वैश्विक परिप्रेक्ष्य मानव कहानियां

भारत से जम्मू कश्मीर में चिन्ताजनक मानवाधिकार स्थिति का तत्काल हल निकालने का आग्रह

जम्मू और कश्मीर में शुक्रवार की नमाज़ का एक दृश्य
©John Isaac
जम्मू और कश्मीर में शुक्रवार की नमाज़ का एक दृश्य

भारत से जम्मू कश्मीर में चिन्ताजनक मानवाधिकार स्थिति का तत्काल हल निकालने का आग्रह

मानवाधिकार

संयुक्त राष्ट्र द्वारा नियुक्त स्वतन्त्र मानवाधिकार विशेषज्ञों ने भारत सरकार और अन्तरराष्ट्रीय समुदाय से जम्मू कश्मीर में आम आबादी के मानवाधिकारों का उल्लंघन जारी रहने की स्थिति पर ध्यान देने के लिये तुरन्त कार्रवाई करने का आग्रह किया है. इन मानवाधिकार विशेषज्ञों ने 5 अगस्त 2019 को जम्मू कश्मीर का विशेष दर्जा ख़त्म किये जाने का एक वर्ष पूरा होने के अवसर पर ये पुकार लगाई है.

संयुक्त राष्ट्र के इन 17 स्वतन्त्र मानवाधिकार विशेषज्ञों ने कहा है, “तत्काल कार्रवाई किये जाने की ज़रूरत है. अगर भारत सरकार स्थिति का कोई समाधान निकालने के लिये ईमानदारी से और तुरन्त कार्रवाई नहीं करती है तो अन्तरराष्ट्रीय समुदाय को आगे बढ़कर क़दम उठाने होंगे.”

Tweet URL

उन्होंने कहा है कि जम्मू कश्मीर में मानवाधिकार उल्लंघन के अतीत और हाल के समय में हुए मामलों की जाँच कराना और आगे लोगों के मानवाधिकार उल्लंघन को रोकना भारत सरकार की ज़िम्मेदारियों में शामिल है.

जम्मू कश्मीर को मुस्लिम बहुल राज्य होने के नाते भारत के संविधान के अनुच्छेद 370 के तहत विशेष दर्जा प्राप्त था. 

इन मानवाधिकार विशेषज्ञों का कहना है कि भारतीय संसद ने 5 अगस्त 2019 को जब से जम्मू कश्मीर का विशेष संवैधानिक दर्जा समाप्त किया है, “जम्मू कश्मीर में मानवाधिकार स्थिति बहुत तेज़ी से बिगड़ी है.”

“हम विशेष रूप से इसलिये चिन्तित हैं चूँकि कोविड-19 महामारी के दौरान भी बहुत से ऐसे लोग हिरासत में बन्द हैं जिन्हें प्रदर्शन करने के आरोप में बन्दी बनाया गया था, और इंटरनेट पाबन्दियाँ भी लगी हुई हैं.”

संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार विशेषज्ञों ने लगभग एक वर्ष पहले भी एक सार्वजनिक पत्र के ज़रिये भारत सरकार से अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता, सूचना व जानकारी हासिल करने और 5 अगस्त 2019 की घोषणा के बाद शुरू हुए शान्तिपूर्ण प्रदर्शनों का दमन बन्द करने का आग्रह किया था.

मानवाधिकार विशेषज्ञों ने लोगों को कथित तौर पर मनमाने तरीक़े से बन्दी बनाए जाने, उन्हें प्रताड़ित करने और उनके साथ ख़राब बर्ताव किये जाने पर अपनी चिन्ताओं से भारत सरकार को अवगत कराया था जिस पर भारत सरकार ने हाल ही में अपना जवाब दाख़िल किया है.

मानवाधिकार विशेषज्ञों ने स्थिति की रिपोर्टिंग करने वाले पत्रकारों का अपराधीकरण करने और एक वरिष्ठ मानवाधिकार वकील को बन्दी बनाने और उनकी ख़राब होती स्वास्थ्य हालत पर भी चिन्ताएँ जताई हैं.

विशेषज्ञों ने कहा, “हमें अपने चार पत्रों में से तीन पर भारत सरकार के जवाब का इन्तज़ार है.”

जम्मू कश्मीर का राज्य मानवाधिकार आयोग अक्टूबर 2019 में बन्द कर दिया गया था जोकि मानवाधिकार उल्लंघन के पीड़ित लोगों के लिये राहत व समाधान पाने के कुछ संसाधनों में से एक था, और उसे बन्द किया जाना बड़ी चिन्ता की बात है.

इसके अलावा लोगों को इस बारे में भी कोई जानकारी मुहैया नहीं कराई गई कि मानवाधिकार आयोग उल्लंघन के जिन मामलों की जाँच कर रहा था, उनके बारे में क्या होगा.

इनमें उन सैकड़ों लोगों के मामले भी थे जिन्हें जबरन ग़ायब कर दिया गया और उनके जबरन लापता होने की समय स्थिति 1989 तक भी जाती है.

हज़ारों गुमनाम और कुछ सामूहिक क़ब्रें होने के आरोपों की भी अभी सटीक जाँच नहीं हो पाई है.

मानवाधिकर विशेषज्ञों का कहना है, “अनेक परिवार दशकों से फिक्र के साथ इन्तज़ार ही कर रहे हैं और अब मानवाधिकार उल्लंघन के नए आरोपों की लहर भी सामने है.”

“राज्य मानवाधिकार आयोग ख़त्म हो चुका है, इंटरनेट पर पाबन्दियाँ लगी हुई हैं, रिपोर्टिंग की सम्भावनाएँ और भी ज़्यादा कम हो गई हैं.”

वर्ष 2011 में, भारत सरकार ने विशेष रैपोर्टेयर्स को यात्रा करने का आमन्त्रण दिया था, लेकिन अनेक बार किये गए अनुरोध अब भी ठण्डे बस्ते में पड़े हैं.

“हम भारत सरकार से इन यात्राओं को तत्काल सम्भव बनाने के लिए प्रबन्ध करने का आग्रह करते हैं, विशेष रूप से उन मानवाधिकार विशेषज्ञों की यात्राओं को जो प्रताड़ना और गुमशुदगी के मामलों पर काम करते हैं.”

विशेष रैपोर्टेयर और कार्यदल संयुक्त राष्ट्र की मानवाधिकार परिषद की विशेष प्रक्रिया के नाम से जाने जाते हैं. ये विशेष प्रक्रिया संयुक्त राष्ट्र में मानवाधिकार प्रणाली की सबसे बड़ी संस्था हैं जिसमें स्वतन्त्र मानवाधिकार विशेषज्ञ होते हैं. ये प्रक्रिया किसी ख़ास देश में या दुनिया के किसी भी हिस्से में किसी ख़ास मानवाधिकार स्थिति की निगरानी करने और उसकी जाँच-पड़ताल करने के लिये मानवाधिकार परिषद की स्वतन्त्र व्यवस्था है. विशेष प्रक्रिया के विशेषज्ञ इस हैसियत में स्वैच्छिक आधार पर काम करते हैं; वो संयुक्त राष्ट्र के कर्मचारी नहीं होते हैं और उन्हें उनके काम के लिये संयुक्त राष्ट्र से कोई वेतन नहीं मिलता है. वो किसी भी सरकार या संगठन से स्वतन्त्र होते हैं और वो अपनी निजी हैसियत में काम करते हैं.