भारत: कश्मीरी मानवाधिकार कार्यकर्ता की तत्काल रिहाई की माँग
संयुक्त राष्ट्र के स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञों ने भारत सरकार से, कश्मीरी मानवाधिकार कार्यकर्ता ख़ुर्रम परवेज़ को निशाना ना बनाये जाने का आग्रह करते हुए, उन्हें जल्द से जल्द हिरासत से रिहा किये जाने की माँग की है.
बताया गया है कि ख़ुर्रम परवेज़ ने भारत प्रशासित जम्मू और कश्मीर में मानवाधिकार उल्लंघन के गम्भीर मामलों का दस्तावेज़ीकरण किया है.
इनमें व्यक्तियों को जबरन ग़ायब कर दिये जाने और ग़ैरक़ानूनी ढँग से जान से मार दिये जाने के मामले हैं.
#India: UN experts urge authorities to stop targeting Kashmiri rights defender #KhurramParvez and release him immediately."We regret that the Government continues to use #UAPA to restrict fundamental freedoms in Indian-administered Jammu & Kashmir".👉 https://t.co/yd9zH7BTEm pic.twitter.com/T5VRJW0Okp
UN_SPExperts
मानवाधिकार विशेषज्ञों के मुताबिक़, संयुक्त राष्ट्र के साथ जानकारी साझा करने के लिये, परवेज़ को बदले की भावना से की गई कार्रवाई का सामना करना पड़ा है.
भारत की राष्ट्रीय जाँच एजेंसी ने नवम्बर महीने में ख़ुर्रम परवेज़ को साज़िश रचने और आतंकवाद के आरोप में गिरफ़्तार किया था.
स्वतंत्र विशेषज्ञों ने चिन्ता जताई कि गिरफ़्तारी के एक महीने बाद भी, ख़ुर्रम परवेज़ को उनकी आज़ादी से वंचित रखा गया है.
उन्होंने कहा कि ये कार्रवाई, मानवाधिकारों के रक्षक के तौर पर उनकी जायज़ गतिविधियों का बदला लिये जाने का मामला प्रतीत होती है. चूँकि उन्होंने हनन के मामलों के विरुद्ध आवाज़ उठाई है.
विशेष रैपोर्टेयर ने अतीत में ऐसी घटनाओं के सन्दर्भ को ध्यान में रखते हुए, भारत सरकार से ख़ुर्रम परवेज़ को तत्काल रिहा किये जाने और आज़ादी व सुरक्षा के उनके अधिकार सुनिश्चित करने का आग्रह किया है.
उन्होंने कहा कि परवेज़ को दिल्ली के रोहिणी जेल परिसर में रखा गया है.
विशेषज्ञों के अनुसार, इस जेल में क्षमता से अधिक क़ैदियों को रखा गया है और स्वच्छता के नज़रिये से भी हालात ख़राब हैं.
इसके मद्देनज़र, उनके स्वास्थ्य और सुरक्षा के लिये तात्कालिक रूप से जोखिम है, विशेष रूप से कोविड-19 महामारी के फैलाव के दौरान.
‘बढ़ती गिरफ़्तारियों पर चिन्ता’
ख़ुर्रम परवेज़ को 22 नवम्बर को आतंकवाद-निरोधक क़ानून (Unlawful Activities Prevention Act / UAPA) के तहत गिरफ़्तार किया गया था.
यूएन विशेषज्ञों ने ध्यान दिलाया कि जुलाई 2019 में इस क़ानून में संशोधन किया गया, जिसके बाद अब किसी भी व्यक्ति को एक आतंकवादी के रूप में चिन्हित किया जा सकता है.
और ऐसा करने के लिये किसी प्रतिबन्धित गुट के साथ सम्बन्ध होने या सदस्यता स्थापित करने की ज़रूरत भी नहीं रह गई है.
उन्होंने कहा कि आतंकवाद-विरोधी क़ानून के अन्तर्गत, सरकारी एजेंसियों के अधिकारों का विस्तार हुआ है, जिसके परिणामस्वरूप, देश भर में गिरफ़्तारियों की संख्या में चिन्ताजनक उछाल आया है.
विशेष रूप से भारत-प्रशासित जम्मू और कश्मीर में.
“हमें खेद है कि सरकार, UAPA का इस्तेमाल, भारत-प्रशासित जम्मू और कश्मीर के साथ-साथ देश के अन्य हिस्सों में, नागरिक समाज, मीडिया और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की बुनियादी आज़ादियों पर अंकुश लगाने के लिये दबाव के तौर पर कर रही है.”
“इसलिये, हम सरकार से, इस विधान को मानवाधिकार क़ानूनों के तहत, भारत के अन्तरराष्ट्रीय क़ानूनी दायित्वों के अनुरूप बनाये जाने का फिर से आग्रह करते हैं.”
ख़ुर्रम परवेज़ को 30 नवम्बर और 4 दिसम्बर 2021 को दिल्ली में अदालत के सामने पेश किया गया, जब यह तय हुआ कि उन्हें राष्ट्रीय जाँच एजेंसी की हिरासत से न्यायिक हिरासत में भेजा जाएगा.
23 दिसम्बर 2021 को, एजेंसी की विशेष अदालत में उनकी हिरासत की अवधि, फिर से बढ़ाने पर सुनवाई होगी.
दोषी पाये जाने पर, ख़ुर्रम परवेज़ को 14 साल कारावास की सज़ा या मृत्युदण्ड तक दिया जा सकता है.
मानवाधिकार विशेषज्ञ
इस वक्तव्य को जारी करने वाले मानवाधिकार विशेषज्ञों की सूची यहाँ देखी जा सकती है.
सभी स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञ, जिनीवा में यूएन मानवाधिकार परिषद द्वारा नियुक्त किये जाते हैं, और वो अपनी निजी हैसियत में, स्वैच्छिक आधार पर काम करते हैं.
ये मानवाधिकार विशेषज्ञ संयुक्त राष्ट्र के कर्मचारी नहीं होते हैं और ना ही उन्हें उनके काम के लिये, संयुक्त राष्ट्र से कोई वेतन मिलता है.