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अन्तरराष्ट्रीय दिवस - जबरन गुमशुदगी पर विराम लगाने के लिये कार्रवाई की पुकार

ग्वाटेमाला के राबिनाल में जबरन गुमशुदगी के पीड़ितों की स्मृति में सामुदायिक संग्रहालय.
UNDP Guatemala/Caroline Trutmann Marconi
ग्वाटेमाला के राबिनाल में जबरन गुमशुदगी के पीड़ितों की स्मृति में सामुदायिक संग्रहालय.

अन्तरराष्ट्रीय दिवस - जबरन गुमशुदगी पर विराम लगाने के लिये कार्रवाई की पुकार

मानवाधिकार

संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने सदस्य देशों से जबरन गुमशुदगी की घटनाओं की रोकथाम करने और ऐसे मामलों में अदालती कार्रवाई के लिये तय दायित्वों को पूरा किये जाने का आग्रह किया है. यूएन प्रमुख ने सचेत किया है कि कोविड-19 महामारी ने इन ‘कायरतापूर्ण’ कृत्यों से निपटने की कार्रवाई को और भी मुश्किल बना दिया है. 

महासचिव गुटेरेश ने सोमवार, 30 अगस्त, को ‘जबरन गुमशुदगी के पीड़ितों के अन्तरराष्ट्रीय दिवस’ पर अपने सन्देश में गम्भीर मानवाधिकार हनन के पीड़ितों के लिये यह अपील जारी की है. 

“एक साथ मिलकर, हम सभी जबरन गुमशुदगियों का अन्त कर सकते हैं और हमें ऐसा करना होगा.”

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जबरन गुमशुदगी से तात्पर्य राज्यसत्ता के एजेण्टों या उनके समर्थन से लोगों को गिरफ़्तार किये जाने, हिरासत में लिये जाने या फिर उन्हें अगवा किये जाने से है. 

एक दौर में इस प्रकार की घटनाएँ अक्सर सैन्य तानाशाही में सामने आती थीं, मगर यूएन के मुताबिक अब यह एक वैश्विक समस्या बनती जा रही है.

बताया गया है कि लगभग 80 से ज़्यादा देशों में लाखों लोग लापता हैं, जबकि दण्डमुक्ति की भावना प्रबल है.

यूएन महासचिव ने कहा कि अन्तरराष्ट्रीय मानवाधिकार क़ानून के तहत जबरन ग़ायब किये जाने के मामलों पर सख़्त पाबन्दी है.

इसके बावजूद, दुनिया भर में दमन, आतंक और असहमतियों के स्वरों को दबाने के लिये जबरन गुमशुदगियों का इस्तेमाल किया जाता रहा है.

“यह विडम्बना है कि इसे अक्सर अपराध या आतंकवाद का मुक़ाबला करने के बहाने के तौर पर इस्तेमाल में लाया जाता है.”

“वकील, ग़वाह, राजनैतिक विरोधी और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के लिये विशेष रूप से जोखिम है.”

परिजनों की पीड़ा

क़ानूनी संरक्षण के दायरे से बाहर कर दिये जाने के बाद, पीड़ितों को उनके सभी अधिकारों से वंचित कर दिया जाता है और वे अक्सर उन्हें बन्दी बनाने वालो की दया पर निर्भर होते हैं.   

उन्हें यातनाएँ दी जाती हैं और उनकी मदद के लिये किसी के सामने आने की सम्भावना कम ही होती है. कुछ की तो इन परिस्थितियों में मौत भी हो जाती है.

महासचिव गुटेरेश ने कहा, “जबरन गुमशुदगियों से परिवार व समुदाय अपने प्रियजनों के बारे में सच जानने के अधिकार से वंचित रह जाते हैं, और जवाबदेही, न्याय व मुआवज़े से भी.”

उन्होंने क्षोभ जताया कि कोविड-19 महामारी ने कथित रूप से ग़ायब लोगों की तलाश और जाँच करने की क्षमता सीमित कर दी है जिससे, ये वेदना और व्यथा और भी ज़्यादा गहरी हुई है. 

जबरन ग़ायब कराये जाने के पीड़ितों की स्मृति में वर्ष 2011 से हर साल यह अन्तरराष्ट्रीय दिवस मनाया जाता है.   

अभियोजन का दायित्व

संयुक्त राष्ट्र महासभा ने दिसम्बर 2010 में एक प्रस्ताव पारित किया था, जिसमें विभिन्न क्षेत्रों में ऐसी घटनाओँ के बढ़ते मामलों पर गहरी चिन्ता ज़ाहिर की गई थी. 

साथ ही, जबरन गुमशुदगी के ग़वाहों और पीड़ितों के परिजनों के साथ बुरे बर्ताव, उन्हें डराये-धमकाये जाने और उनके उत्पीड़न पर भी क्षोभ व्यक्त किया गया.

इस प्रस्ताव में जबरन गुमशुदगी से सभी व्यक्तियों के संरक्षण के लिये अन्तरराष्ट्रीय सन्धि को पारित किये जाने का स्वागत किया है. 

इस सन्धि में सभी देशों से ऐसे मामलों के दोषियों की आपराधिक जवाबदेही तय किये जाने के उपायों का आहवान किया गया है.

यूएन प्रमुख ने ज़ोर देकर कहा कि सदस्य देशों को जबरन गुमशुदगी की रोकथाम के लिये और पीड़ितों की तलाश व जाँच, अभियोजन और दोषियों को दण्ड के लिये अपने दायित्वों को पूरा करना होगा. 

महासचिव गुटेरेश ने सभी देशों से इस सन्धि को स्वीकृति देने और संयुक्त राष्ट्र समिति के साथ इसे लागू किये जाने की निगरानी करने की अपील की है.