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अफ़ग़ानिस्तान: सहायता सम्मेलन में टिकाऊ युद्धविराम लागू करने की पुकार

अफ़ग़ानिस्तान की राजधानी काबुल में कोविड-19 महामारी से प्रभावित कुछ महिलाएँ विश्व खाद्य कार्यक्रम से नक़दी सहायता हासिल करने के के इन्तेज़ार में.
© WFP/Massoud Hossaini
अफ़ग़ानिस्तान की राजधानी काबुल में कोविड-19 महामारी से प्रभावित कुछ महिलाएँ विश्व खाद्य कार्यक्रम से नक़दी सहायता हासिल करने के के इन्तेज़ार में.

अफ़ग़ानिस्तान: सहायता सम्मेलन में टिकाऊ युद्धविराम लागू करने की पुकार

शान्ति और सुरक्षा

संयुक्त राष्ट्र के दो वरिष्ठ उच्चायुक्तों ने अफ़ग़ानिस्तान में बहुत लम्बे समय से चले आ रहे संघर्ष और अशान्ति को ख़त्म किये जाने का आहवान किया है. उन्होंने सोमवार को जिनीवा में हुए एक प्रमुख सम्मेलन में कहा कि देश में सामान्य स्थिति तभी लौट सकती है जब एक टिकाऊ युद्धविराम लागू किया जाए.

मानवाधिकार उच्चायुक्त मिशेल बाशेलेट और शरणार्थी मामलों के उच्चायुक्त फ़िलिपो ग्रैण्डी ने सोमवार को अफ़ग़ानिस्तान सम्मेलन 2020 को सम्बोधित करते हुए ऐसे कुछ परिवर्तन गिनाए जिनके ज़रिये देश के सामान्य नागरिकों की ज़िन्दगी में सकारात्मक बदलाव और युद्ध से तबाह देश में पुनर्निर्माण के अवसर बेहतर हो सकते हैं.

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छह बातें

संयुक्त राष्ट्र की मानवाधिकार उच्चायुक्त मिशेल बाशेलेट ने कहा कि वो अफ़ग़ानिस्तान के लोगों से छह बातें कहना चाहती हैं और शुरुआत, आम लोगों को नुक़सान से बचाने का तत्काल संकल्प करने से की जानी चाहिये.

उन्होंने सम्मेलन में टिकाऊ शान्ति निर्माण पर हुए एक सत्र में कहा, “ऐसा करने से हज़ारों परिवारों को तकलीफ़ों व मुसीबतों से बचाया जा सकता है, और वार्ताकारों में आपसी भरोसा हौसला बढ़ेगा.

सभी पक्षों को ऐसी गतिविधियों को कम करने के उपाय तलाश करने और उन्हें अपनाने के रास्ते निकालने होंगे जिनसे आम लोगों को भारी नुक़सान होता है. और सबसे ज़्यादा, हिंसा में घोषित कमी की ज़रूरत है, आदर्श रूप में एक युद्धविराम लागू करके.”

शरणार्थी उच्चायुक्त फ़िलिपो ग्रैण्डी ने कहा है कि जबरन विस्थापित हुए अफ़ग़ान लोगों की संख्या लाखों में है जो लगातार बढ़ रही है. 

ध्यान दिला दें कि यूएन महासभा ने फ़िलिपो ग्रैण्डी की नियुक्ति एक और कार्यकाल के लिये बढ़ाने की घोषणा सोमवार को ही की है.

उन्होंने कहा कि लाखों विस्थापित अफ़ग़ान लोगों ने ईरान और पाकिस्तान में पनाह ली हुई है, और ग्रीस पहुँचने वाले शरणार्थियों में अब भी 30 से 40 प्रतिशत संख्या अफ़ग़ान लोगों की है. लेकिन इस स्थिति को बदल देने का ऐतिहासिक मौक़ा उपलब्ध है.

बातचीत नाकाम हुई तो...

यूएन शरणार्थी एजेंसी प्रमुख फ़िलिपो ग्रैण्डी ने कहा, “शान्तिवार्ता के बारे में पहले की बहुत कुछ कहा जा चुका है, कि किस तरह से ये बातचीत एक अवसर है या हो सकती है, और ये शरणार्थियों और विस्थापितों के नज़रिये से भी एक सच्चाई है, लेकिन अगर हिंसा जारी रहती है, जैसाकि हमने सप्ताहान्त के दौरान देखा है, अगर बातचीत नाकाम होती है, तो वापसी के रास्ते बन्द हो जाएँगे.”

उन्होंने कहा, “देश की एकता को मज़बूत किये जाने के बारे में बातचीत करने की कोई अहमियत नहीं बचेगा क्योंकि लोगों की वापसी नहीं हो सकेगी. इसके उलट, और ज़्यादा जबरन विस्थापन होगा और विस्थापितों व शरणार्थियों को और ज़्यादा मानवीय सहायता की ज़रूरत होगी, साथ ही ऐसे हालात पैदा हो जाएँगे जो ख़तरनाक और ढाँचागत नज़रिये से बहुत मुश्किल होंगे.”

फ़िलिपो ग्रैण्डी ने कहा कि शान्ति वार्ता की कामयाबी इस सन्दर्भ में मापी जा सकती है कि पिछले 20 वर्षों के दौरान लोगों का अधिकारों का सम्मान किये जाने के मामले में किस हद तक सफलता मिली है, ख़ासतौर से महिलाओं और लड़कियों के अधिकारों के बारे में.

70 से ज़्यादा देशों की शिरक़त

अफ़ग़ानिस्तान के लिये वित्तीय मदद जुटाने के वास्ते आयोजित इस दो दिवसीय सम्मलेन में 70 से ज़्यादा देशों के शिरकत करने की सम्भावना है, जिसका आयोजन, अफ़ग़ानिस्तान, फ़िनलैण्ड और संयुक्त राष्ट्र ने संयुक्त रूप से किया है.

सम्मेलन में 2021 से 2024 के दौहरान विकास अभियानों में तालमेल स्थापित करने पर भी विचार किया जाएगा.

शरणार्थी उच्चायुक्त फिलिपो ग्रैण्डी ने उम्मीद जताई कि अफ़ग़ानिस्तान सरकार विस्थापित लोगों को स्थान आबंटित किये जाने की समस्या का समाधान निकाल पाएगी और विस्थापितों की वापसी के लिये सहायता कार्यक्रमों को प्राथमिकता दी जाएगी.

साथ ही, जो अफ़ग़ान लोग पड़ोसी देशों के लिये विस्थापित हुए हैं उन्हें वापसी के लिये दस्तावेज़ मुहैया कराए जा सकेंगे, और अन्तरराष्ट्रीय समुदाय ईरान और पाकिस्तान को भी कुछ सहायता प्रयास बढ़ाएगा.