म्याँमार: 'राजनैतिक संकट ने ले लिया है बहुकोणीय मानवाधिकार आपदा का रूप'
संयुक्त राष्ट्र की मानवाधिकार उच्चायुक्त मिशाल बाशेलेट ने मंगलवार को चेतावनी भरे शब्दों में कहा है कि म्याँमार में फ़रवरी 2021 में सेना द्वारा सत्ता का तख़्तापलट करने के साथ जो दौर शुरू हुआ था उसने आम आबादी के ख़िलाफ़ चौतरफ़ा हमलों का रूप ले लिया है जिसका दायरा लगातार बढ़ता गया है और जो व्यवस्थित ढंग से हो रहा है.
मिशेल बाशेलेट ने मंगलवार को मानवाधिकार परिषद के 47वें सत्र को सम्बोधित करते हुए दोहराया कि म्याँमार में स्थिति, फ़रवरी महीने शुरू में नज़र आने वाले एक राजनैतिक संकट ने “बहुकोणीय मानवाधिकार आपदा” का रूप ले लिया है.
फ़रवरी में तख़्तापलट किये जाने के बाद से देश में 900 से ज़्यादा लोगों की मौत हो चुकी है और लगभग दो लाख लोगों को, सेना द्वारा बस्तियों और गाँवो में हिंसक छापेमारियों के कारण अपने घर छोड़ने के लिये मजबूर होना पड़ा है.
नीचे की ओर जाता रुझान
मानवाधिकार उच्चायुक्त ने कहा, “पूरे देश में इस तरह की तबाही, हिंसा और तकलीफ़ें टिकाऊ विकास के लिये विनाशकारी सम्भावनाएँ हैं और ऐसे हालात से सरकारी मशीनरी के नाकाम होने या एक व्यापक दायरे वाले गृहयुद्ध की सम्भावना बलवती होती है.”
उन्होंने अन्तरराष्ट्रीय समुदाय का आहवान किया कि वो म्याँमार में सेना को आम लोगों पर हमले रोकने और देश में लोकतंत्र बहाली का रास्ता साफ़ करने के लिये जबाव डाले जिसमें वहाँ के लोगों की स्पष्ट इच्छा नज़र आती है.
संयुक्त राष्ट्र की कार्रवाई
मानवाधिकार उच्चायुक्त मिशेल बाशेलेट ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र अतीत की तरह देश की उम्मीदों पर खरे उतरने में नाकाम नहीं हो सकता, उनका इशारा, म्याँमार में संयुक्त राष्ट्र की भूमिका के बारे में 2019 में की गई समीक्षा की तरफ़ था, जो गर्ट रोज़ेन्थल ने की थी.
मिशेल बाशेलेट ने ये भी सलाह दी कि देश में मानवाधिकारों की स्थिति और भी ज़्यादा ख़राब होने से पहले ही, वहाँ एक कारगर लोकतंत्र बहाल करने के लिये तेज़ी से कार्रवाई की जानी चाहिये.
“ये सुरक्षा परिषद की कार्रवाई के ज़रिये मज़बूत किया जाना चाहिये. मैं तमाम देशों से आग्रह करती हूँ कि म्याँमार में हथियारों की आपूर्ति को रोकने की, यूएन महासभा की पुकार पर अमल करने के लिये तुरन्त कार्रवाई करें.”
भुखमरी, हिंसा और निर्धनता
मिशेल बाशेलेट ने कहा कि कोविड-19 ने अर्थव्यवस्था पर विनाशकारी प्रभाव छोड़ा है जो विदेशों में रहने वाले प्रवासियों से मिलने वाली रक़म, परिधान उद्योग और अन्य क्षेत्रों पर निर्भर है और ये सभी क्षेत्र, वैश्विक आर्थिक मन्दी के कारण तबाही का शिकार हुए हैं.
यूएन एजेंसियों का अनुमान है कि म्याँमार में लगभग 60 लाख लोगों को तत्काल और व्यापक खाद्य सहायता की ज़रूरत है और ये भी अनुमान है कि वर्ष 2022 के आरम्भ तक, लगभग आधी आबादी निर्धनता की चपेट में आ सकती है.