संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने सोमवार को मानवाधिकार परिषद का नया सत्र शुरू होने के अवसर पर, म्याँमार के लोगों को अपना पूरा समर्थन दोहराया है. ध्यान रहे कि म्याँमार में, लगभग तीन सप्ताह पहले, सेना ने देश की सत्ता पर क़ब्ज़ा कर लिया था, जिसके बाद वहाँ अनेक स्थानों पर जन प्रदर्शन हुए हैं जिनमें हज़ारों लोगों शिरकत की है.
महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने यूएन मानवाधिकार परिषद के, महीने भर तक चलने वाले 46वें सत्र के पहले दिन के लिये, पहले से रिकॉर्ड कराए एक वीडियो सम्बोधन में कहा, “आधुनिक विश्व में, तख़्तापलट के लिये कोई स्थान नहीं है.”
महासचिव की इस टिप्पणी से पहले, मानवाधिकार परिषद ने, 12 फ़रवरी को म्याँमार की स्थिति पर चर्चा के लिये, एक विशेष सत्र आयोजित किया था जिसमें, एक प्रस्ताव पारित करके, देश में म्याँमार द्वारा सत्ता पर क़ब्ज़ा किये जाने के घटनाक्रम पर गहरी चिन्ता व्यक्त की गई थी.
यूएन प्रमुख ने सोमवार को अपने सन्देश में कहा, “आज, मैं म्याँमार की सेना दमन तुरन्त रोक देने का आहवान करता हूँ. बन्दियों को रिहा कर दिया जाए. हिंसा बन्द की जाए. मानवाधिकारों और हाल में हुए चुनाव में सामना आए जनमत का सम्मान हो.”
“मैं, मानवाधिकार परिषद के प्रस्ताव का स्वागत करता हूँ, आपके अनुरोध पर अमल करने का संकल्प लेता हूँ और लोकतन्त्र, शान्ति, मानवाधिकार और विधि के शासन के लिये, म्याँमार के लोगों के संघर्ष का पूर्ण समर्थन करता हूँ.”
14 वर्षीय मृतक
यूएन प्रमुख ने, इससे पहले, सप्ताहान्त को ही, म्याँमार में प्रदर्शनों पर “घातक बल प्रयोग” की निन्दा की थी जिनमें, मंडालय में, एक 14 वर्षीय बच्चा भी मारा गया था. एक अन्य व्यक्ति की भी मौत हुई थी.
मानवाधिकार परिषद का ये महीने भर चलने वाला सत्र, कोविड-19 महामारी की रोकथाम के उपायों के तहत, लगभग पूरी तरह डिजिटल तरीक़ों से आयोजित किया जा रहा है.
मानावधिकार उच्चायुक्त मिशेल बाशेलेट ने इस सत्र को उदघाटन दिवस पर सम्बोधित करते हुए, कोविड-19 महामारी के व्यापक और विनाशकारी प्रभावों की तरफ़ ध्यान आकर्षित किया.
उन्होंने कहा, “मेरा ख़याल में, हम सभी यो समझते हैं कि बल प्रयोग से महामारी का ख़ात्मा नहीं होगा. आलोचकों को जेल में भेजने से भी ये महामारी समाप्त नहीं होगी."
" जन स्वतन्त्रताओं पर अवैध प्रतिबन्ध लगाना, आपदा शक्तियों का अत्यधिक प्रयोग और अनावश्यक या अत्यधिक बल प्रयोग किया जाना, ना केवल व्यर्थ है, बल्कि सिद्धान्तहीन भी है. इन कारणों से निर्णय प्रक्रिया में जन-भागीदारी कम होती है, जोकि अच्छे नीति निर्माण की बुनियाद है.”
दुर्बलों के लिये मदद
यूएन महासभा अध्यक्ष वोल्कान बोज़किर ने एक अन्य वीडियो सन्देश में, महामारी से उबरने का सर्वश्रेष्ठ उपाय, लोगों की बुनियादी ज़रूरतें पूरी करने की तरफ़ ध्यान पर ज़ोर दिया, जिनमें कोरोनावायरस की वैक्सीन भी शामिल है.
उन्होंने कहा, “ये अति आवश्यक है कि कोविड-19 महामारी का मुक़ाबला करने के तमाम उपाय, मानवाधिकारों पर आधारित हों, और सभी इनसानों की हिफ़ाज़त को आगे बढ़ाएँ. इनमें वो लोग भी शामिल हैं जिन्हें हमारी देखभाल और सबसे ज़्यादा ग़ौर की ज़रूरत है.”
“इन उपायों में, सर्वजन के लिये वैक्सीन का समान और न्यायसंगत वितर सुनिश्चित किया जाना भी शामिल है. ये भी बहुत अहम है कि सिविल सोसायटी, निजी सैक्टर, और तमाम भागीदारों को, महामारी से निपटने के उपायों की योजन और आकलन के सभी स्तरों में शामिल रखा जाए.”
वैक्सीन अन्याय
यूएन प्रमुख ने कोविड-19 की लगभग 75 प्रतिशत वैक्सीन, केवल 10 देशों में इस्तेमाल हुई है जिसे उन्होंने “नवीनतम नैतिक अत्याचार” क़रार दिया.
उन्होंने सर्वजन को न्यायसंगत तरीक़े से वैक्सीन मुहैया कराने की पुकार में अपनी आवाज़ मिलाते हुए, कोरोनावायरस महामारी का व्यापक पैमाने पर सामना किये जाने के प्रयासों में, दक्षिणपन्थी तत्वों के विरुद्ध कार्रवाई भी शामिल करने का आहवान किया जो अन्तरराष्ट्रीय ख़तरा बन रहे हैं.
यूएन महासचिव ने, साथ ही, कुछ देशों की सरकारों द्वारा नागरिकों के बर्ताव और व्यवहार को नियन्त्रित करने और निजी डिजिटल डेटा का ग़लत इस्तेमाल किये जाने पर रोक लगाने की कार्रवाई का भी आहवान किया है.
एंतोनियो गुटेरेश ने कहा कि वैक्सीन समानता में मानवाधिकारों का सम्मान किया जाना भी शामिल है मगर, वैक्सीन राष्ट्रवाद, मानवाधिकारों को रद्द करता है. वैक्सीन, एक वैश्विक सार्वजनिक अच्छाई होनी चाहिये, जोकि सभी के लिये आसानी से उपलब्ध हो.
यूएन मानवाधिकार उच्चायुक्त मिशेल बाशेलेट ने भी इसी मुद्दे पर ज़ोर देते हुए कहा कि कोरोनावायरस संकट ने भेदभाव की घातक वास्तविकताओं को सामने ला दिया है.
उन्होंने कहा कि इस स्थिति के लिये, ज़्यादा ज़िम्मेदार गहराई से बैठी असमानताएँ और बुनियादी सेवाओं के लिये, लम्बी अवधि से चली आ रही वित्तीय क़िल्लत है, और इन बुनियादी सेवाओं की अनदेखी करने के लिये, बहुत हद तक, नीति-निर्माता भी ज़िम्मेदार हैं.