पाकिस्तान: जबरन धर्म परिवर्तन व बाल विवाह पर कार्रवाई का आग्रह

पाकिस्तान के सिन्ध प्रान्त में ख़ैरपुर मीर ज़िले के कुछ ग्रामीण, बाढ़ प्रभावित इलाक़ों से गुज़रते हुए. सिन्ध प्रान्त में अल्पसंख्यक समुदाय के लोग काफ़ी संख्या में रहते हैं.
© UNFPA / Shehzad Noorani
पाकिस्तान के सिन्ध प्रान्त में ख़ैरपुर मीर ज़िले के कुछ ग्रामीण, बाढ़ प्रभावित इलाक़ों से गुज़रते हुए. सिन्ध प्रान्त में अल्पसंख्यक समुदाय के लोग काफ़ी संख्या में रहते हैं.

पाकिस्तान: जबरन धर्म परिवर्तन व बाल विवाह पर कार्रवाई का आग्रह

मानवाधिकार

संयुक्त राष्ट्र के स्वतंत्र मानवादिकार विशेषज्ञों ने पाकिस्तान में, अल्पसंख्यक समूहों की कम उम्र लड़कियों व युवा महिलाओं के अपहरण, जबरन विवाह एवं धर्मान्तरण के मामलों में कथित वृद्धि पर चिन्ता व्यक्त की है, और ऐसी प्रथाओं को ख़त्म करने व पीड़ितों के लिये न्याय सुनिश्चित करने हेतु, तत्काल प्रयास करने का आहवान किया है.

यूएन मानवाधिकार विशेषज्ञों ने सोमवार को कहा, "हम सरकार से आग्रह करते हैं कि इन कृत्यों को निष्पक्षता व घरेलू क़ानून एवं अन्तरराष्ट्रीय मानवाधिकार प्रतिबद्धताओं के अनुरूप रोकने, और पूरी तरह से उनकी जाँच करने के लिये तत्काल क़दम उठाए जाएँ. इसके अपराधियों को पूरी तरह से जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए.”

Tweet URL

विशेषज्ञों ने कहा, "हम यह सुनकर बहुत परेशान हैं कि 13 वर्ष से कम उम्र की लड़कियों को उनके परिवारों से अपहरण करके, घरों से दूर स्थानों पर तस्करी करके भेजा जा रहा है."

उन्होंने कहा कि कभी-कभी लड़कियों की उम्र से दोगुनी उम्र के पुरुषों के साथ उनकी शादी करा दी जाती है, और इस्लाम में धर्मान्तरण के लिये मजबूर किया जाता है - यह सब अन्तरराष्ट्रीय मानवाधिकार क़ानून का उल्लंघन है.”

“हम बहुत चिन्तित हैं कि इस तरह के विवाह और धर्मान्तरण, इन लड़कियों और महिलाओं या उनके परिवारों को हिंसा की धमकी देकर करवाए जा रहे हैं."

मानवाधिकार विशेषज्ञों ने पाकिस्तान में, जबरन धर्मांतरण पर रोक लगाने और धार्मिक अल्पसंख्यकों की रक्षा करने वाले क़ानून को पारित किए जाने पिछले प्रयासों को ध्यान में रखते हुए, पीड़ितों और उनके परिवारों के लिये न्याय तक पहुँच में कमी की निन्दा की.

तत्काल कार्रवाई का आग्रह

रिपोर्ट से मालूम होता है कि ये तथाकथित विवाह और धर्मान्तरण, धार्मिक अधिकारियों की भागेदारी और सुरक्षा बलों व न्याय प्रणाली की मिलीभगत से होते हैं.

इन रिपोर्ट्स से यह भी संकेत मिलता है कि अदालतें भी, अपराधियों द्वारा प्रस्तुत किए गए - पीड़ितों के वयस्कता, स्वैच्छिक विवाह और धर्मांतरण के नक़ली साक्ष्यों को, महत्वपूर्ण जाँच के बिना ही स्वीकार करके, इन अपराधों को सक्षम बनाती है.

अनेक अवसरों पर अदालतों ने, धार्मिक क़ानून की ग़लत व्याख्याओं के ज़रिये, पीड़ितों को शोषकों के साथ रहने को मजबूर किया है.

विशेषज्ञों ने कहा, "परिवार के सदस्यों का कहना है कि पीड़ितों की शिकायतों को पुलिस शायद ही कभी गम्भीरता से लेती है. पुलिस या तो इन रिपोर्ट्स को दर्ज करने से इनकार करती है, या इन अपहरणों को "प्रेम विवाह" का नाम देकर उचित ठहरा देती है."

"अपहरणकर्ता, अपने पीड़ितों को क़ानूनी तौर पर बालिग़ होने व अपनी मर्ज़ी से शादी करने के जाली दस्तावेज़ो पर हस्ताक्षर करने के लिये मजबूर करते हैं. इन दस्तावेजों को पुलिस यह दिखाने के लिये सबूत के तौर पर पेश करती है कि कोई अपराध नहीं हुआ है.”

विशेषज्ञों ने कहा कि यह ज़रूरी है कि किसी भी धार्मिक पृष्ठभूमि के सभी पीड़ितों को, क़ानून के तहत न्याय और समान सुरक्षा मिले.

उन्होंने कहा, "पाकिस्तानी अधिकारियों को जबरन धर्मान्तरण, बाल विवाह, अपहरण और तस्करी पर रोक लगाने वाले क़ानून को अपनाना और लागू करना चाहिये, जिससे दासता व मानव तस्करी से निपटने एवं महिलाओं व बच्चों के अधिकारों को बनाए रखने के लिये, उनकी अन्तरराष्ट्रीय मानवाधिकार प्रतिबद्धताओं का पालन हो सके."

मानवाधिकार विशेषज्ञ

विशेष रैपोर्टेयर और अन्य मानवाधिकार विशेषज्ञ, जिनीवा स्थित यूएन मानवाधिकार परिषद की विशेष प्रक्रिया का हिस्सा होते हैं. वो यूएन स्टाफ़ नहीं होते हैं और वो किसी सरकार या संगठन से स्वतंत्र होकर, अपनी व्यक्तिगत हैसियत में काम करते हैं. उनके कामकाज के लिए, उन्हें संयुक्त राष्ट्र से कोई वेतन नहीं मिलता है.