कोविड-19 के प्रभावों के बावजूद, कार्बन उत्सर्जन में रिकॉर्ड बढ़ोत्तरी

विश्व मौसम संगठन (WMO) ने कहा है कि वर्ष 2019 में वातावरण में कार्बनडाय ऑक्साइड का स्तर 410.5 अंश प्रति 10 लाख (PPM) के नए ऊँचे रिकॉर्ड पर पहुँच गया था, और इस वर्ष भी इस स्तर के बढ़ते रहने की सम्भावना है. संगठन ने ग्रीन हाउस समूह की गैसों पर अपने वार्षिक बुलेटिन में सोमवार को ये जानकारी दी.
संगठन के महासचिव पैट्टरी तालस ने एक बयान में कहा है, “वर्ष 2015 में पहुँचे 400 पीपीएम का रिकॉर्ड टूट गया है. और केवल चार वर्ष बाद 410 पीपीएम का स्तर पार हो गया."
#COVID19 has had no measurable impact on CO2 concentrations in the atmosphere (cumulative past and current emissions), per WMO Greenhouse Gas BulletinBut the lockdown provides a platform to grow back better and take #ClimateActionhttps://t.co/sYiJnrkYo5 pic.twitter.com/lCstO3xK2A
WMO
"हमारे रिकॉर्ड के इतिहास में इतनी बढ़त की दर कभी नहीं देखी गई. कोविड-19 से निपटने के प्रयासों में हुई तालाबन्दी के दौरान कार्बन उत्सर्जन में आई कमी, दीर्घकालीन ग्राफ़ में बहुत मामूली है. हमें कार्बन उत्सर्जन में कमी में टिकाऊ स्तर की जरूरत है.”
प्रोफ़ेसर तालस ने कहा कि कोविड-19 के सम्बन्ध में लागू की गई तालाबन्दी के कारण कार्बन उत्सर्जन में इस वर्ष 4 से 7 प्रतिशत प्रतिवर्ष की दर से कमी होने की सम्भावना है.
विश्व मौसम संगठन में वातावरण और पर्यावरण शोध विभाग की प्रमुख डॉक्टर ओकसाना तारासोवा ने जिनीवा में एक प्रैस वार्ता में कहा कि वैसे तो ऐसा नज़र आता है कि महामारी ने जैसे दुनिया को रोक दिया है, मगर कार्बन उत्सर्जन बेक़ाबू तरीक़े से जारी हैं क्योंकि तालाबन्दी के दौरान केवल लोगों का आवागन कम हुआ, कुल उर्जा खपत में कोई ख़ास कमी नहीं आई.
डॉक्टर ओकसाना तारासोवा ने वातावरण में कार्बन के स्तरों की तुलना एक ऐसे बथ टब से की जो हर साल लगातार भरता ही जा रहा है, और कार्बन की एक बून्द भी पूरे स्तर को बढ़ने में मदद करती है. कोविड-19 के कारण लागू की गईं तालाबन्दियों के दौरान कार्बन उत्सर्जन में आई कमी, ऐसी थी जैसेकि नलके से आने वाले पानी में मामूली कमी आई हो.
डॉक्टर ओकसाना तारासोवा ने कहा, “वातावरण में जो हम कार्बनडाय ऑक्साइड देखते हैं, वो 1750 से बढ़ते हुए एकत्र हुआ है. इस तरह देखें तो उसके बाद से हमने वातावारण में कार्बनडाय ऑक्साइड का एक-एक क़तरा और बून्द जो डाले हैं, उसी के कारण मौजूदा स्तर बना है."
"ये कोई एक-दो दिन में हुई बात नही है, ये इनसानों की आर्थिक व मानव विकास गतिविधियों के इतिहास का कारण हुआ है जिसने दरअसर, इस मौजूदा वैश्विक 410 पीपीएम के स्तर पर पहुँचा दिया है.”
वर्ष 2019 में कार्बनडाय ऑक्साइड का स्तर 2.6 पीपीएम बढ़ा था, जोकि उससे पहले के 10 वर्षों के दौरान औसत (2.37 पीपीएम) से ज़्यादा बढ़ोत्तरी थी. कार्बनडाय ऑक्साइड का ये स्तर पूर्व – औद्योगिक स्तर से 48 प्रतिशत ऊँचा है.
प्रोफ़ेसर तालस का कहना है कि वर्ष 2015 में हुए पेरिस समझौते के लक्ष्य हासिल करने के लिये दुनिया को कोयला, तेल और गैस जैसे ऊर्जा स्रोतों से हटकर सौर ऊर्जा, वायु, हाइड्रोपावर और परमाणु ऊर्जा का इस्तेमाल बढ़ाना होगा. साथ ही परिवहन के कम प्रदूषण फैलाने वाले साधन अपनाने होंगे जिनमें बिजली, बायो-ईंधन, हाइड्रोजन से चलने वाली वाहन और साइकिल शामिल हों.
ध्यान रहे कि पेरिस समझौते के तहत तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने का लक्ष्य रखा गया है.
प्रोफ़ेसर तालस ने कहा कि ये एक अच्छी ख़बर है कि ऐसे देशों की संख्या बढ़ रही है जो वर्ष 2050 तक कार्बन निष्पक्षता की स्थिति हासिल करने के लिये प्रतिबद्धताएँ व्यक्त कर रहे हैं, जोकि 1.5 डिग्री सेल्सियस का लक्ष्य हासिल करने के लिये ज़रूरी हैं.
उन्होंने जानकारी देते हुए बताया, “वैश्विक कार्बन उत्सर्जन का लगभग 50 प्रतिशत हिस्सा चीन, योरोपीय संघ, जापान और दक्षिण करिया से उत्पन्न हो रहा है, और इसके पीछे वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद का 50 प्रतिशत हिस्सा भी है.”
“और अगर अमेरिका में जो बाइडेन के नेतृत्व वाला प्रशासन भी ऐसे ही लक्ष्य निर्धारित करता है तो उसका मतलब होगा कि विश्व की प्रमुख अर्थव्यवस्थाएँ, ऐसे लक्ष्यों के पीछे होंगी.”
उन्होंने कहा कि आने वाले पाँच वर्षों के दौरान कार्बन उत्सर्जन के इस बढ़ते ग्राफ़ को सीधी रेखा में तब्दील करना होगा, तभी हम हर साल 6 प्रतिशत की दर से कार्बन उत्सर्जन में गिरावट देख सकेंगे जोकि 2050 तक लक्ष्य हासिल करने के लिये ज़रूरी होगा.
उन्होंने कहा कि अमेरिका के नव-निर्वाचित राष्ट्रपति जो बाइडेन ने अपने चुनाव अभियान के दौरान संकेत दिया था कि वो कार्बन अनुकूल टैक्नॉलॉजी के लिये बड़े वित्तीय प्रोत्साहन आगे बढ़ाएँगे.
प्रोफ़ेसर तालस ने कहा, “हम कुछ ख़बर डॉलर की रक़म की बात कर रहे हैं. और उन्होंने (जो बाइडेन) ने ये संकेत भी दिया था कि वो भी अन्य देशों की ही तरह समान लक्ष्य निर्धारित करना चाहते हैं, यानि वर्ष 2050 तक कार्बन निष्पक्षता.”
“ज़ाहिर सी बात है कि ऐसा हुआ तो वैश्विक स्तर पर अच्छी ख़बर होगी, और अन्य देशों पर भी इसके सकारात्मक प्रभाव हो सकते हैं, जिनके ज़रिये बहुत से देश इसी तरह के आन्दोलन में शामिल होने लगें.”