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टिकाऊ विकास से जुड़ा है आबादी का सवाल

मैक्सिको सिटी का एक दृश्य.
UNDP Mexico/Andrea Egan
मैक्सिको सिटी का एक दृश्य.

टिकाऊ विकास से जुड़ा है आबादी का सवाल

एसडीजी

टिकाऊ विकास लक्ष्यों को प्रभावी ढंग से हासिल करने में जनसंख्या संबंधी रूझान अहम भूमिका अदा कर सकते हैं. इसी से जुड़े विविध मुद्दों पर चर्चा के लिए सोमवार को न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में 'कमीशन ऑन पॉपुलेशन एंड डवेलपमेंट' या 'जनसंख्या और विकास पर आयोग' का वार्षिक सत्र शुरू हुआ है. 

इस साल आयोग का वार्षिक सत्र 25 वर्ष पहले मिस्र की राजधानी काहिरा में जनसंख्या और विकास पर हुए अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन (ICPD) के बाद अब तक हुई प्रगति की समीक्षा करने का भी एक अवसर है. 1994 के सम्मेलन में एक कार्ययोजना को तैयार किया गया जिसमें व्यक्तिगत मानवाधिकार, क्षमता और गरिमा को टिकाऊ विकास की नींव के रूप में पहचाना गया. 

संयुक्त राष्ट्र ने इस कार्यक्रम को 'क्रांतिकारी' बताया था क्योंकि इसके ज़रिए ही मानवाधिकारों, जनसंख्या, यौन एवं प्रजनन संबंधी स्वास्थ्य, लैंगिक समानता और टिकाऊ विकास जैसे मुद्दों पर आम सहमति की तलाश में विविध मतों को एक साथ लाने में सफलता मिली. 

इस साल के सत्र में आयोग अपनी कार्ययोजना को लागू करने में मिली सफलता का मूल्यांकन करेगा साथ ही इस संबंध में जो कमियां रह गई हैं उनकी भी समीक्षा होगी. 2030 के टिकाऊ विकास एजेंडा को हासिल करने के नज़रिए से लक्ष्यों और वास्तविकताओं के बीच की खाई को पाटे जाने को संयुक्त राष्ट्र ने बेहद अहम करार दिया है.

आयोग के उद्घाटन सत्र के दौरान अपने संबोधन में संयुक्त राष्ट्र की उपमहासचिव अमीना मोहम्मद ने चेतावनी भरे अंदाज़ में कहा कि टिकाऊ विकास लक्ष्यों के लिए हो रहे प्रयास जनसंख्या में वृद्धि के हिसाब से नहीं हो रहे हैं. इस विषय में उन्होंने सबसे कम विकसित देशों में ग़रीबी के आंकड़ों, बाल विवाह और शहर की मलिन बस्तियों में रहने के लिए मजबूर लोगों का ज़िक्र किया.

"प्रभावित लोगों का प्रतिशत भले ही घट रहा हो लेकिन उनकी संख्या अब भी बढ़ रही है. यह समय दुनिया को बढ़ी हुई महत्वाकांक्षा और एसडीजी लागू करने की तत्काल आवश्यकता को दर्शाने का है, जो काहिरा कार्ययोजना के अनुरूप हो."

यूएन उपमहासचिव ने टिकाऊ विकास लक्ष्यों के अमलीकरण में लैंगिक समानता और महिलाओं व लड़कियों को बदलाव के प्रतिनिधि के रूप में देखने की अहमियत पर बल दिया. उन्हें ऐसे मामलों में निर्णय लेने का अधिकार होना चाहिए जिससे उनका शरीर या जीवन प्रभावित होता होता हो. 

उद्घाटन सत्र को फ़िल्म और टीवी अभिनेत्री और संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (UNFPA) की सद्भावना दूत एशले जूड ने भी संबोधित किया. उन्होंने कहा कि काहिरा में हुए सम्मेलन ने दुनिया में विकास का भविष्य मज़बूती से महिलाओं और लड़कियों के हाथों में सौंप दिया था.  25 साल के अनुभव ने इस सहमति को और मज़बूती प्रदान की है और इस मिशन की अहमियत को दर्शाया है. 

प्रगति का असमान स्वरूप

संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ें दिखाते हैं कि जनसंख्या से संबंधित कई विषयों पर प्रगति हुई हैं लेकिन इस मामले में क्षेत्रीय असमानताएं भी हैं. उदाहरण के तौर पर, सभी क्षेत्रों में लोग अब लंबा जीवन जी पा रहे हैं. वैश्विक स्तर पर औसत जीवन प्रत्याशा 65 साल से बढ़ कर 72 साल हो चुकी है लेकिन सबसे विकसित देशों और सबसे कम विकसित देशों के नागरिकों की जीवन प्रत्याशा में 15 साल का अंतर है. 

बाल मृत्यु दर में भी प्रगति हुई है और पिछले 25 सालों में पचास फ़ीसदी की कमीआई है लेकिन यहां भी क्षेत्रीय विषमता दिखाई देती है. सब-सहारा अफ़्रीका में पैदा होने वाले हर 1,000 बच्चों में 180 मौतें होती थी लेकिन अब यह घट कर 78 हो गई हैं. फिर भी विकसित देशों की तुलना में शिशु मृत्यु दर 15 गुना ज़्यादा है. 

गर्भनिरोध के आधुनिक तरीक़ों तक ऐसी 78 फ़ीसदी महिलाओं की पहुंच है जो शादीशुदा हैं या अपने संगी के साथ रहती हैं, 1994 में यह आंकड़ा 72 प्रतिशत था. लेकिन सब सहारा अफ़्रीका और दक्षिणी प्रशांत महासागर स्थित द्वीपीय के 44 देशों में यह आंकड़ा घटकर 50 फ़ीसदी रह जाता है. 

अगले दो दशकों में 90 फ़ीसदी से ज़्यादा शहरीकरण एशिया और अफ़्रीका में होने का अनुमान है. शहरी इलाक़ों में रहने वाली दुनिया की कुल आबादी का हिस्सा मौजूदा समय में 56 फ़ीसदी है जो 2050 तक बढ़कर 68 प्रतिशत हो जाएगा. 

कमीशन जनसंख्या से संबंधित उन सभी विषयों पर ध्यान केंद्रित करेगा जो टिकाऊ विकास में योगदान देते हैं. इनमें यौन और प्रजनन संबंधी सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं को सुलभ बनाने, शिक्षा की गुणवत्ता बेहतर बनाने और उस तक पहुंच बढ़ाने और खपत और उत्पादन के पैटर्न को टिकाऊ बनाना शामिल है.