कोविड-19 के दौरान तालाबन्दियों से वायु गुणवत्ता में अल्पकालीन सुधार
कोविड-19 महामारी के दौरान लागू की गई तालाबन्दियों से, दुनिया के कुछ हिस्सों में वायु गुणवत्ता में तेज़ी से अभूतपूर्व सुधार दर्ज किया गया, मगर वैश्विक तापमान में बढ़ोत्तरी की वजह से होने वाले जलवायु परिवर्तन को थामने के लिये ये पर्याप्त नहीं हैं.
संयुक्त राष्ट्र के मौसम विज्ञान संगठन के विशेषज्ञों ने शुक्रवार को Air Quality and Climate Bulletin नामक अपनी रिपोर्ट जारी करते हुए ये बात कही है.
शहरी क्षेत्रों में विशेष रूप से वायु गुणवत्ता में बेहतरी देखी गई, मगर यह बदलाव सभी क्षेत्रों या सभी तरह के प्रदूषकों में एक समान नहीं था.
बुलेटिन बताता है कि वर्ष 2020 में दक्षिण पूर्व एशिया में, यातायात व ऊर्जा उत्पादन की वजह से हवा में फैलने वाले नुक़सानदेह कणों की मात्रा में 40 फ़ीसदी तक की कमी देखी गई.
चीन, योरोप और उत्तरी अमेरिका में भी उत्सर्जन में गिरावट आई और वैश्विक महामारी के पहले वर्ष में वायु गुणवत्ता बेहतर हुई.
हालांकि स्वीडन जैसे देशों में ऐसा नाटकीय परिवर्तन कम ही देखा गया, चूँकि वहाँ की वायु गुणवत्ता में हानिकारक सूक्ष्म कणों (PM2.5) का स्तर पहले से ही कम है.
यूएन मौसम विज्ञान एजेंसी की वायुमण्डलीय पर्यावरण शोध शाखा के प्रमुख डॉक्टर ओक्साना तारासोवो ने बताया कि वायु की गुणवत्ता में सुधार, साँस लेने में दिक़्कत महसूस करने वाले लोगों के लिये स्वागतयोग्य है.
मगर, नुक़सानदेह सूक्ष्म कणों के अनुपस्थिति से वातावरण में स्वाभाविक रूप से मौजूद ओज़ोन के लिये रास्ता साफ़ हो गया, जो कि एक बेहद ख़तरनाक प्रदूषक है.
“इसलिये, वातावरण रसायन में इस अनपेक्षित प्रयोग के बावजूद, हमने पाया कि दुनिया के अनेक हिस्सों में, अगर आप परिवहन और अन्य उत्सर्जनों में कमी ले भी आएँ, तो भी वायु गुणवत्ता विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानकों को पूरा नहीं करती है.”
प्रदूषक उत्सर्जन में गिरावट
बताया गया है कि कोविड-19 के दौरान, आवाजाही पर पाबन्दियों और वैश्विक अर्थव्यवस्था की सुस्त रफ़्तार की वजह से मानव गतिविधियों के कारण वायु प्रदूषकों के उत्सर्जन में गिरावट आई है.
जलवायु और पर्यावरणीय बदलावों के कारण रफ़्तार पकड़ती चरम मौसम की घटनाएँ भी हुईं हैं.
इनमें अफ़्रीका में अब तक का सबसे बड़ा रेतीला तूफ़ान, ऑस्ट्रेलिया से लेकर साइबेरिया तक जंगलों में आग लगने की विपदाएँ हैं, जिनसे वायु गुणवत्ता बदतर हुई है.
यूएन एजेंसी के मुताबिक यह रूझान 2021 में भी जारी है और उत्तरी अमेरिका, योरोप और रूस के टुण्ड्रा क्षेत्र के वनों में विनाशकारी आग की घटनाएँ हुई हैं, जिनसे लाखों लोगों के लिये वायु गुणवत्ता पर असर पड़ा है.
मौसम विज्ञान संगठन के मुताबिक वायु प्रदूषण से मानव स्वास्थ्य पर गम्भीर असर होता है.
एक अनुमान के अनुसार, वैश्विक स्तर पर मृतक संख्या, 1990 में 23 लाख से बढ़कर 2019 में 45 लाख तक पहुँच गई है.
विस्तृत विश्लेषण
यह विश्व मौसम विज्ञान एजेंसी की ओर से अपनी तरह का पहला अध्ययन है, जिसमें 25 देशों के 63 शहरों में स्थित, 540 पर्यवेक्षण केंद्रों से कुछ प्रमुख वायु-प्रदूषकों का विश्लेषण किया गया है.
विश्लेषण दर्शाता है कि 2015-2019 की तुलना में, 2020 के बसंत के मौसम में तालाबन्दी के दौरान, PM2.5 की सघनता में 30-40 फ़ीसदी तक की गिरावट दर्ज की गई है.
यूएन एजेंसी के मुताबिक एक ही क्षेत्र में इन सूक्ष्म कणों का स्तर जटिल व्यवहार प्रदर्शित करता है. उदाहरणस्वरूप, स्पेन के कुछ शहरों में इनकी मात्रा बढ़ी है, जिसकी वजह लम्बी दूरी तय करके आने वाली अफ़्रीकी धूल और जैव ईंधन के जलाया जाना बताया गया है.
ओज़ान की सघनता में परिवर्तन, बिलकुल भी बदलाव नहीं से लेकर कुछ बढ़ोत्तरी तक (जैसा कि योरोप में हुआ). क्षेत्रों के हिसाब से बदल जाता है. वहीं पूर्वी एशिया में 25 फ़ीसदी वृद्धि आंकी गई जबकि दक्षिण अमेरिका के लिये यह 30 प्रतिशत था.
सल्फ़र डाइऑक्साइड की सघनता, सभी क्षेत्रों में, वर्ष 2020 में 2015-2019 की अवधि की तुलना में 25-60 फ़ीसदी तक कम थी.
कार्बन मोनोऑक्साइड का स्तर भी सभी क्षेत्रों के लिये कम ही रहा है और सबसे अधिक गिरावट दक्षिण अमेरिका, 40 फ़ीसदी तक, में दर्ज की गई है.