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अफ़ग़ानिस्तान और पाकिस्तान के सीमावर्ती इलाक़े में, एक लड़का, पैदल यात्रा करते हुए. (फ़रवरी 2021)

अफ़ग़ानिस्तान: विस्थापितों के सामने हैं बहुत कठिन चुनौतियाँ

IOM/Muse Mohammed
अफ़ग़ानिस्तान और पाकिस्तान के सीमावर्ती इलाक़े में, एक लड़का, पैदल यात्रा करते हुए. (फ़रवरी 2021)

अफ़ग़ानिस्तान: विस्थापितों के सामने हैं बहुत कठिन चुनौतियाँ

मानवीय सहायता

संयुक्त राष्ट्र के अन्तरराष्ट्रीय प्रवासन संगठन (IOM) का कहना है कि अफ़ग़ानिस्तान में, तालेबान की बढ़ती गतिविधियों के परिणामस्वरूप, लड़ाई में वृद्धि हुई है जिसके कारण विस्थापितों की की सहायता के लिये ज़्यादा प्रयास नहीं किये गए तो, उनकी स्थिति और भी ज़्यादा बदतर होने की आशंका है. 

अन्तरराष्ट्रीय प्रवासन संगठन का अनुमान है कि हाल के समय में, लड़ाई में हुई तेज़ी के कारण, 3 लाख से भी ज़्यादा अफ़ग़ान लोग, देश के भीतर ही विस्थापित हुए हैं. अकेले जून महीने में, क़रीब 40 हज़ार लोग, औसतन प्रति सप्ताह की दर से, पड़ोसी देश - ईरान में चले गए.

स्वदेश वापसी

इस बीच, आम लोगों को अच्छा-ख़ासा जोखिम नज़र आने के बावजूद, विदेशों में रहने वाले अफ़ग़ान नागरिक, ज़्यादा संख्या में, स्वदेश वापिस लौट रहे हैं. 

ऐसे ही लोगों में, एक व्यक्ति हैं मुस्तफ़ा (ये उनका असली नाम नहीं है), जो, 15 वर्ष पहले, असुरक्षा के कारण, अफ़गानिस्तान छोड़कर बाहर चले गए थे.

वो पाकिस्तान में, एक मोटरसायकिल मैकेनिक के रूप में काम करते थे. लेकिन वहाँ कशमकश के दौर से गुज़रती अर्थव्यवस्था और कोविड-19 महामारी से हालात और भी ज़्यादा बिगड़ने; स्थानीय समुदायों में परायों और अनजान लोगों के लिये, असहिष्णुता का माहौल बढ़ने के कारण, वर्ष 2020 के आख़िरी चरण में, उन्हें अपना कारोबार बन्द करना पड़ा.

मुस्तफ़ा, फ़रवरी 2021 में अपने बच्चों के साथ, स्पिन बोल्डक सीमा चौकी से गुज़रते हुए.
IOM/Muse Mohammed
मुस्तफ़ा, फ़रवरी 2021 में अपने बच्चों के साथ, स्पिन बोल्डक सीमा चौकी से गुज़रते हुए.

अफ़ग़ानिस्तान-पाकिस्तान सीमा चौकी से गुज़रते हुए, मुस्तफ़ा का कहना था, “पाकिस्तान में भी हमारी ज़िन्दगी कुछ ख़ास अच्छी नहीं थी और अब मैं अफ़ग़ानिस्तान वापिस लौट आया हूँ. मेरी बस इतनी इच्छा है कि मुझे एक छोटा सा घर मिल जाए और मेरे बच्चों को शिक्षा हासिल करने का मौक़ा." 

"अगर वो तालीम हासिल करने के लिये स्कूल जा सकें तो ये मेरे जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि होगी.”

अफ़ग़ानिस्तान-पाकिस्तान सीमा पर, स्पिन बोल्डक चौकी, उन 9 सीमावर्ती चौकियों में से एक है जिन पर हाल के सप्ताहों में, तालेबान ने क़ब्ज़ा किया है.

तालेबान ने, पिछले कुछ महीनों के दौरान, विदेशी सेनाओं के देश से निकल जाने के बाद, राष्ट्रव्यापी स्तर पर अनेक बड़े हमले किये हैं.

देश निकाला व स्वदेश वापसी

कोविड-19 महामारी शुरू होने के समय से, लगभग 15 लाख लोग, पड़ोसी देश पाकिस्तान और ईरान से या तो जबरन अफ़ग़ानिस्तान भेज दिये गए हैं या फिर उनमें से बहुत से लोगों ने ख़ुद ही अफ़ग़ानिस्तान वापिस लौटने का फ़ैसला किया है. 

और मुस्तफ़ा जैसे लोग, तालेबान के हमलों के बाद मिली विजयों के बावजूद, स्वदेश लौट रहे हैं.

वापिस लौटने वाले लोगों को भोजन, कपड़ों व रहने के लिये किराए के घरों की ज़रूरत है क्योंकि बहुत से लोगों के घर तबाह हो गए हैं.

साथ ही उन्हें अपनी मंज़िल तक पहुँचने के लिये, परिवहन का ख़र्च उठाने की ख़ातिर धन की भी ज़रूरत है. 

ऐसे बहुत से लोगों को, अन्तरराष्ट्रीय प्रवासन संगठन समर्थन व सहायता मुहैया करा रहा है.

अफ़ग़ानिस्तान के हेरात प्रान्त में, अन्तरराष्ट्रीय प्रवासन संगठन (IOM) का स्टाफ़, कोविड-19 की जाँच-पड़ताल व जागरूकता प्रसार के सत्र आयोजित करते हुए.
IOM/Muse Mohammed
अफ़ग़ानिस्तान के हेरात प्रान्त में, अन्तरराष्ट्रीय प्रवासन संगठन (IOM) का स्टाफ़, कोविड-19 की जाँच-पड़ताल व जागरूकता प्रसार के सत्र आयोजित करते हुए.

अफ़ग़ानिस्तान में, संगठन के मिशन प्रमुख स्टुअर्ट सिम्पन के अनुसार, “अफ़ग़ानिस्तान, में स्थिति, हर नज़रिये से, लगातार बदतर हो रही है.”

ये समय, अफ़ग़ानिस्तान के बहुत नाज़ुक हालात से नज़र फेर लेने का, बिल्कुल भी नहीं है. अफ़ग़ान नागरिकों की तकलीफ़ों के बारे में दुनिया को बताने के लिये, अन्तरराष्ट्रीय ध्यान व पैरोकारी की सख़्त ज़रूरत है.”

उनका कहना है कि देश की आबादी की सुरक्षा और बेहतरी के लिये, बातचीत पर आधारित एक युद्धविराम, सबसे अच्छा समाधान है.

सिकुड़ता सहायता दायरा

संयुक्त राष्ट्र का अनुमान है कि देश की लगभग आधी आबादी, यानि क़रीब एक करोड़ 85 लाख लोगों को, अनेक तरह के संकटों का सामना करने के लिये, वर्ष 2021 के दौरान मानवीय सहायता की ज़रूरत होगी. ये संकट कोविड-19 महामारी और कम विकास व निर्धनता के कारण उत्पन्न हुए हैं. 

अलबत्ता, जैसे-जैसे लड़ाई गहरा रही है और उसका दायरा बढ़ रहा है, वैसे-वैसे ज़रूरतमन्दों को जीवन रक्षक मानवीय सहायता पहुँचाने के लिये, ढाँचागत सुविधाओं का दायरा बहुत तेज़ी से सिकुड़ रहा है.

स्टुअर्ट सिम्पसन का कहना है, “संगठन ये सुनिश्चित करेगा कि हम मानवीय सहायता स्थिति में गिरावट होने के हालात का सामना करने के लिये तैयार व मुस्तैद रहें. हम अपने सहायता कार्यक्रम जारी रखने के लिये भरसक प्रयास करते रहेंगे, जिसके लिये, संघर्ष से सम्बद्ध पक्षों से बातचीत की जाती रहेगी...”

स्वास्थ्यकर्मियों पर हमले

सघर्ष की स्थिति में, देश भर में स्वास्थ्य देखभाल कर्मियों पर हमलों में बढ़ोत्तरी हुई है जिनके कारण सैकड़ों स्वास्थ्य सुविधाएँ बन्द करनी पड़ी हैं, परिणामस्वरूप, देश की कोविड-19 का मुक़ाबला करने की क्षमता बुरी तरह प्रभावित हुई है.

ये स्पष्ट है कि अफ़ग़ानिस्तान में, कोविड-19 फैलने का मुख्य कारण, लोगों की आवाजाही है. ऐसे में सीमा पार से बड़ी संख्या में लोगों के आगमन से कोरोनावायरस के फैलाव को उर्वर ज़मीन मिली है, और वो भी तब, जबकि देश में वैक्सीन की उपलब्धता सीमित है.

अफ़ग़ानिस्तान में, कोविड-19 वैक्सीन की सीमित उपलब्धता है.
© UNICEF
अफ़ग़ानिस्तान में, कोविड-19 वैक्सीन की सीमित उपलब्धता है.

अन्तरराष्ट्रीय प्रवासन संगठन (आईओएम) के अफ़ग़ान मिशन प्रमुख स्टुअर्ट सिम्पसन का कहना है, “अफ़ग़ानिस्तान में, कोविड-19 वैक्सीन की उपलब्धता, बहुत की कम है. लगभग 4 करोड़ की आबादी वाले इस देश में, महामारी की वैक्सीन की क़रीब 30 लाख ख़ुराकें ही उपलब्ध हो सकी हैं.

लोगों में वैक्सीन लगवाने के लिये भी हिचकिचाहट व सन्देह हैं और उपलब्ध ख़ुराकों का समान व न्यायसंगत वितरण सुनिश्चित करना भी एक बहुत बड़ी चुनौती है.”

अफ़ग़ानिस्तान में, कोविड-19 के मामलों और वैक्सीन टीकाकरण पर, विश्व स्वास्थ्य संगठन के आँकड़े यहाँ देखे जा सकते हैं.

‘इस देश से मेरा नाता है...’

अफ़ग़ानिस्तान में, जैसे-जैसे असुरक्षा बढ़ रही है, एक वास्तविकता तो स्पष्ट है: 

देश भर के समुदायों का, शान्ति, सुरक्षा, रोज़गार व कामकाज और सेवाओं की तलाश में, एक स्थान से दूसरे स्थान के लिये विस्थापन जारी रहेगा.

मुस्तफ़ा का कहना है, “मैंने, अपने देश अफ़ग़ानिस्तान में दाख़िल होने के लिये, जैसे ही दरवाज़े के इस तरफ़ क़दम रखा तो, मेरी आँखों से बर्बस आँसू निकल पड़े, क्योंकि मैं अपने बच्चों के साथ, पहली बार अपने वतन वापिस लौटा हूँ.”

“अगर यहाँ लड़ाई या युद्ध भी होता है, और अगर मुझे संघर्ष व जद्दोजहद भी करने पड़ते हैं तो भी मैं यहीं, अपने देश के भीतर ही रहना पसन्द करुंगा. मेरा इसी देश से नाता है, और ये मेरा देश है.”