्रीलंका: नई सरकार से जवाबदेही व संस्थागत सुधारों पर आगे बढ़ने का आग्रह

श्रीलंका में गम्भीर आर्थिक संकट के कारण, खाना पकाने, परिवहन और उद्योगों के लिये ईंधन की उपलब्धता पर असर पड़ा है.
World Bank/ Lakshman Nadaraja
श्रीलंका में गम्भीर आर्थिक संकट के कारण, खाना पकाने, परिवहन और उद्योगों के लिये ईंधन की उपलब्धता पर असर पड़ा है.

श्रीलंका: नई सरकार से जवाबदेही व संस्थागत सुधारों पर आगे बढ़ने का आग्रह

मानवाधिकार

संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार उच्चायुक्त कार्यालय - OHCHR ने मंगलवार को प्रकाशित एक रिपोर्ट में कहा है कि श्रीलंका एक कठिन मोड़ पर है और नई सरकार को जवाबदेही के साथ-साथ संस्थागत व सुरक्षा क्षेत्र में सुधारों के क्षेत्रों में प्रगति होते हुए दिखानी होगी.

श्रीलंका इस समय गम्भीर आर्थिक संकट की जकड़ में है जिसने तमाम समुदायों के मानवाधिकारों को गम्भीर रूप से प्रभावित किया है.

रिपोर्ट में कहा गया है कि इन हालात ने गहन सुधारों और जवाबदेही की मांगों में उछाल ला दिया है, जिससे अधिकारियों को एक बिल्कुल नया रास्ता बनाने का अवसर भी मुहैया कराया है. 

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रिपोर्ट में मानवाधिकारों और सुलह--सफ़ाई को आगे बढ़ाने के लिये राष्ट्रीय स्तर पर बातचीत आयोजित किये जाने का भी आहवान किया गया है.

बुनियादी बदलावों की ज़रूरत

रिपोर्ट में ध्यान दिलाया गया है कि अलबत्ता टिकाऊ बेहतरी के लिये, उन बुनियादी कारकों की पहचान करना और उनके समाधान निकालना बहुत अहम होगा, जिनके कारण ये संकट उत्पन्न हुआ.

उन कारकों में अतीत और वर्तमान के मानवाधिकार उल्लंघन, आर्थिक अपराधों और गहराई से जड़ जमाए हुए भ्रष्टाचार के मामलों में दण्डमुक्ति का होना भी शामिल है.

रिपोर्ट कहती है कि मौजूदा चुनौतियों का सामना करके उनके हल निकालने, और अतीत के मानवाधिकार उल्लंघन मामलों की पुनरावृत्ति नहीं होने देने के लिये, बुनियादी बदरावों की ज़रूरत होगी.

रिपोर्ट में सरकार से तत्काल कार्रवाई करने की पुकार भी लगाई गई है जिसके तहत सरकार से कठोर सुरक्षा क़ानूनों व शान्तपूर्ण प्रदर्शनों के दमन पर निर्भरता को कम करने, और सैन्यकरण की तरफ़ हुए झुकाव को उलट देने का भी आग्रह किया गया है.

साथ ही, सरकारी अधिकारियों को सुरक्षा क्षेत्र में सुधार व दण्डमुक्ति का ख़ात्मा करने पर, अपना नया संकल्प दिखाना चाहिये.

सरकार का कड़ा रुख़

रिपोर्ट कहती है कि वैसे तो सुरक्षा बलों ने हाल के समय में व्यापक जन प्रदर्शनों के सिलसिले में, काफ़ी संयम दिखाया है, मगर सरकार ने कुछ छात्रों को, आतंकवाद निरोधक अधिनियम के अन्तर्गत गिरफ़्तार करके और शान्तिपूर्ण प्रदर्शनों का हिंसक दमन करके, एक कड़ा रुख़ दिखाया है.

इनके अतिरिक्त, देश के उत्तर और पूर्वी क्षेत्रों में सेना की भारी तैनाती और लोगों की निगरानी करने का चलन अब भी जारी है.

यूएन मानवाधिकार उच्चायुक्त कार्यालय ने नई सरकार से “एक परिवर्तनकारी न्याय व जवाबदेही पर एक वृहद और पीड़ित केन्द्रित रणनीति” फिर से शुरू करने का आग्रह किया है.

अन्य देशों से अपील

रिपोर्ट में कहा गया है, “श्रीलंका अपनी लगातार सरकारों के ज़रिये, मानवाधिकारों के व्यापक उल्लंघन व दुर्व्यवहार के ज़िम्मेदारों को प्रभावशाली न्यायिक प्रक्रिया के दायरे में लाने और पीड़ितों को सत्य, न्याय और मुआवज़ा मुहैया कराने में लगातार नाकाम रहा है.” 

रिपोर्ट के अनुसार, उसके उलट देश की सरकारों ने जवाबदेही के लिये राजनैतिक बाधाएँ खड़ी की हैं, और कथित युद्धापराधों में लिप्त कुछ सैन्य अधिकारियों को सरकार में उच्च पदों पर प्रोन्नत व शामिल किया है.

रिपोर्ट में राष्ट्रीय स्तर पर जवाबदेही की दिशा में प्रगति के अभाव में, अन्य देशों से जवाबदेही प्रयासों में सहयोग करने का आग्रह किया गया है.

इनमें श्रीलंका में अंजाम दिये गए अपराधों की जाँच करने और उन पर अन्तरराष्ट्रीय क़ानून के न्यायिक कार्रवाई करने के लिये, क्षेत्र के बाहर और सार्वभौमिक न्याय क्षेत्र के उपलब्ध अवसरों का प्रयोग किया जाना भी शामिल है.