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भारत: स्टैन स्वामी के निधन पर यूएन मानवाधिकार कार्यालय ने जताया दुख और व्यथा

संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार उच्चायुक्त कार्यालय (OHCHR) की प्रवक्ता एलिज़ाबेथ थ्रॉसेल
UN News/Daniel Johnson
संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार उच्चायुक्त कार्यालय (OHCHR) की प्रवक्ता एलिज़ाबेथ थ्रॉसेल

भारत: स्टैन स्वामी के निधन पर यूएन मानवाधिकार कार्यालय ने जताया दुख और व्यथा

मानवाधिकार

संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त कार्यालय ने भारत में एक 84 वर्षीय मानवाधिकार कार्यकर्ता फ़ादर स्टैन स्वामी के निधन पर बहुत दुख व्यक्त करते हुए कहा है कि वो इस निधन पर व्यथित भी है. स्टैन स्वामी का भारत के वाणिज्यिक शहर मुम्बई में सोमवार को निधन हो गया था.

यूएन मानवाधिकार प्रवक्ता एलिज़ाबेथ थ्रॉसेल ने मंगलवार को एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा कि स्टैन स्वामी को भारत के अवैध गतिविधि (निरोधक) अधिनियम (UAPA) के तहत अक्टूबर 2020 में गिरफ़्तार किया गया था. उन्हें तभी से मुक़दमा शुरू होने से पहले यानि विचाराधीन अभियुक्त की स्थिति में क़ैद में रखा गया था और उन्हें ज़मानत नहीं मिली थी.

स्टैन स्वामी पर वर्ष 2018 में हुए प्रदर्शनों के सम्बन्ध में, आतंकवाद सम्बन्धी आरोप लगाए गए थे.

प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार स्टैन स्वामी एक प्रख्यात मानवाधिकार कार्यकर्ता थे, विशेष रूप में आदिवासी लोगों और अन्य कमज़ोर वर्ग के समूहों के अधिकारों पर उल्लेखनीय काम किया था.

उन्हें मुम्बई की तलोजा सेंट्रल जेल में रखा गया था जहाँ उनका स्वास्थ्य बहुत ख़राब हो गया था, और उन्हें कोविड-19 का संक्रमण होने की भी ख़बरें थीं. ज़मानत के लिये उनकी अर्ज़ियाँ बार-बार नामंज़ूर हुईं. 

उनकी मौत ऐसे समय हो गई जब उनकी ज़मानत अर्ज़ी  को नामंज़ूर किये जाने के ख़िलाफ़ एक अपील पर बॉम्बे उच्च न्यायालय विचार कर रहा था.

संयुक्त राष्ट्र की मानवाधिकार उच्चायुक्त मिशेल बाशेलेट और कई स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञ, पिछले तीन वर्षों के दौरान, फ़ादर स्टैन स्वामी और 15 अन्य मानवाधिकार पैरोकारों के मामले, भारत सरकार के साथ बार-बार उठाते रहे हैं और उन्हें विचाराधीन क़ैद से रिहा करने का आग्रह करते रहे हैं.

ये सभी मानवाधिकार पैरोकार एक ही घटना के सम्बन्ध में गिरफ़्तार किये गए थे.

मानवाधिकार उच्चायुक्त मिशेल बाशेलेट ने मानवाधिकार पैरोकारों पर UAPA का इस्तेमाल किये जाने पर भी चिन्ताएँ व्यक्त की हैं.

फ़ादर स्टैन स्वामी ने अपनी मृत्यु से कुछ दिन पहले ही इस क़ानून को भारतीय अदालतों में चुनौती दी थी.

मानवाधिकार उच्चायुक्त कार्यालय की प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है कि कोविड-19 महामारी के लगातार भीषण प्रभाव को देखते हुए, भारत सहित तमाम देशों के लिये, ये और भी ज़्यादा ज़रूरी है कि उस हर एक व्यक्ति को रिहा कर दिया जाए जिसे पर्याप्त क़ानूनी आधारों के बिना क़ैद में रखा गया है. 

इनमें वो लोग भी शामिल हैं जिन्हें केवल आलोचनात्मक या असहमति वाले विचार व्यक्त करने के लिये क़ैद में रखा गया है.

विचाराधीन क़ैदियों को रिहा किया जाना, भारतीय न्यायापालिका की इस पुकार के अनुरूप होगा कि भारत में जेलों में भीड़ कम की जाए.

प्रेस विज्ञप्ति में भारत सरकार से मानवाधिकार उच्चायुक्त की इस पुकार पर फिर ज़ोर दिया गया है कि किसी भी व्यक्ति को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, शान्तिपूर्ण सभा करने या एकत्र होने और संगठन बनाने के बुनियादी अधिकारों का इस्तेमाल करने के लिये बन्दी ना बनाया जाए.