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पाकिस्तान: ‘जबरन गुमशुदगी के पीड़ितों को शिकायत दर्ज कराने से ना रोका जाए’

पाकिस्तान के, इस्लामाबाद में एक बाज़ार का दृश्य (फ़ाइल फ़ोटो)
Photo: IRIN/David Swanson
पाकिस्तान के, इस्लामाबाद में एक बाज़ार का दृश्य (फ़ाइल फ़ोटो)

पाकिस्तान: ‘जबरन गुमशुदगी के पीड़ितों को शिकायत दर्ज कराने से ना रोका जाए’

मानवाधिकार

संयुक्त राष्ट्र के स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञों के एक समूह ने पाकिस्तान से, उस विधेयक में संशोधन की मंज़ूरी को रोकने का आहवान किया है जिसमें जबरन गुमशुदगी के शिकार लोगों के परिवारों, सम्बन्धियों और अन्य स्रोतों का आपराधिकरण करने और उन्हें दण्डित करने का प्रावधान प्रस्तावित है.

संयुक्त राष्ट्र के स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञों ने, 10 दिसम्बर को मानवाधिकार दिवस के मौक़े पर जारी एक वक्तव्य में, पाकिस्तान के जिस क़ानून और उसमें संशोधन करने वाले विधेयक के सम्बन्ध में ये पुकार लगाई है, उसका नाम है –  आपराधिक दण्ड संहिता (संशोधन) विधेयक 2021. 

यह विधेयक पाकिस्तान की नेशनल ऐसेम्बली में 9 नवम्बर 2021 को पारित किया गया है और अब चर्चा के लिये सेनेट में पहुँचना है.

इस विधेयक में किसी भी ऐसे व्यक्ति पर पाँच वर्ष के कारावास की सज़ा और एक लाख पाकिस्तानी रुपए का जुर्माना लगाने के दण्ड का प्रावधान किया गया है जो ऐसी कोई शिकायत दर्ज कराने के दोषी पाए जाते हैं जिसमें दी गई जानकारी ‘ग़लत साबित होती है’.

मानवाधिकार विशेषज्ञों ने कहा है, “जबरन गुमशुदगी का शिकार हुए लोगों के परिजन और सम्बन्धी पहले से ही, ऐसे मामलों में जानकारी, सरकारी अधिकारियों को बताने में झिझकते हैं, ऐसा वो, या तो बदले की कार्रवाई के डर से करते हैं या फिर भरोसे की कमी की वजह से.”

मानवाधिकार विशेषज्ञों के अनुसार, “अगर ये विधेयक पारित होकर क़ानून बन जाता है तो इसके कारण, अपराधों की सूचनाएँ और जानकारी, निश्चित रूप से सरकारी अधिकारियों तक बहुत कम पहुँचेंगी, और अपराधियों के लिये दण्डमुक्ति बढ़ेगी यानि क़ानून का डर कम होगा.”

उन्होंने कहा कि इन क़ानूनी प्रावधानों का जबरन गुमशुदगी का शिकार हुए पीड़ितों के सम्बन्धियों और उनके प्रतिनिधियों पर व्यापक नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा, जो अपनी ख़ामोशी अपनाने के माहौल में दाख़िल होने को मजबूर होंगे, और अन्ततः उनके पास समस्या का कोई असरदार समाधान नहीं होगा.

मानवाधिकार विशेषज्ञों ने कहा है कि पाकिस्तान को अलबत्ता ऐसे उपायों का सहारा लेना होगा जिनमें प्रभावित सम्बन्धियों को आगे आकर सही जानकारी देने के लिये प्रोत्साहित किया जाए, नाकि, उन्हें ऐसा करने से रोकने के लिये नई बाधाएँ खड़ी की जाएँ.

इस विधेयक के माध्यम से, पाकिस्तान की दण्ड संहिता-1860 में संशोधन करने का प्रस्ताव है जिसमें जबरन गुमशुदगी को, एक स्वायत्त अपराध क़रार दिया जाएगा. यह विधेयक नेशलन ऐसेम्बली में 8 जून 2021 को पेश किया गया था.

संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार विशेषज्ञों ने इस विधेयक का आरम्भ में तो स्वागत किया था क्योंकि यह विधेयक प्रासंगिक अन्तरराष्ट्रीय मानवाधिकार प्रणालियों की सिफ़ारिशों की तर्ज़ पर था जिसका लम्बे समय से इन्तेज़ार था.

मानवाधिकार विशेषज्ञों के अनुसार, मगर 29 सितम्बर 2021 को, नेशनल ऐसेम्बली की आन्तरिक मामलों की स्थाई समिति ने इस विधेयक में एक संशोधन प्रस्तावित कर दिया जोकि “जबरन गुमशुदगी के मामलों को अपराध क़रार देने वाले एक क़ानून के उद्देश्यों की भावना के विपरीत है”.

मानवाधिकार विशेषज्ञों ने पाकिस्तान सरकार को अपनी इन चिन्ताओं से अवगत करा दिया है.

स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञों ने कहा है, “हम पाकिस्तान की सेनेट से, इस विधेयक की सावधानीपूर्वक समीक्षा करने और इसमें ऐसे बदलाव करने का आहवान करते हैं जो अन्तरराष्ट्रीय मानवाधिकार मानकों के अनुरूप हों.” 

“हम पाकिस्तान से एक ऐसी प्रक्रिया शुरू करने की अपनी पुकार भी दोहराते हैं जिसमें इस विधेयक के पारित होने से पहले, पीड़ितों, परिवारों, सिविल सोसायटी संगठनों और अन्य प्रभावित पक्षों को, एक मुक्त, समावेशी और पारदर्शी विचार-विमर्श में भागीदारी की सुविधा मुहैया कराई जाए.”

इन मानवाधिकार विशेषज्ञों के समूह के बारे में ज़्यादा जानकारी यहाँ हासिल की जा सकती है.