मौसम सम्बन्धी घटनाओं के असर पर ध्यान केन्द्रित करना होगा
जलवायु परिवर्तन के कारण चरम मौसम और जलवायु सम्बन्धी घटनाओं की आवृत्ति, तीव्रता और गम्भीरता में बढ़ोत्तरी हुई है जिसका निर्बल समुदायों पर गहरा और ग़ैर-आनुपातिक असर हो रहा है. संयुक्त राष्ट्र मौसम विज्ञान एजेंसी (WMO) की एक नई रिपोर्ट में हालात की गम्भीरता की ओर ध्यान आकर्षित करते हुए असरदार समय-पूर्व चेतावनी प्रणालियों में ज़्यादा संसाधन निवेश किये जाने की अहमियत को रेखांकित किया गया है.
‘State of Climate Services 2020 Report: Move from Early Warnings to Early Action’ नामक यह रिपोर्ट मंगलवार को जारी की गई है जिसमें मौसमी परिस्थितियों के बजाय मौसम पुर्वानुमानों के असर पर ध्यान केन्द्रित करने की अहमियत पर बल दिया गया है.
रिपोर्ट के मुताबिक समय रहते चेतावनी मिलने से लोगों व व्यवसायों के लिये ज़रूरत के अनुसार कार्रवाई करना सम्भव होगा.
विश्व मौसम विज्ञान संगठन के महासचिव पेटेरी तालस ने रिपोर्ट की प्रस्तावना में कहा, “प्रभावी आपदा जोखिम न्यूनीकरण और जलवायु परिवर्तन अनुकूलन के लिये समय-पूर्व चेतावनी प्रणाली एक अनिवार्य शर्त है.”
“सही समय और सही स्थान पर तैयार रहने और जवाबी प्रतिक्रिया में सक्षम होने से लोगों की ज़िन्दगियों की रक्षा की जा सकती है और हर जगह समुदायों की आजीविकाओं की भी रक्षा की जा सकती है.”
उन्होंने स्पष्ट किया कि कोविड-19 महामारी के मानवीय और आर्थिक असर से निपटने में वर्षों का समय लग सकता है, लेकिन यह ध्यान रखा जाना होगा कि जलवायु परिवर्तन का मानव जीवन, पारिस्थितिकीय तन्त्रों, अर्थव्यवस्थाओं और समाजों पर ख़तरा मौजूदा समय में और आने वाली सदियों में जारी रहेगा.
“मानव-जनित जलवायु परिवर्तन की पृष्ठभूमि में कोविड-19 महामारी से पुनर्बहाली जलवायु सहनशील व अनुकूलन के ज़्यादा टिकाऊ मार्ग पर बढ़ने का अवसर है.”
भविष्य की चुनौतियाँ
दुनिया भर में पिछले 50 वर्षों में लगभग 11 हज़ार आपदाओं का कारण - मौसम, जलवायु व जल सम्बन्धी जोखिमों को बताया गया है.
यूएन मौसम विज्ञान एजेंसी के मुताबिक इन घटनाओं में 20 लाख से ज़्यादा लोगों की मौत हुई और विश्व अर्थव्यवस्था को 3.6 ट्रिलियन डॉलर का नुक़सान हुआ है.
वर्ष 2018 में तूफ़ान, बाढ़, सूखा और जंगलों में आग लगने की घटनाओं में 10 करोड़ से ज़्यादा लोगों को अन्तरराष्ट्रीय मानवीय सहायता पर निर्भर रहना पड़ा है.
वर्ष 2030 तक इस संख्या में करीब 50 फ़ीसदी तक की बढ़ोत्तरी हो सकती है और हर वर्ष 20 अरब डॉलर का नुक़सान होने की आशंका है. इन चिन्ताजनक आँकड़ों के बावजूद हर तीन में से एक व्यक्ति तक पर्याप्त रूप से समय-पूर्व चेतावनी प्रणालियों तक कवरेज नहीं है.
यूएन एजेंसी के अनुसार अफ़्रीका, सबसे कम विकसित देशों और लघु द्वीपीय विकासशील देशों में स्थानीय समुदाय इससे सबसे ज़्यादा प्रभावित हैं.
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इसकी मुख्य वजहें समय रहते चेतावनी जारी करने की कमज़ोर व्यवस्था, अपर्याप्त पर्यवेक्षण नैटवर्क और चेतावनी को जल्द कार्रवाई में तब्दील करने की अपर्याप्त क्षमता बताई गई हैं.
इस रिपोर्ट में समय-पूर्व चेतावनी प्रणाली को ज़्यादा प्रभावी बनाने और उन्हें लागू करने की प्रक्रिया बेहतर बनाने के लिये छह प्रमुख सिफ़ारिशें पेश की गई हैं:
- समय-पूर्व चेतावनी प्रणालियों में क्षमता सम्बन्धी ख़ामियों को दूर करने के लिये निवेश, विशेष रूप से अफ़्रीका में सबसे कम विकसित देशों और लघु द्वीपीय विकासशील देशों में;
- समय-पूर्व चेतावनी सम्बन्धी जानकारी को समय रहते कार्रवाई में तब्दील करने के लिये निवेश पर केन्द्रित प्रयास;
- समय रहते चेतावनी देने वाली व्यवस्था को सहारा देने वाली वैश्विक पर्यवेक्षण प्रणाली के लिये टिकाऊ वित्तीय संसाधनों का प्रबन्ध;
- समय-पूर्व चेतावनी प्रणालियों को लागू करने की ज़रूरतों के लिये संसाधनों के आबण्टन पर बेहतर जानकारी के लिये वित्तीय लेनदेन की निगरानी;
- समय-पूर्व चेतावनी प्रणाली की प्रभावशीलता के बेहतर निर्धारण के लिये निगरानी व मूल्याँकन प्रक्रिया में अनुरूपता;
- आँकड़ों की कमी को दूर करना, ख़ास तौर पर लघु द्वीपीय विकासशील देशों में.