डीपीआर कोरिया: जबरन गुमशुदगी के पीड़ितों को सच जानने, न्याय पाने का अधिकार
संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त कार्यालय (OHCHR) की एक नई रिपोर्ट में कोरिया लोकतांत्रिक जन गणराज्य (डीपीआरके) में जबरन गुमशुदगी के और अगवा किए गए पीड़ितों की व्यथा को बयां किया गया है. रिपोर्ट में सच्चाई, न्याय, हर्जाने और ऐसा फिर ना होने देने की गारंटी के लिए नए सिरे से प्रयासों की पुकार लगाई गई है.
यूएन मानवाधिकार कार्यालय द्वारा मंगलवार को जारी इस रिपोर्ट में वर्ष 1950 से अब तक जबरन गुमशुदगी और लोगों को अगवा किए जाने के मामलों पर जानकारी दी गई है.
Lives ripped apart, wounds that do not heal, & a lifetime spent in search for truth.
A UN Human Rights report examines the crimes of enforced disappearances & abductions carried out over several decades by the #DPRK, through personal stories of victims. https://t.co/1wsuBQgmHu https://t.co/JfpLHyXg4s
UNHumanRights
मानवाधिकार उच्चायुक्त वोल्कर टर्क ने कहा कि लगभग 80 पीड़ितों की हृदयविदारक गवाही दर्शाती है कि इन अपराधों का भुक्तभोगियों पर किस तरह से असर हुआ है.
उन्होंने कहा कि परिवारों की पूरी पीढ़ी को बिना यह जाने जीवन गुज़ारना पड़ा कि उनके पति, पत्नी, अभिभावक, बच्चों और अन्य परिजनों के साथ क्या हुआ था.
मानवाधिकार उच्चायुक्त ने जबरन गुमशुदगी को अनेक मानवाधिकारों का गहरा उल्लंघन क़रार दिया है, जिसकी जवाबदेही राज्यसत्ता की होती है.
उन्होंने डीपीआरके (उत्तर कोरिया) से ऐसे मामलों की शिनाख़्त व निपटान करने का आग्रह किया है और मानवाधिकारों से जुड़े अन्य ऐसे मुद्दों पर संयुक्त राष्ट्र के साथ मिलकर प्रयास करने का अनुरोध किया है.
यूएन एजेंसी प्रमुख ने अपने कार्यालय की रिपोर्ट उल्लिखित आग्रह को दोहराते हुए कहा है कि पीड़ितों को सच जानने, और न्याय व मुआवज़ा पाने का अधिकार है.
“दशकों पुराने मामलों में भी, हमें जवाबदेही, पारदर्शिता व कष्ट-निवारण सुनिश्चित करने के लिए किसी भी कोशिश से पीछे नहीं हटना चाहिए.”
अधिकार हनन के अनेक मामले
रिपोर्ट में वर्ष 1950 से 2016 तक, जबरन गुमशुदगी और अपहरण के अनेक मामलों की पड़ताल की गई है.
ऐसे मामलों में मुख्यत: दो प्रकार के रुझान नज़र आए हैं: डीपीआरके के भीतर नागरिकों को मनमाने ढंग से हिरासत में लिया जाना और उनसे जुड़ी सूचना को गोपनीय रखा जाना; और विदेशी नागरिकों की जबरन गुमशुदगी.
इनमें कोरियाई युद्ध के दौरान और उसके बाद कोरिया गणराज्य के नागरिकों का अपहरण किया जाना, युद्धबन्दियो को देश वापिस ना भेजे जाना, और जापान व अन्य देशों के नागरिकों की जबरन गुमशुदगी या फिर उनके अपहरण के मामले हैं.
टूटे परिवार, आजीविका ख़त्म
“These wounds do not heal”, शीर्षक वाली इस रिपोर्ट में पीड़ितों और उनके परिजनों द्वारा सहे गए गम्भीर मनोसामाजिक दुख को उकेरा गया है.
परिवारों ने बताया कि उनके प्रियजन के ग़ायब हो जाने के बाद उन्हें अत्यधिक बेचैनी और सदमे से गुज़रना पड़ा और मनोसामाजिक समर्थन पाने के लिए उनके पास कोई उपाय नहीं था.
इन उल्लंघनों का परिवारों की आर्थिक स्थिति पर भी असर हुआ, चूँकि लापता होने वाले अधिकाँश व्यक्ति पुरूष थे.
रिपोर्ट के अनुसार, मुख्य आय का स्रोत और पारम्परिक भूमिका के समर्थन के अभाव में, महिलाओं को अपने पूरे परिवार का बोझ उठाना पड़ा, एक ऐसे समय में जब उनकी निगरानी की जा रही थी और उन्हें सन्देह की नज़र से देखा जा रहा था.
इसके परिणामस्वरूप उपजी परिस्थितियों और निर्धनता ने पूरी पीढ़ियों तक परिवारों को प्रभावित किया है.
जवाबदेही का आग्रह
रिपोर्ट में ज़ोर देकर कहा गया है कि ग़ायब हो गए व्यक्तियों के परिजनों को यह जानने का अधिकार है कि उनके प्रियजन के साथ क्या हुआ था.
इस हनन की गम्भीरता को ध्यान में रखते हुए, डीपीआरके द्वारा जवाबी उपाय और उपयुक्त जाँच की अहमियत को रेखांकित किया गया है.
“इसके ज़िम्मेदारों को घरेलू और अन्तरराष्ट्रीय अदालतों में न्याय के कटघरे में लाना होगा, जोकि निष्पक्ष कार्रवाई के अन्तरराष्ट्रीय मानकों पर खरी उतरती हों.”
मानवाधिकार विशेषज्ञों ने एक व्यापक मुआवज़े कार्यक्रम पर भी बल दिया है, जिसे पीड़ितों की भागीदारी के साथ स्थापित किया जाएगा.