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संघर्षों में फँसे बच्चों की जीवनरक्षक संरक्षा के लिये उपाय ज़रूरी

अफ़ग़ानिस्तान की राजधानी के एक इलाक़े में, एक हमले के दौरान घायल हुई एक अफ़ग़ान लड़की.
© UNICEF Afghanistan
अफ़ग़ानिस्तान की राजधानी के एक इलाक़े में, एक हमले के दौरान घायल हुई एक अफ़ग़ान लड़की.

संघर्षों में फँसे बच्चों की जीवनरक्षक संरक्षा के लिये उपाय ज़रूरी

मानवाधिकार

बाल अधिकारों के लिये काम करने वाली, संयुक्त राष्ट्र की एक वरिष्ठ अधिकारी ने सोमवार को कहा है कि युद्धक परिस्थितियों में फँस गए बच्चों को सुरक्षा व संरक्षा मुहैया कराना, अन्तरराष्ट्रीय एजेण्डा के केन्द्र में होना चाहिये, और इसमें कोविड-19 का मुक़ाबला करने के प्रयास भी शामिल हैं. 

बच्चे और सशस्त्र संघर्ष मामलों पर, संयुक्त राष्ट्र प्रमुख की विशेष प्रतिनिधि वर्जीनिया गम्बा ने सोमवार को अपनी वार्षिक रिपोर्ट, यूएन महासभा में पेश करते हुए ये अपील जारी की है. इस रिपोर्ट में अगस्त 2020 से जुलाई 2021 तक की अवधि को शामिल किया गया है.

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रिपोर्ट में, बाल अधिकारों के बड़े पैमाने पर किये गए हनन का ब्यौरा दिया गया है. इनमें सबसे प्रमुख रहे हैं युद्धक गतिविधियों में इस्तेमाल करने के लिये बच्चों की भर्ती, बच्चों की हत्याएँ, बच्चों का अपंग बनना, और बच्चों तक मानवीय सहायता पहुँचने से रोका जाना.

संयुक्त राष्ट्र ने, वर्ष 2020 के दौरान, 19 हज़ार 370 से ज़्यादा बच्चों के मानवाधिकार हनन के लगभग 26 हज़ार 425 मामले दर्ज किये थे.

इनमें ज़्यादा संख्या लड़कों की थी जिनके मानवाधिकार हनन मामलों की संख्या 14 हज़ार 097 थी और उनमें अपनी ज़िन्दगी गँवाने वाले और तकलीफ़ के साथ जीवित बचे लड़के शामिल थे.

संघर्ष या युद्धक हालात वाली परिस्थितियों में, मानवाधिकार हनन का सामना करने वाली लड़कियों की संख्या 4 हज़ार 993 थी. 

कुल मिलाकर, 8 हज़ार 521 बच्चों को, संघर्ष में शामिल पक्षों ने, या तो भर्ती किया या अन्य तरीक़ों से उनका इस्तेमाल किया. ऐसे मामले मुख्य रूप से काँगो लोकतांत्रिक गणराज्य, सोमालिया, सीरिया और म्याँमार में हुए. 

इस बीच, लगभग 8 हज़ार 400 युवजन या तो मारे गए या अपंग हो गए, और बच्चों के लिये, सबसे ख़तरनाक व जानलेवा स्थान अफ़ग़ानिस्तान, सीरिया, यमन और सोमालिया रहे.

बारूदी सुरंगों का लगातार जोखिम

रिपोर्ट के अनुसार, बारूदी सुरंगों, संवर्धित विस्फोटक उपकरणों (IEDs) और अन्य विस्फोटक हथियारों व युद्ध के अवशेषों की चपेट में आकर बच्चों के हताहत होने के मामले, विशेष चिन्ता का कारण बने हुए हैं.

वर्जीनीया गाम्बा ने कहा, “सदस्य देशों को, इन हथियारों से सम्बन्धित मौजूदा अन्तरराष्ट्रीय क़ानूनी दस्तावेज़ों पर हस्ताक्षर करके इन्हें लागू करना होगा, और बारूदी सुरंगें हटाने व उनसे उत्पन्न जोखिमों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के प्रयास बढ़ाने होंगे.”

उन्होंने कहा, “उससे भी बड़े दायरे वाली बात ये है कि तमाम देशों को, बाल अधिकारों के हनन के तमाम मामलों को अपराध क़रार देने वाले क़ानून लागू करने होंगे, साथ ही दण्डमुक्ति की संस्कृति को ख़त्म करने के लिये जवाबदेही बढ़ानी होगी और अन्ततः भविष्य में ऐसे अपराध फिर होने से रोकना होगा.”

महामारी के कारण बढ़ा जोखिम

रिपोर्ट में पाया गया है कि कोविड-19 महामारी के कारण, स्कूलों व बाल-अनुकूल स्थानों के बन्द हो जाने, बहुत से घरों की आमदनी बन्द या सीमित हो जाने के कारण, युद्धक गतिविधियों में प्रयोग किये जाने के लिये, बच्चों की भर्ती होने, उनके यौन उत्पीड़न, शोषण और जबरन विवार कराए जाने का जोखिम बढ़ गया है.

वर्जीनिया गाम्बा ने अन्तरराष्ट्रीय समुदाय से, स्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं और स्कूलों की संरक्षा सुनिश्चित करने का आग्रह किया है, लड़कियों की शिक्षा के साधनों की सुरक्षा सुनिश्चित करने पर ख़ास ज़ोर दिया गया है.

उन्होंने कहा, ”संघर्षों के कारण प्रभावित बच्चे भी, महामारी के कारण सर्वाधिक प्रभावित हुए हैं, इसलिये उनकी ज़रूरतें, कोविड-19 से उबरने के तमाम प्रयासों का प्रमुख हिस्सा होनी चाहिये.”