नस्लभेद: डरबन घोषणा पत्र के 20 वर्ष बाद भी, गूंज रही है नफ़रत

संयुक्त राष्ट्र प्रमुख एंतोनियो गुटेरेश ने बुधवार को एक उच्चस्तरीय सम्मेलन में कहा है कि नस्लवाद को जड़ से उखाड़ फेंकने के लिये 20 वर्ष पहले एक एक ऐतिहासिक घोषणा पत्र पारित किया गया था, लेकिन भेदभाव आज भी, हर समाज के दैनिक जीवन, संस्थानों और सामाजिक ढाँचे में जड़ें जमाए हुए है.
डरबन घोषणा पत्र और कार्रवाई कार्यक्रम (DDPA) की 20वीं वर्षगाँठ के मौक़े पर, बुधवार 22 सितम्बर को आयोजित विशेष कार्यक्रम में, देशों व सरकारों के प्रतिनिधि, यूएन महासभागार में एकत्र हुए जोकि यूएन महासभा के 76वें सत्र के एक हिस्से के रूप में आयोजित किया गया.
UN Human Rights Chief @mbachelet calls on States to come together to #FightRacism and discrimination. Ending systemic racism concerns all of us, irrespective of race, colour, descent, ethnic or national origin, affiliation, religion or belief.Read 👉 https://t.co/tujm1WhSRi pic.twitter.com/nOi6wj0UZe
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इस सम्मेलन में, अफ़्रीकी मूल के लोगों के लिये मुआवज़ा, नस्लीय न्याय और समानता पर भी विचार हुआ.
यूएन महासचिव एंतोनिटो गुटेरेश ने इस मौक़े पर कहा, “अफ़्रीकी मूल के लोगों, अल्पसंख्यक समुदायों, आदिवासी लोगों, प्रवासियों, शरणार्थियों, विस्थापित लोगों, और अन्य अनेक समूहों के लोगों को आज भी, नफ़रत, कलंकित मानसिकता, बलि का बकरा बनाए जाने के चलन, भेदभाव, और हिंसा का सामना करना पड़ता है.”
उन्होंने कहा, “ख़ुद से भिन्न पहचान के लोगों से नफ़रत करना, लैंगिक भेदभाव, नफ़रत से भरे षडयंत्रों की बातें, श्वेत वर्चस्व और नव-नाज़ी विचारधाराएँ उफ़ान पर हैं – जोकि घृणा से गूंजते चैम्बरों में और भी ज़्यादा बढ़ रही हैं.”
यूएन प्रमुख ने कहा कि छोटे-छोटे उल्लंघनों से लेकर, लोगों के व्यक्तिगत क्षेत्र में हस्तक्षेप किये जाने तक, मानवाधिकारों पर हमले हो रहे हैं.
ढाँचागत नस्लभेद और व्यवस्थागत अन्याय, आज भी लोगों को उनके बुनियादी मानवाधिकारों से वंचित करते हैं, और नस्लभेद व लैंगिक असमानता के बीच सम्बन्ध व कड़ी, जगज़ाहिर है.
उन्होंने ध्यान दिलाया कि भेदभाव के कुछ सबसे भीषण प्रभावों की तकलीफ़, महिलाओं को उठानी पड़ती है. और दुनिया, यहूदी विरोध, मुसलमानों के ख़िलाफ़ बढ़ती नफ़रत, और अल्पसंख्यक ईसाइयों के साथ दुर्व्यवहार का माहौल देख रही है.
यूएन महासचिव ने, दुनिया भर में, हर किसी से, भेदभाव, नफ़रत भरी भाषा, और निराधार दावों व आरोपों की निन्दा करने का आग्रह किया है, क्योंकि जो तत्व, आज इस तरह के विचारों को आगे बढ़ा रहे हैं, वो “नस्लभेद के ख़िलाफ़ हमारी ज़रूरी लड़ाई” की अहमियत को कम करते है.
एंतोनियो गुटेरेश ने व्यवस्थागत नस्लभेद को जड़ से उखाड़ फैंकने, जवाबदेही सुनिश्चित करने और मुआवज़ा सुनिश्चित करने वाली न्याय व्यवस्था लागू करने की कोशिशों के तहत, यूएन मानवाधिकार उच्चायुक्त कार्यालय (OHCHR) द्वारा शुरू किये गए ‘परिवर्तनकारी एजेण्डा’ की तरफ़ ध्यान दिलाया.
उन्होंने कहा, “इस नई जागरूकता का नेतृत्व अक्सर महिलाएँ और युवजन कर रहे हैं, जिसने एक ऐसा आन्दोलनकारी माहौल बना दिया है जिसका हम सभी को उपयोग करना चाहिये.”
यूएन प्रमुख ने देशों से, इन प्रयासों को राष्ट्रीय और वैश्विक स्तर पर समर्थन देने के लिये, ठोस कार्रवाई करने का आहवान किया.
उन्होंने कहा, “हमें अनेक पीढ़ियों तक, भेदभाव और बहिष्करण जारी रहने परिणामों को उलटना होगा – स्वभाविक रूप से उनके सामाजिक और आर्थिक आयामों सहित, और ऐसा, मुआवज़ा सुनिश्चित करने वाली न्याय प्रणालियों के ज़रिये किया जा सकता है.”